"अंधेरे में डूबते आसमान के सामने इमारतों की छाया"

Started by Atul Kaviraje, January 05, 2025, 12:44:05 AM

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Atul Kaviraje

शुभ रात्रि, शनिवार मुबारक हो

"अंधेरे में डूबते आसमान के सामने इमारतों की छाया"

अंधेरे में डूबता आसमान बड़ा गहरा,
इमारतों की छाया, चुपचाप खड़ा।
उन्हें देखो, वे कुछ नहीं कहते,
बस खामोशी से वक्त को सहते। 🌙🏙�

आसमान का रंग बदलने लगा,
इमारतों की छाया धीरे-धीरे फैलने लगी।
कभी हल्के, कभी गहरे, कभी तन्हा,
हर एक छाया में छुपा है एक नया राज़। 🌌💫

चंद्रमा की चाँदनी इमारतों से टकराई,
और फिर से रात की सूरत सवेरा लाई।
वो छायाएँ, वे खामोश दीवारें,
कभी मुस्कुराती हैं, कभी होती हैं गुमशुदा। 🌙🌟

हर इमारत की छाया, जैसे कहानी सुनाती है,
अंधेरे में यह हर रूप बदल जाती है।
चाहे दिन हो या रात, वे खड़ी रहती हैं,
सुनाती रहती हैं अपने दिल की बातें। 🏙�💭

अंधेरे में डूबते आसमान के आगे,
इमारतें खड़ी हैं, चुप और पागल सी लगती हैं।
लेकिन इन छायाओं में छुपे हैं कई सपने,
जो हमें दिखते हैं, बिना कुछ कहे। ✨🏙�

     यह कविता अंधेरे के समय आसमान और इमारतों की छाया का विवरण करती है। छायाएँ धीरे-धीरे फैलती हैं और हर एक छाया के पीछे एक कहानी या सपना छुपा होता है। कविता में खामोशी, शांति और गहरे अर्थों का समावेश किया गया है, जो अंधेरे के समय भी उजाले का संकेत देती हैं।

चित्र, चिन्ह और इमोजी:
🌙🏙�🌌💫🌟✨💭

--अतुल परब
--दिनांक-04.01.2025-शनिवार.
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