भारतीय लोक कला और उसका संरक्षण-1

Started by Atul Kaviraje, January 05, 2025, 10:20:46 PM

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Atul Kaviraje

भारतीय लोक कला और उसका संरक्षण-

प्रस्तावना:

भारत की सांस्कृतिक धरोहर एक विशाल और विविधतापूर्ण परंपरा से जुड़ी हुई है, जिसमें लोक कला का बहुत बड़ा स्थान है। भारतीय लोक कला ने सदियों से समाज की पहचान बनाई है और हमारे सामाजिक और धार्मिक जीवन से गहरे रूप से जुड़ी हुई है। यह कला न केवल हमारे इतिहास की गवाही देती है, बल्कि यह हमारे जीवनशैली, रीति-रिवाजों, आस्थाओं और कृतियों की अभिव्यक्ति भी है। आज के समय में, आधुनिकता और तकनीकी विकास ने लोक कला पर खतरे के बादल मंडराए हैं, इसलिए इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।

लोक कला का महत्व:

भारतीय लोक कला हमारे समाज की पहचान और परंपराओं को संरक्षित करने का एक अहम माध्यम है। यह कला रूप जनमानस की रचनात्मकता और भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है। लोक कला न केवल दृश्य कला की एक श्रेणी है, बल्कि इसमें संगीत, नृत्य, हस्तशिल्प, काव्य, और नाट्य कला जैसी विविध शैलियाँ शामिल हैं।

हस्तशिल्प और शिल्पकला: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लोक कला के रूप में हस्तशिल्प की विशिष्टताएँ प्रचलित हैं, जैसे राजस्थान की मूर्तियाँ, कश्मीर की शॉल, कर्नाटका की चाकला कला, और उत्तर प्रदेश की चूड़ी कारीगरी। इन हस्तशिल्प कृतियों में स्थानीय सामग्री, कला और परंपरा का अद्वितीय समावेश होता है।

नृत्य और संगीत: लोक नृत्य और संगीत भारतीय लोक कला का अभिन्न हिस्सा है। उड़ीसा का ओडीसी, राजस्थान का गेर, पंजाब का भांगड़ा, महाराष्ट्र का लावणी और कर्नाटका का काथकली – ये सब भारतीय लोक कला के प्रमुख उदाहरण हैं। लोक संगीत जैसे भजन, कीर्तन और लोक गीत भी सामाजिक और धार्मिक आयोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।

चित्रकला: भारतीय लोक चित्रकला का एक विशाल इतिहास रहा है, जैसे मदुरई का तंजोर चित्रकला, पाटचित्रकला (बंगाल), और युद्ध चित्रकला (राजस्थान)। ये चित्रकला की शैलियाँ भारतीय संस्कृति, पुरानी कथाओं, देवी-देवताओं, और अन्य धार्मिक विषयों को दर्शाती हैं।

मंचकला और लोककथाएँ: भारतीय लोककथाएँ और मंचकला के द्वारा समाज की नैतिकता, नीतियां और सामाजिक संदेश फैलाए जाते हैं। रामलीला, रासलीला और कठपुतली नृत्य जैसी कला शैलियाँ भी भारतीय लोक कला की प्राचीन परंपरा का हिस्सा हैं।

लोक कला का संकट:

आजकल भारतीय लोक कला विभिन्न संकटों का सामना कर रही है। यह संकट मुख्य रूप से आधुनिकता, वैश्वीकरण, और शहरीकरण के कारण उत्पन्न हुए हैं। कुछ प्रमुख संकट इस प्रकार हैं:

आधुनिकता और पश्चिमी प्रभाव: भारतीय लोक कला आधुनिक जीवनशैली के मुकाबले पिछड़ी हुई मानी जाती है। वैश्वीकरण और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव ने युवाओं को पारंपरिक कला से दूर कर दिया है, जिससे लोक कला को संरक्षण मिलना मुश्किल हो गया है।

संसाधनों की कमी: लोक कला के कलाकारों को अपने कला रूपों को जीवित रखने के लिए पर्याप्त संसाधन और समर्थन नहीं मिलता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में साधन, प्रशिक्षण, और बाजार की कमी होती है, जो इन कलाकारों की कला को विपणन और प्रचार से वंचित कर देती है।

लोक कला की बदलती शैली: समय के साथ लोक कला की पारंपरिक शैली में बदलाव आया है। अनेक कृतियाँ अब व्यावसायिक बन चुकी हैं, जो मूल रूप से कला के उद्देश्य से भटक कर बाजार की मांगों के अनुसार बदल गई हैं। इससे लोक कला का मूल और वास्तविक रूप प्रभावित हो रहा है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-05.01.2025-रविवार.
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