नारीवाद और पितृसत्तात्मक समाज -2

Started by Atul Kaviraje, January 07, 2025, 10:53:44 PM

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Atul Kaviraje

नारीवाद और पितृसत्तात्मक समाज - उदाहरणों सहित विस्तृत विवेचन-

नारीवाद और पितृसत्तात्मक समाज के बीच संघर्ष

नारीवाद और पितृसत्तात्मक समाज के बीच संघर्ष एक प्राकृतिक परिणाम है, क्योंकि नारीवाद महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करता है, जबकि पितृसत्तात्मक समाज इस संघर्ष को चुनौती देता है और महिलाओं के अधिकारों की सीमा तय करता है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को सीमित किया जाता है, जबकि नारीवाद उन सीमाओं को तोड़कर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता है।

शिक्षा में भेदभाव: पितृसत्तात्मक समाज में यह मान्यता प्रचलित रही है कि महिलाओं को उतनी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है जितनी पुरुषों को होती है। हालांकि, नारीवाद ने इस धारणा को चुनौती दी और यह साबित किया कि महिलाओं को भी समान शिक्षा के अवसर मिलने चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत में मलाला यूसुफजई का संघर्ष और योगदान महिलाओं की शिक्षा के अधिकार के लिए एक प्रतीक बन गया है। मलाला ने यह दिखाया कि लड़कियों को भी समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, और पितृसत्तात्मक समाज की इस धारणा को चुनौती दी।

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व: पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को राजनीति और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने से रोकने की प्रवृत्तियां रही हैं। महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी समाज में उनके अधिकारों की अनदेखी करने का एक बड़ा कारण बनती है। नारीवाद ने इस विचार को चुनौती दी और महिलाओं के लिए राजनीति में समान स्थान की मांग की। इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, और प्रिया गुप्ता जैसे उदाहरण यह साबित करते हैं कि महिलाएं राजनीति में सक्रिय रूप से भाग ले सकती हैं और नेतृत्व कर सकती हैं।

लैंगिक हिंसा और भेदभाव: पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, यौन हिंसा जैसी समस्याएं आम होती हैं। नारीवाद ने इन समस्याओं को पहचानकर इसे समाप्त करने के लिए काम किया। #MeToo आंदोलन इसका उदाहरण है, जहां महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई। इस आंदोलन ने पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न को उजागर किया और इसे खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

कृषि और आर्थिक स्वतंत्रता: पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को अक्सर आर्थिक रूप से निर्भर और घरेलू कार्यों तक सीमित किया जाता है। नारीवाद ने महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। शारदा देवी, जो कि एक सफल कृषि व्यवसायी हैं, ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम बढ़ाया। शारदा देवी ने यह साबित किया कि महिलाएं कृषि क्षेत्र में भी नेतृत्व कर सकती हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त बना सकती हैं।

नारीवाद का समाज पर प्रभाव-

समानता की ओर कदम: नारीवाद के कारण समाज में महिलाओं को समान अधिकार और अवसर मिलने लगे हैं। इसके प्रभाव से महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और राजनीतिक भागीदारी में सुधार हुआ है। नारीवाद ने यह साबित किया है कि महिलाएं भी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के समान सक्षम हैं।

संवेदनशीलता में वृद्धि: नारीवाद ने समाज में लैंगिक समानता की दिशा में जागरूकता बढ़ाई है। अब समाज में महिलाओं के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता और समझ बढ़ी है, जिससे उनके खिलाफ भेदभाव और हिंसा की घटनाएं कम हो रही हैं।

नारीवादी आंदोलनों की प्रभावशीलता: नारीवादी आंदोलनों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए कई कानूनों को लागू किया है। जैसे कि दहेज प्रथा के खिलाफ कानून, महिला सुरक्षा कानून, महिला श्रम अधिकार आदि। इन आंदोलनों ने पितृसत्तात्मक समाज की कई कुरीतियों को समाप्त किया और महिलाओं को उनके हक दिलवाए।

निष्कर्ष
नारीवाद और पितृसत्तात्मक समाज के बीच संघर्ष आज भी जारी है, लेकिन नारीवाद ने समाज में बदलाव लाने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पितृसत्तात्मक समाज ने लंबे समय तक महिलाओं को सीमित किया था, लेकिन नारीवाद ने इस सीमित दृष्टिकोण को चुनौती दी और महिलाओं को समान अधिकार, अवसर और सम्मान प्रदान करने का कार्य किया। यह संघर्ष अब भी जारी है, और भविष्य में समाज में पूर्ण समानता और न्याय की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-07.01.2025-मंगळवार.
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