भारतीय समाज में बदलती पारंपरिक भूमिकाएँ-1

Started by Atul Kaviraje, January 10, 2025, 11:51:22 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

भारतीय समाज में बदलती पारंपरिक भूमिकाएँ-

भारतीय समाज अपनी विविधताओं, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के सामाजिक ढांचे में समय के साथ बदलाव आए हैं, विशेष रूप से पारंपरिक भूमिकाओं में। पहले भारतीय समाज में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका समाज के निर्धारित कर्तव्यों और परंपराओं के हिसाब से तय होती थी, लेकिन आधुनिकता, वैश्वीकरण और शिक्षा के प्रसार के कारण इन पारंपरिक भूमिकाओं में गहरा परिवर्तन हुआ है। यह लेख भारतीय समाज में बदलती पारंपरिक भूमिकाओं की ओर एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करेगा।

भारतीय समाज में बदलती पारंपरिक भूमिकाएँ:
कुटुंब और परिवार की भूमिका: भारतीय परिवार परंपरागत रूप से संयुक्त परिवार की अवधारणा पर आधारित था। परिवार में सभी सदस्य एक साथ रहते थे, बड़े बुजुर्गों का आदर किया जाता था और घर की जिम्मेदारियाँ सामूहिक रूप से निभाई जाती थीं। परंतु, आधुनिकता के कारण न्यूक्लियर परिवार का प्रचलन बढ़ा है, जिसमें माता-पिता और उनके बच्चे एक साथ रहते हैं। यह बदलाव समाज की संरचना और परिवार की भूमिकाओं को प्रभावित कर रहा है। अब परिवार में कम लोग होते हैं और जिम्मेदारियाँ अधिक व्यक्तिगत रूप से निभाई जाती हैं।

स्त्री की भूमिका: भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से स्त्री की भूमिका घर तक सीमित होती थी। उसे घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल और परिवार की देखरेख तक ही सीमित किया जाता था। लेकिन समय के साथ स्त्रियाँ शिक्षा, व्यवसाय और राजनीति में भी अपने कदम जमाने लगी हैं। अब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और समाज के हर क्षेत्र में भागीदारी निभा रही हैं। महिलाएं अब न केवल घर संभालती हैं, बल्कि ऑफिस, राजनीति, खेल, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बना रही हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज के समय में महिला प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश और व्यापारी हैं।

पुरुष की भूमिका: पारंपरिक भारतीय समाज में पुरुष को घर के मुख्य कमाने वाले और परिवार के संरक्षक के रूप में देखा जाता था। उसका कर्तव्य था कि वह परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करे और समाज में अपनी जिम्मेदारियाँ निभाए। लेकिन अब पुरुषों की भूमिका भी बदल गई है। वे अब न केवल घर के बाहर काम करते हैं, बल्कि घर के कामकाज में भी सहायता करते हैं और बच्चों की देखभाल में भी भागीदार बन रहे हैं। यह बदलाव पारंपरिक भूमिकाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी अपनी नई जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए प्रेरित कर रहा है।

बच्चों की भूमिका: पारंपरिक भारतीय समाज में बच्चों का मुख्य कार्य था परिवार की परंपराओं का पालन करना और बड़े-बुजुर्गों का आदर करना। बच्चों के लिए शिक्षा को भी पारंपरिक रूप से अत्यधिक महत्व दिया जाता था। परंतु अब बच्चों के सामने अलग-अलग करियर और भविष्य के मार्ग खुले हुए हैं। अब बच्चों को अपनी शिक्षा के साथ-साथ अपने करियर के लिए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की आजादी दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप, बच्चों की पारंपरिक भूमिका में बदलाव आया है और वे अब खुद के भविष्य को लेकर अधिक आत्मनिर्भर हो गए हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक भूमिका: भारतीय समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। पहले परिवार के प्रत्येक सदस्य को इन मूल्यों के अनुसार आचरण करना होता था। लेकिन अब आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी प्रभाव के कारण, धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ कम हो रही हैं और लोगों के जीवन में अधिक भौतिकवाद का प्रवेश हुआ है। इसके बावजूद, भारतीय समाज में धार्मिक परंपराएँ अभी भी प्रचलित हैं, लेकिन इनका पालन अब पहले जैसा सख्त नहीं रहा है।

लघु कविता:-

पारंपरिक बनावटें बदलती जातीं,
समाज की रचनाएँ नए रूप में आतीं।
स्त्री और पुरुष की भूमिकाएँ बदलें,
नई दिशा, नया संदेश साथ लातीं।
सभी का योगदान हो, यही है संदेश,
समाज में समरसता, यही है हमारी चाह।
🌍👩�👩�👧�👦👨�👩�👧�👦

अर्थ:
समाज में पारंपरिक भूमिकाओं में बदलाव आ रहा है, जो स्त्री, पुरुष और बच्चों के दृष्टिकोण को प्रभावित कर रहा है। अब यह जरूरी है कि हम सभी समाज के हर वर्ग को समान रूप से महत्व दें और एक दूसरे के योगदान को स्वीकार करें। यह बदलाव समाज को और समृद्ध और सशक्त बना रहा है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-10.01.2025-शुक्रवार.
===========================================