16 फरवरी, 2025 - संकष्ट चतुर्थी-

Started by Atul Kaviraje, February 17, 2025, 07:17:54 PM

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Atul Kaviraje

संकष्टी चतुर्थी का महत्व और आध्यात्मिक संदेश-

16 फरवरी, 2025 - संकष्ट चतुर्थी-

संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है, जिसे विशेष रूप से गणेश जी के उपासक बड़े श्रद्धा भाव से मनाते हैं। इस दिन का व्रत विशेष रूप से उन लोगों द्वारा रखा जाता है, जिन्हें जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई या संकट का सामना करना पड़ रहा हो। संकष्टी चतुर्थी का व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, और इसे "गणेश चतुर्थी" के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है, और विशेष रूप से उनके प्रिय मोदक का भोग अर्पित किया जाता है।

संकष्ट चतुर्थी का धार्मिक महत्व:
संकष्ट चतुर्थी का मुख्य उद्देश्य जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति पाना है। 'संकष्ट' शब्द का अर्थ है "कष्ट या कठिनाइयाँ", और 'चतुर्थी' का अर्थ है चतुर्थ दिन, जो कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक संकट दूर होते हैं। भक्तिपूर्वक व्रत करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, और उनके आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

यह दिन विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो किसी संकट से जूझ रहे होते हैं, जैसे कि जीवन की कठिनाइयाँ, स्वास्थ्य समस्याएँ, पारिवारिक विवाद या आर्थिक संकट। संकष्ट चतुर्थी पर व्रत रखने से भक्त गणेश जी से अपनी समस्याओं का समाधान मांगते हैं, और उनके आशीर्वाद से वे समस्याओं से उबरते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि:

उबटन और स्नान: इस दिन प्रातः जल्दी उठकर उबटन और स्नान करना आवश्यक है।
व्रत का संकल्प: दिनभर उपवासी रहते हुए, व्रत का संकल्प करना चाहिए। व्रत का उद्देश्य भगवान गणेश की उपासना और संकटों से मुक्ति है।
गणेश पूजन: दिन में भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए, जिसमें उनका ध्यान, मंत्रोच्चारण और फूल-मिठाई अर्पित करना शामिल है। गणेश जी को मोदक का भोग अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है।
रात्रि में गणेश स्तोत्र का पाठ: संकष्ट चतुर्थी की रात को गणेश स्तोत्र, गणपति अथर्वशीर्ष या गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए।
ब्राह्मण को भोजन: व्रत के समाप्ति पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना और उन्हें दक्षिणा देना चाहिए।

संकष्टी चतुर्थी पर भक्ति भाव से एक कविता:-

गणेश जी की कृपा से, संकट दूर हो जाए,
सभी दुखों से हम निजात पा जाएं।
संकष्ट चतुर्थी के दिन, हम व्रत रखें,
गणेश जी की आराधना में, भक्ति भाव से संकल्प लें।

जो भी दुखी हो, जो भी संकट में हो,
गणेश जी की पूजा से हर दुख हर हो।
आओ मिलकर हम सब, इस दिन को मनाएं,
संकष्ट चतुर्थी का व्रत हम सभी करें, सच्चे दिल से भगवान को याद करें।

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ और प्रभाव:
संकष्टी चतुर्थी का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं और कष्टों से उबरने का एक रास्ता भी है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है, और साथ ही व्यक्ति की समृद्धि में वृद्धि होती है। जब कोई संकट या कठिनाई जीवन में आती है, तो संकष्टी चतुर्थी का व्रत कर व्यक्ति भगवान गणेश से अपने कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करता है।

गणेश जी के आशीर्वाद से न केवल सांसारिक सुख मिलते हैं, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त होती है। यह व्रत व्यक्ति को अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है, जिससे वह किसी भी संकट का सामना साहस के साथ कर सकता है।

संकष्टी चतुर्थी का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व:
संकष्टी चतुर्थी हिंदू समाज में एक बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है। यह दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी बनता है। गणेश जी की पूजा से हर व्यक्ति को न केवल भौतिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। इस दिन के माध्यम से, समाज में एकता और सामूहिकता का संदेश भी फैलता है, क्योंकि लोग मिलकर भगवान गणेश की पूजा करते हैं और एक-दूसरे के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

उदाहरण:
वह दिन आया है, संकष्टी चतुर्थी का,
सभी भक्तों के दिल में उमंग और खुशी का।
गणेश जी की पूजा से संकट दूर हो जाएं,
उनकी कृपा से सभी के जीवन में खुशियाँ आएं।

संकष्टी चतुर्थी न केवल एक उपासना का दिन है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि जीवन में आने वाली समस्याएँ अस्थायी होती हैं। केवल सही मार्गदर्शन और भक्ति के माध्यम से हम उन समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। भगवान गणेश की कृपा से हर संकट का अंत होता है और हर दुख से मुक्ति मिलती है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-16.02.2025-रविवार.
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