विष्णु का 'कृष्ण' अवतार और गीता में उनका तत्त्वज्ञान-

Started by Atul Kaviraje, February 19, 2025, 07:58:24 PM

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Atul Kaviraje

विष्णु का 'कृष्ण' अवतार और गीता में उनका तत्त्वज्ञान-
(Vishnu's Krishna Avatar and Its Philosophy in the Gita)

परिचय:

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से कृष्ण का अवतार सबसे प्रमुख और विशिष्ट माना जाता है। कृष्ण ने अपने जीवन के प्रत्येक पल में प्रेम, नीति, धर्म, और भक्ति के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए। विशेष रूप से महाभारत के भीष्म पर्व में स्थित श्री कृष्ण का संवाद, जिसे भगवद गीता के नाम से जाना जाता है, न केवल हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर भी है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म, भक्ति, और योग के सिद्धांतों से संबंधित गहरी शिक्षाएं दीं। इन शिक्षाओं का आधार उन्‍होंने अपने अवतार के रूप में अपनी दिव्य उपस्थिति और दर्शन से किया।

1. कृष्ण का अवतार:

भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण का उद्देश्य पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करना था। जब दुनिया में पाप और अधर्म की स्थिति बढ़ी, तो भगवान ने अपने रूप में कृष्ण का अवतार लिया। कृष्ण ने न केवल पापियों का वध किया, बल्कि उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अपने जीवन का हर क्षण समर्पित किया।

कृष्ण का अवतार एक युगपुरुष के रूप में हुआ, जिन्होंने जीवन को पूरी तरह से एक साधक की तरह जीने का आदर्श प्रस्तुत किया। कृष्ण का जीवन एक शिक्षक, नायक, प्रेमी और भगवान के रूप में एक सर्वांगीण उदाहरण था।

2. गीता में कृष्ण का तत्त्वज्ञान:

भगवद गीता में श्री कृष्ण ने जो तत्त्वज्ञान दिया, वह न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए अमूल्य है। गीता के 18 अध्यायों में कृष्ण ने कई महत्वपूर्ण दर्शन बताए हैं, जिनमें मुख्य रूप से कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, और राज विद्या का समावेश है।

कर्म योग:

कर्म योग का तत्त्वज्ञान श्री कृष्ण ने गीता में विस्तार से बताया। उन्होंने अर्जुन से कहा: "तुम्हें केवल अपने कर्म करने चाहिए, परंतु कर्मों के फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।"
यह उपदेश हमें यह सिखाता है कि हमें निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और कर्म करते समय उसके परिणाम से विचलित नहीं होना चाहिए। जीवन में हमें अपने कर्मों को भगवान को समर्पित करना चाहिए और उनका फल त्याग देना चाहिए।

उदाहरण:
कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि युद्ध उनके कर्तव्य के रूप में है, और वह इसे बिना किसी फल की इच्छा के करें। यदि अर्जुन अपने कर्तव्य से भागते हैं, तो वह अपने जीवन के उद्देश्य से भटक जाएंगे।

ज्ञान योग:
कृष्ण ने ज्ञान योग के माध्यम से यह बताया कि आत्मा शाश्वत है और उसे शरीर की नश्वरता से अलग समझा जाना चाहिए। उन्होंने अर्जुन को यह उपदेश दिया कि आत्मा का न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु। केवल शरीर का नाश होता है, आत्मा अमर है।

उदाहरण:
कृष्ण ने कहा, "तुमारा शरीर नष्ट हो सकता है, लेकिन तुम्हारी आत्मा अडिग और अमर है।" इस ज्ञान से अर्जुन को युद्ध में मानसिक शांति और साहस मिला।

भक्ति योग:
भक्ति योग के बारे में कृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से मुझे समर्पित करता है, वह अपने जीवन में हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है। कृष्ण के अनुसार, भक्ति की शक्ति सबसे महान है, और वही व्यक्ति परमात्मा के साथ एकाकार होता है।

उदाहरण:
कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "जो मुझे बिना किसी शंका के भक्ति करते हैं, मैं उनका उद्धार करता हूं और उनका साथ कभी नहीं छोड़ता।"

राज विद्या और राज गुह्य:
कृष्ण ने गीता के 9वें अध्याय में राज विद्या (राज्य का विज्ञान) और राज गुह्य (गोपनीय ज्ञान) का वर्णन किया। यह ज्ञान परम ज्ञान है और इसे केवल भक्ति करने वाले व्यक्ति को ही समझ में आता है। यह तत्त्वज्ञान सभी प्रकार के संदेहों और भ्रमों को दूर करने के लिए है।

उदाहरण:
कृष्ण ने कहा, "जो व्यक्ति मुझे परम सत्य के रूप में समझता है, वह सारे संसार से परे हो जाता है।"

लघु कविता और अर्थ:-

कविता:-

"कृष्ण का ज्ञान, शक्ति का रूप,
जो हर दिल में बसे, वही सच्चा योग।
कर्म करो, भक्ति में लाओ विश्वास,
जीवन में आ जाएगा शांति का आभास।" 🌸💫

अर्थ:
यह कविता भगवान श्री कृष्ण के तत्त्वज्ञान को दर्शाती है, जिसमें कर्म, भक्ति और विश्वास की महत्ता को बताया गया है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि भगवान कृष्ण का मार्ग अपनाकर हम अपने जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

प्रतीक चिन्ह और इमोजी:

🕉�✨💖🙏🌿

चित्र:
चित्र में भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए दिखाया जा सकता है, जबकि अर्जुन उनके सामने खड़ा है, और कृष्ण ने उसे उपदेश देते हुए ज्ञान की दीक्षा दी है। कृष्ण की शांत और दिव्य मुद्रा दर्शाती है कि उनका मार्गदर्शन केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक भी है।

निष्कर्ष:

भगवान श्री कृष्ण का अवतार और गीता में दिया गया उनका तत्त्वज्ञान आज भी हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का मार्ग दिखाता है। कर्म, ज्ञान, भक्ति और संतुलन का पालन करके हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं। गीता का तत्त्वज्ञान न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि जीवन की किसी भी स्थिति में मानसिक शांति और आत्मविकास की ओर ले जाने के लिए है। कृष्ण का अवतार और उनका ज्ञान हर युग में प्रासंगिक है और मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है।

आइए, हम कृष्ण के उपदेशों को जीवन में उतारें और आत्मज्ञान, शांति, और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाएं। 🌸🙏💖

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-19.02.2025-बुधवार.
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