कृषि और किसान – भारतीय समाज की रीढ़-1

Started by Atul Kaviraje, March 26, 2025, 08:01:13 PM

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Atul Kaviraje

कृषि और किसान-

कृषि और किसान – भारतीय समाज की रीढ़-

परिचय:

कृषि और किसान भारतीय समाज के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं। कृषि, भारत की आर्थ‍िक, सांस्कृतिक और सामाजिक धारा का प्रमुख हिस्सा रही है। भारतीय कृषि का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए न केवल एक स्तंभ है, बल्कि इसका सीधा संबंध भारत की सांस्कृतिक धरोहर से भी है। किसान, कृषि कार्य में न केवल अपने शरीर से, बल्कि अपने दिल और आत्मा से भी काम करता है। वह समाज के सबसे संघर्षशील वर्गों में से एक है, जो अत्यधिक मेहनत, पसीने और उम्मीदों के साथ भूमि में जीवन की बुवाई करता है।

कृषि का महत्व:
भारत में कृषि को हमेशा से जीवन के आधार के रूप में माना गया है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या का जीवन कृषि पर निर्भर है। यह न केवल खाने-पीने की चीज़ों का उत्पादन करता है, बल्कि इससे रोजगार, विदेशी मुद्रा आय, और ग्रामीण विकास भी प्रभावित होते हैं। कृषि में पैदावार के बिना देश की जीवन रेखा अवरुद्ध हो सकती है। कृषि से जुड़े उत्पाद जैसे धान, गेहूं, दाल, तंबाकू, तिलहन, फल, और सब्जियाँ न केवल भारत के उपभोग के लिए जरूरी होते हैं, बल्कि कई बार ये निर्यात भी किए जाते हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है।

किसान का जीवन:
किसान का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण और कड़ी मेहनत से भरा हुआ होता है। उसे खेतों में विभिन्न मौसमों और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, फिर भी वह कभी हार नहीं मानता। वह अपनी पूरी मेहनत से बुवाई से लेकर फसल काटने तक की प्रक्रिया में लगा रहता है।

भारत के अधिकांश किसान छोटे और सीमांत होते हैं, जिनके पास बहुत कम संसाधन होते हैं। उनकी जीवनशैली में बहुत सारी चुनौतियाँ होती हैं – चाहे वह कर्ज का दबाव हो, सूखा हो, बेमौसम बारिश हो, या बाजार में सही मूल्य न मिलना हो। इन समस्याओं के बावजूद, किसान अपनी पूरी ताकत से काम करता है क्योंकि उसे पता होता है कि उसकी मेहनत से समाज का पेट भरता है और देश का विकास होता है।

उदाहरण:
किसान रामु उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव का निवासी है। उसके पास 5 एकड़ ज़मीन है, जिस पर वह धान और गेहूं उगाता है। रामु दिन-रात खेतों में काम करता है, बुवाई से लेकर फसल काटने तक की हर प्रक्रिया में अपनी पूरी मेहनत लगाता है। हालाँकि, मौसम की अनिश्चितताओं के कारण उसे कभी सूखा, कभी बेमौसम बारिश का सामना करना पड़ता है। कभी बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलता और कर्ज का दबाव भी बढ़ जाता है। लेकिन रामु फिर भी हिम्मत नहीं हारता। वह जानता है कि उसके बिना समाज की धारा रुकी रह जाएगी, और अगर वह खेती छोड़ देगा तो उसका परिवार और गाँव दोनों ही प्रभावित होंगे।

कृषि संकट और चुनौतियाँ:
हालाँकि भारतीय कृषि की स्थिति मजबूत रही है, लेकिन इसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:

जल संकट:
कृषि उत्पादन के लिए पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है। बहुत से क्षेत्र जल संकट का सामना कर रहे हैं, जिससे फसलें प्रभावित हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भी पानी की उपलब्धता में अनिश्चितता बढ़ रही है।

कृषि कर्ज:
अधिकांश किसान ऋण लेकर खेती करते हैं। बाजार में फसल का सही मूल्य न मिल पाना और प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों पर कर्ज का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। कई किसान कर्ज़ के बोझ तले दब कर आत्महत्या तक करने की स्थिति में पहुँच जाते हैं।

मौसम परिवर्तन:
बेमौसम बारिश, सूखा, या ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाएँ किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। ये न केवल फसल को नष्ट कर देती हैं, बल्कि किसानों की मेहनत और उम्मीदों को भी धराशायी कर देती हैं।

आधुनिक तकनीकी का अभाव:
बहुत से किसान अभी भी पारंपरिक तरीकों से खेती करते हैं, जिससे उत्पादन क्षमता में कमी आती है। तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण की कमी के कारण वे नए और प्रभावी कृषि तरीकों को अपना नहीं पाते।

बाजार मूल्य:
किसानों को अपनी फसल के उचित मूल्य की प्राप्ति नहीं होती। कई बार बिचौलियों के कारण किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिलता, जो उनकी आर्थिक स्थिति को और भी खराब कर देता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-25.03.2025-मंगळवार.
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