श्री स्वामी समर्थ और उनके शिष्यों की प्रतिज्ञाएँ-1

Started by Atul Kaviraje, May 08, 2025, 10:32:46 PM

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Atul Kaviraje

श्री स्वामी समर्थ और उनके शिष्यों की प्रतिज्ञाएँ-
(श्री स्वामी समर्थ के अनुसार शिष्य की प्रतिज्ञाएँ)
(The Disciple's Vows According to Shri Swami Samarth)

श्री स्वामी समर्थ और उनके शिष्यों की प्रतिज्ञाएँ-
(The Disciple's Vows According to Shri Swami Samarth)

परिचय (Introduction):
श्री स्वामी समर्थ महाराष्ट्र के एक महान संत और गुरु थे, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से शिष्यत्व, भक्ति और साधना की असली पहचान दी। वे द्वैतवाद और अद्वैतवाद के बीच संतुलन बनाने वाले महान योगी थे। स्वामी समर्थ का जीवन पूरी तरह से अपने शिष्यों के मार्गदर्शन में समर्पित था और उन्होंने हमेशा यह सिखाया कि एक सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु की आज्ञाओं का पालन करता है और जीवन में आत्मसमर्पण के साथ सत्य की खोज करता है।

श्री स्वामी समर्थ ने शिष्यों को न केवल भक्ति की शिक्षा दी, बल्कि उनके जीवन में तात्त्विक जागृति और दिव्य शक्ति के प्रति विश्वास भी जाग्रत किया। स्वामी समर्थ के अनुसार, एक शिष्य को निश्चित प्रतिज्ञाएँ लेनी चाहिए, जिनके माध्यम से वह अपनी आत्मिक प्रगति और गुरु के प्रति समर्पण दिखा सकता है।

श्री स्वामी समर्थ के अनुसार शिष्य की प्रतिज्ञाएँ (Disciple's Vows According to Shri Swami Samarth):
श्री स्वामी समर्थ के शिष्यों के लिए दी गई प्रतिज्ञाएँ उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये प्रतिज्ञाएँ न केवल उनके आचार-विचार को दिशा देती हैं, बल्कि उन्हें भक्ति और साधना के उच्चतम स्तर तक पहुँचाने के लिए एक ठोस मार्ग दिखाती हैं। इन प्रतिज्ञाओं का पालन करने से शिष्य अपनी आत्मा को शुद्ध करता है और गुरु के आशीर्वाद से जीवन को परम सुख की ओर अग्रसर करता है।

1. सत्य बोलने की प्रतिज्ञा (Vow to Speak the Truth):
स्वामी समर्थ ने अपने शिष्यों से हमेशा सत्य बोलने की प्रतिज्ञा ली। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति सत्य का पालन करता है, वह जीवन में कभी भी किसी प्रकार के द्वंद्व या धोखाधड़ी का शिकार नहीं होता। सत्य बोलने से न केवल आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

उदाहरण:
एक शिष्य जब किसी भी परिस्थिति में सत्य बोलता है, तो उसे अपने आत्मा से जुड़ी सच्चाई का अहसास होता है और वह गलतियों से दूर रहता है।

चिन्ह: 🗣�🕊�💬

2. गुरु के प्रति समर्पण की प्रतिज्ञा (Vow of Complete Devotion to the Guru):
स्वामी समर्थ ने हमेशा शिष्यों से कहा कि एक शिष्य का पहला कर्तव्य गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण है। शिष्य को अपने गुरु के आदेशों का पालन बिना किसी प्रश्न के करना चाहिए। गुरु का आदेश ही उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मार्गदर्शन होता है।

उदाहरण:
शिष्य को यह समझाना कि गुरु का आशीर्वाद ही उसकी पूरी साधना को सिद्धि तक पहुँचाता है। गुरु के प्रति पूरी निष्ठा और प्रेम शिष्य को उन्नति की ओर मार्गदर्शित करता है।

चिन्ह: 🙇�♂️🙏🌟

3. अहंकार और घमंड को छोड़ने की प्रतिज्ञा (Vow to Leave Ego and Pride):
स्वामी समर्थ ने शिष्यों से यह भी कहा कि अहंकार और घमंड से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह मनुष्य को आत्मज्ञान से वंचित करता है। जब शिष्य अपना अहंकार और घमंड छोड़ देता है, तो उसे शांति और संतुष्टि मिलती है। शिष्य को विनम्रता के साथ जीवन जीने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।

उदाहरण:
"मैं न कोई महान व्यक्ति हूँ और न ही किसी से श्रेष्ठ हूँ, मैं तो बस एक साधारण इंसान हूँ," इस प्रकार की सोच शिष्य को किसी भी प्रकार के आत्ममोह से मुक्त करती है।

चिन्ह: 🙏💫🌱

4. सेवा और दया की प्रतिज्ञा (Vow of Service and Compassion):
स्वामी समर्थ ने शिष्यों से कहा कि अपनी सेवा और दया की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। एक शिष्य को हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। सेवा में भगवान का दर्शन होता है और यह शिष्य के जीवन को शुद्ध करता है।

उदाहरण:
शिष्य को यह सिखाया जाता है कि सेवा में ही सच्चा सुख मिलता है, क्योंकि भगवान की शक्ति सबसे पहले उन लोगों के रूप में प्रकट होती है जो हमें जरूरतमंद दिखाई देते हैं।

चिन्ह: 🤝💖🌍

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-08.05.2025-गुरुवार.
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