🙏 जानुबाई देवी यात्रा – करंजखोप, तालुका: कोरेगाव- 🗓️ तिथि: 09 मई 2025-

Started by Atul Kaviraje, May 09, 2025, 10:46:11 PM

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Atul Kaviraje

जानुबाई देवी तीर्थयात्रा सफर -करंजखोप, तालुका-कोरेगाव-

🙏 जानुबाई देवी यात्रा – करंजखोप, तालुका: कोरेगाव-
🗓� तिथि: 09 मई 2025, शुक्रवार
📍 स्थान: करंजखोप, तालुका कोरेगाव, जिला – सातारा, महाराष्ट्र
🔱 विषय: भक्तिभाव पूर्ण, भावनात्मक, विवेचनात्मक विस्तृत लेख – चित्र, प्रतीक, भावनाओं सहित

🌸 भूमिका – श्रद्धा और परंपरा का उत्सव
हर वर्ष मई मास की विशेष तिथि को करंजखोप गाँव में स्थित श्री जानुबाई देवी मंदिर में भव्य यात्रा (जात्रा) का आयोजन होता है। यह यात्रा केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्रामसमूह, आस्था और सांस्कृतिक एकता का जिवंत प्रतीक है।

🪔 यह यात्रा महाराष्ट्र की स्त्री शक्ति, लोक श्रद्धा, पारंपरिक भक्ति की अद्भुत मिसाल है।

🌺 जानुबाई देवी – स्वरूप और श्रद्धा
जानुबाई देवी को शक्ति की अवतार, काली-दुर्गा का लोक रूप माना जाता है। उन्हें मातृशक्ति, संरक्षक देवी, और ग्राम देवी के रूप में पूजा जाता है।

🔱 उनका मंदिर करंजखोप की पहाड़ियों के बीच एक ऊँचे स्थान पर स्थित है, जहाँ से पूरी बस्ती को देखा जा सकता है।

🛐 प्रतीक रूप में देवी:

चार हाथों में त्रिशूल, डमरू, कमल, और अभय मुद्रा

वाहन – शेर 🦁

वस्त्र – लाल रंग की साड़ी

सिर पर मुकुट और सोने की नथ

🚩 यात्रा का स्वरूप और आयोजन
पालखी सोहळा (पालकी यात्रा) –
ग्रामजन पूरे गाँव में डोल-ताशां के साथ पालखी लेकर निकलते हैं। रास्ते भर भजन, कीर्तन और जयघोष होते हैं।
🥁🎶🚩

भंडारा एवं महाप्रसाद –
देवी भक्तों को अन्नदान – खिचड़ी, पूरनपोळी, भजी आदि – प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
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झेंडे, माणके, पारंपरिक वेशभूषा –
महिलाएँ नऊवारी साड़ी पहनकर, पुरुष पारंपरिक धोतर-फेटा में शामिल होते हैं। सभी हाथों में नारियल और पुष्प लिए होते हैं।
🌺🌴👘

भजनी मंडळ –
गाँव के भजन मंडल भक्तिरस से सराबोर करते हैं – "जाणूबाईचा गजर गाजतो गावा," इत्यादि।
🎵🪔🕉�

मानाच्या झेंड्यांचं पूजन –
ग्रामदेवी को अर्पित प्रमुख ध्वजों का पूजन – यह गौरव का प्रतीक होता है।
🚩🌼

✨ आध्यात्मिक महत्त्व (Spiritual Importance)
🔆 जानुबाई यात्रा ग्रामवासियों के लिए सालभर की श्रद्धा, कृतज्ञता और आशा का महोत्सव है।
यह दिवस न केवल देवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है, बल्कि गाँव में एकता, सहयोग और संस्कृति को भी मज़बूत करता है।

📿 यह यात्रा...

मन की शुद्धि देती है

जीवन में नई ऊर्जा भरती है

कुटुंब, समाज और देवत्व को जोड़ती है

🌼 उदाहरण और अनुभव
सुमनताई (60 वर्ष) –
"मैं हर वर्ष देवीच्या साजर्‍या सणाला पालखी पुढं नारळ वाहते. माझं जीवन तिच्या कृपेवर आहे."
➡️ भक्तिभाव और परंपरा की जीवंत मिसाल।

शिवाजी (12 वर्ष) –
"मी पहिल्यांदा डोल-ताशावर झेंडा घेतला. खूप अभिमान वाटला."
➡️ नवीन पिढी भी इस परंपरा में श्रद्धा से जुड़ रही है।

🌟 विवेचन – संस्कृति, परंपरा और पहचान
✅ जानुबाई यात्रा गाँव के सांस्कृतिक अस्तित्व का प्रतीक है।
✅ यह ग्रामीण समाज की मातृकेंद्रित भक्ति परंपरा को संरक्षित रखती है।
✅ इस यात्रा के माध्यम से गाँव में सामूहिक सहभाग, भक्ति, प्रेम और सहयोग का परिचय होता है।
✅ ऐसे महोत्सव हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं, और यह स्मृति बनकर जीवनभर साथ रहती है।

🙏 निष्कर्ष (Conclusion)
जानुबाई देवी यात्रा एक धार्मिक यात्रा भर नहीं – यह श्रद्धा, संस्कृति और समाज की आध्यात्मिक ऊर्जा का उत्सव है।
यह न केवल देवी की कृपा के लिए, बल्कि ग्राम विकास और लोक चेतना के लिए भी महत्वपूर्ण है।

🛐 "देवी जानुबाईच्या कृपेने गावात सुख, शांती आणि समृद्धी लाभो."

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-09.05.2025-शुक्रवार.
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