🌄 अगस्त्य लोप 📅 गुरुवार, 15 मई 2025 🕉️🙏🌿🌊🌞💫

Started by Atul Kaviraje, May 15, 2025, 10:25:18 PM

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Atul Kaviraje

📿🕉� भक्ति-भाव पूर्ण दीर्घ हिंदी कविता-

🌄 अगस्त्य लोप
📅 गुरुवार, 15 मई 2025
🕉�🙏🌿🌊🌞💫

🌺 कविता का परिचय
यह कविता "अगस्त्य लोप" नामक उस आध्यात्मिक क्षण को समर्पित है जब ऋषि अगस्त्य की उपस्थिति से प्रकृति की शक्तियाँ शांत हो गईं, विशेषकर समुद्र और दिशा की असंतुलनकारी शक्तियाँ।
कविता में सात चरण हैं, प्रत्येक में चार पंक्तियाँ, सरल तुकबंदी के साथ, और हर चरण के बाद उसका संक्षिप्त अर्थ (हिंदी में) प्रस्तुत है।

🕉� प्रथम चरण
दिशा जिधर न झुकी कभी, वो ऋषि दिखे अकेले।
जटाओं में थी ज्वाल छुपी, चीर सके जो मेघ के मेले।
नदियाँ थमीं, पवन भी रुकी, अग्नि ने लीं वीणा के लेले।
अगस्त्य तप में खोए रहे, नभ छूते साधु के ठेले।

🔸 अर्थ:
ऋषि अगस्त्य की उपस्थिति इतनी शक्तिशाली थी कि जहाँ भी वे गए, प्रकृति खुद रुक गई। उनके तेज और तप की आभा ने दिशा और तत्वों को झुका दिया।

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🌿 द्वितीय चरण
दक्षिण दिशा की गोद में, वह बैठा सूर्य सम तेज।
मन की गति से दूर वह, स्वयं काल से भी सहज।
जिनके शब्दों में मंत्र बसें, जिनकी दृष्टि बने द्विज।
ज्ञान की गंगा बहा गए, करुणा का जिनमें था सेज।

🔸 अर्थ:
ऋषि अगस्त्य केवल तपस्वी नहीं थे, बल्कि ज्ञान, करुणा और दिशा के प्रतीक थे। उनके वचन वेदों जैसे पवित्र और उनके विचार धर्म का सार थे।

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🌊 तृतीय चरण
समुद्र उफनता रुक गया, जब ऋषि ने कहा – 'शांत हो!'
जल में जैसे मंत्र पड़ा, गहराइयाँ बोलीं – 'प्रणाम लो'।
सागर ने अपना गर्व छोड़ा, विनम्र होकर कहा – 'जो हो'।
एक साधु ने मौन रहकर, पृथ्वी को कर दिया संजीवनी बो।

🔸 अर्थ:
ऋषि अगस्त्य की आज्ञा से उग्र समुद्र भी शांत हो गया। उनकी शक्ति केवल बाहरी नहीं थी, बल्कि आंतरिक स्थिरता की सबसे बड़ी मिसाल थी।

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🔥 चतुर्थ चरण
तप से जिनका ह्रदय जला, पर वाणी रही स्नेहभरी।
क्रोध में भी ऋत छिपा हो, ऐसी साधना दुर्लभ परी।
उन्होंने लोक का मार्ग गढ़ा, जहां धर्म की हो सवारी।
कर्म और शांति के रथ पर, बढ़ती रही ब्रह्मचारी।

🔸 अर्थ:
ऋषि अगस्त्य का जीवन यह सिखाता है कि तप और क्रोध के भीतर भी प्रेम और धर्म छिपा हो सकता है। वे कर्म, संयम और संतुलन के प्रतीक हैं।

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🌸 पंचम चरण
कैलाश से जो नीचे उतरे, वो हिम नहीं – तेज थे।
धरती की पीड़ा पी गए, अमृत नहीं – मंत्र भरे सेज थे।
दिग्गज भी जिनसे कांप उठें, ऐसे निर्मल हृदय के मेज थे।
अगस्त्य ऋषि की लीला को, शतशत वंदन आज कहे।

🔸 अर्थ:
ऋषि अगस्त्य केवल महात्मा नहीं, बल्कि मानवता के संरक्षक थे। उन्होंने धरती के संतुलन के लिए अपना तप अर्पित किया।

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🌞 षष्ठम चरण
दक्षिण का दीप बने, जहाँ अंधकार घना था।
जहाँ भाषा मौन थी, वहां ज्ञान का बना बना पथ था।
उन्होंने तम को तोड़ा, शब्दों में दिया श्रुति का घट था।
अगस्त्य न सिर्फ ऋषि, एक युग-प्रकाश का तथ्य था।

🔸 अर्थ:
अगस्त्य मुनि ने दक्षिण भारत में ज्ञान और संस्कृति का दीप जलाया। वे भारतीय परंपरा के वास्तविक प्रसारक और पथप्रदर्शक थे।

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🕊� सप्तम चरण
आज भी जब मन थकता है, एक छवि यादों में आए।
ऋषि अगस्त्य की वह मुद्रा, जिसमें सृष्टि भी शांति पाए।
तप की लौ से जो चमके, उस प्रकाश से हर पथ पाए।
उनकी स्मृति में झुके चरण, मन भीतर गहराई में समाए।

🔸 अर्थ:
आज भी जब मन अशांत होता है, तो ऋषि अगस्त्य का स्मरण एक ऊर्जा देता है। उनका जीवन हमें स्थिरता, साधना और आत्मबल की ओर ले जाता है।

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📜 निष्कर्ष:
ऋषि अगस्त्य का "लोप" कोई अंत नहीं था, बल्कि वह प्रकाश का विस्तार था। जब वे संसार से लीन हुए, तब उन्होंने संपूर्ण प्रकृति में स्थिरता और शांति की ज्योति बिखेर दी।

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"तप से तपस्वी बने, तेज से तेजोमय – अगस्त्य ऋषि!"

"जहाँ शब्द थम जाएं, वहां मौन बोले – अगस्त्य वहाँ रहते हैं।"

--अतुल परब
--दिनांक-15.05.2025-गुरुवार.
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