"शिव काव्य एवं संत काव्य"-"शिव भी भक्ति, संत भी दीप"

Started by Atul Kaviraje, May 26, 2025, 10:01:07 PM

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Atul Kaviraje

शिव काव्य एवं संत काव्य-
(शिव काव्य और संत काव्य)
(Shiva Poetry and Saint Poetry)

🕉� दीर्घ हिंदी कविता – "शिव काव्य एवं संत काव्य"
(एक भक्तिभावपूर्ण, अर्थपूर्ण, सरल तुकबंदी में दीर्घ हिंदी कविता – ७ चरण, प्रत्येक में ४ पंक्तियाँ, हर चरण का अर्थ, चित्र, प्रतीक व इमोजी सहित)

📝 कविता शीर्षक: "शिव भी भक्ति, संत भी दीप"
(शिव तत्व और संत विचार – दोनों का समन्वय)

🔱 चरण 1: कैलाश पर ध्यानमग्न शिव
बैठे हैं शंभू हिमगिरि में, ध्यान लगाए मौन।
त्रिशूल हाथ, भस्म शरीर, नयन करें सब खोज।
गंगा जटाओं में बहे, सर्प करें श्रृंगार।
त्याग और तप में रमे, रचते सृष्टि का सार।

📘 अर्थ:
भगवान शिव ध्यान, त्याग और ज्ञान के प्रतीक हैं। उनका रूप रहस्य और करुणा से भरा है।

🖼� प्रतीक: ⛰️🧘�♂️🕉�

🌼 चरण 2: संतों की सहज वाणी
न भावे बाह्य कर्म उन्हें, न पूजन की रीत।
प्रेम भरा मन चाहिए, जहाँ बसता है जीत।
नाम जपे, कर सेवा करे, यही संतों का धर्म।
मन से मन का संवाद हो, सच्चा हो सत्कर्म।

📘 अर्थ:
संतों के अनुसार, सच्ची भक्ति मन की पवित्रता और सेवा से होती है, न कि केवल रीति से।

🖼� प्रतीक: 🙏📿🌺

🔔 चरण 3: तांडव में ब्रह्मांड का गान
शिव के तांडव में लय है, सृष्टि की गति तेज।
ध्वंस और सृजन दोनों, इसमें सम भाव से खेल।
डमरू से निकले स्वर जब, उठे आत्मा की गूंज।
जाग उठे चेतना मन में, कटे अज्ञान की सूंज।

📘 अर्थ:
शिव का तांडव केवल नृत्य नहीं, ब्रह्मांड की गति और चेतना का जागरण है।

🖼� प्रतीक: 🔱🎵🌌

📚 चरण 4: कबीर, ज्ञानेश्वर का पाठ
साखी बोले कबीर की, काटे मन का भ्रम।
ज्ञानेश्वर बोले मराठी में, हर दिल में रम।
नामदेव का भाव गहरा, तुकाराम की चाल।
हर संत बोले एक ही बात – प्रभु तेरे नाल।

📘 अर्थ:
हर संत ने भाषा चाहे कोई भी हो, एक ही संदेश दिया – भक्ति, प्रेम और ईश्वर का साक्षात्कार।

🖼� प्रतीक: 📖🌼📿

🔥 चरण 5: शिव का वैराग्य, संतों की शक्ति
शिव का भस्म-भूषण कहे, संसार माया मात्र।
संत कहे "मो सम कौन नादान", कर तज ममता पात्र।
दोनों में है सरलता, दोनों में गूढ़ विचार।
बाह्य तज, अंतर खोजें, मिल जाएँ संसार।

📘 अर्थ:
शिव और संत दोनों वैराग्य के पथिक हैं, जो बाह्य संसार को त्यागकर आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं।

🖼� प्रतीक: 🪔☸️🧘�♂️

🫱 चरण 6: संत-शिव एक ही स्रोत से
शिव हैं आदि योगी, संत उनका ही स्वर।
एक ने साधा हिमालय, दूसरे ने साधा नगर।
कर्म-योग-भक्ति में जो हो संतुलन सही,
वही शिव तत्व, वही संतत्व, यही सत्य कहीं।

📘 अर्थ:
शिव और संत भले मार्ग भिन्न दिखें, परंतु दोनों एक ही सत्य की साधना करते हैं।

🖼� प्रतीक: 🕉�✍️🫶

🌈 चरण 7: अंतिम संदेश – भक्ति की राह
शिव कहें "ध्यान में रम", संत कहें "नाम जप"।
शिव रचें भीतर ब्रह्म, संत दें श्रद्धा का रस।
यदि जीवन हो शांत, और मन से हो जुड़ाव,
तो शिव भी मिलेंगे, और संत भी बनेंगे नाव।

📘 अर्थ:
भक्ति, श्रद्धा और सेवा से शिव भी मिलते हैं, और संतत्व भी सुलभ होता है। दोनों ही पथ हमें सत्य की ओर ले जाते हैं।

🖼� प्रतीक: 🪔📿🌄

✨ संक्षिप्त निष्कर्ष:
🔱 "शिव काव्य जीवन को भीतर से शुद्ध करता है,
संत काव्य जीवन को बाहर से निर्मल करता है।
दोनों ही आत्मा के द्वार खोलते हैं।"

--अतुल परब
--दिनांक-26.05.2025-सोमवार. 
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