🪔 संत ज्ञानेश्वर माऊली पालखी प्रस्थान – आळंदी:-तारीख: 19 जून 2025, गुरुवार-

Started by Atul Kaviraje, June 20, 2025, 02:57:16 PM

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Atul Kaviraje

यहाँ संत ज्ञानेश्वर माऊली पालखी प्रस्थान-आळंदी पर एक भक्तिभावपूर्ण और विश्लेषणात्मक हिंदी लेख प्रस्तुत है —

🪔 संत ज्ञानेश्वर माऊली पालखी प्रस्थान – आळंदी: एक भक्तिभावपूर्ण विश्लेषणात्मक लेख 🕉�🙏

📅 तारीख: 19 जून 2025, गुरुवार
📍 स्थान: आळंदी, पुणे जिला, महाराष्ट्र
🛕 घटना: संत ज्ञानेश्वर माऊली पालखी प्रस्थान समारोह

✨ प्रस्तावना
भारत भूमि संतों, भक्तों और आध्यात्मिक समृद्धि की भूमि रही है। ऐसी ही एक महान संत परंपरा में एक दिव्य नक्षत्र हैं – संत ज्ञानेश्वर माऊली 🙏। हर वर्ष आषाढ़ मास में आळंदी से पंढरपूर की ओर निकाली जाने वाली पालखी केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भक्ति का महासागर 🌊 और आत्मिक एकता का प्रतीक 🕊� है।

🌼 इस दिन का महत्व (महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से)
पालखी प्रस्थान समारोह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहाँ हजारों वारकरी "ज्ञानोबा माऊली तुकाराम" 🚩 का उद्घोष करते हुए, टाळ-मृदंग की ताल पर अभंग गाते हुए, नाचते-गाते हैं।

🔹 आळंदी से पंढरपूर तक लगभग 250 किलोमीटर की पदयात्रा केवल चलना नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, समर्पण और एकता की यात्रा है।
🔹 आळंदी, जहाँ संत ज्ञानेश्वर माऊली की समाधि स्थित है, वहां से पालखी की शुरुआत होती है और पूरे महाराष्ट्र में भक्तिभाव का एक विशाल आंदोलन खड़ा होता है।
🔹 इस दिन पूरा आळंदी फूलों, भगवा झंडों और भक्तिमय तरंगों से सजाया जाता है 🌺🚩।

🛕 संत ज्ञानेश्वर माऊली: संक्षिप्त परिचय
संत ज्ञानेश्वर (1275–1296) मराठी संतकाव्य और भक्तिसंप्रदाय के महान प्रवर्तक थे।
🔸 उन्होंने "ज्ञानेश्वरी" नामक भगवद्गीता का मराठी में सुंदर भाष्य लिखा।
🔸 उनके अभंग केवल भक्तिपूर्ण नहीं, बल्कि गहरे दार्शनिक तत्वों से भरपूर हैं।
🔸 उनका प्रसिद्द वाक्य है:
"जो जे वांचिल तो ते लाहो",
जिसका अर्थ है — जो-जो कोई चाहे, उसे वही प्राप्त हो। यह उनकी व्यापक दृष्टि को दर्शाता है।

🎊 पालखी प्रस्थान समारोह के मुख्य अंश

काकडा आरती 🪔: सुबह-सुबह समाधि मंदिर में ज्ञानेश्वर माऊली की भव्य आरती होती है।

पालखी की सजावट: चांदी की पालखी में माऊली के पादुका रखे जाते हैं, फूलों और वस्त्रों से अलंकृत की जाती है 🌸।

वारकऱ्याओं का निनाद: लाखों वारकरी एकत्र होकर टाळ, मृदंग की थाप पर अभंग गाते हुए उत्साह से भर जाते हैं।

प्रस्थान का क्षण: "ज्ञानोबा माऊली तुकाराम" के जयकारों के बीच पालखी यात्रा आरंभ होती है 🚶�♂️🚶�♀️।

🧘�♀️ भक्तिभाव के प्रतीकात्मक अर्थ

प्रतीक   अर्थ
🪔 दीप   आत्मज्ञान का प्रकाशक
🚩 भगवा झंडा   वैराग्य, भक्ति और आत्मसमर्पण
🙏 जुड़े हाथ   नम्रता और सेवा
👣 पग   आध्यात्मिक यात्रा और साधना
🌸 फूल   भक्तिपूर्ण अर्पण

🎨 पालखी का दृश्य चित्रण (भावनात्मक दृष्टि से)
सुबह की पहली किरण के साथ आळंदी के गंगा घाट पर हजारों टाळ-मृदंग की ध्वनियाँ गूँजती हैं। भगवे झंडे हवा में फहराते हैं 🚩। संतों की पालखी फूलों से सजी है, भक्तों के पावों के नीचे गुलाब की खुशबू फैल रही है। आकाश मानो देवदूतों के दर्शन ले रहा हो। यह एक ऐसा दिव्य दृश्य है जो प्रेम, भक्ति और श्रद्धा का भव्य प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है। 🌈

📚 समाज और पालखी का संबंध
पालखी केवल संतों की स्मृति नहीं, बल्कि समाज में समरसता की एक सीख है।
🔸 जाति, धर्म, लिंग के भेद मिटते हैं — सभी वारकरी एक समान बन जाते हैं।
🔸 पदयात्रा के दौरान एक-दूसरे को पानी देना, सहायता करना — यही सच्ची मानवता है।
🔸 आज के युवा भी इस परंपरा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, जो संतों की शिक्षाओं को पुनः जीवंत कर रहा है।

🌟 निष्कर्ष: हमारी सीख
✅ संत ज्ञानेश्वर माऊली की पालखी केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मानवता और भक्ति का जीवंत उत्सव है।
✅ इस आयोजन के माध्यम से हम समर्पण, सेवा और प्रेम के मूल्यों को फिर से अपनाने का अवसर पाते हैं।
✅ "जय हरि विठ्ठल" कहकर हम केवल विठोबा को नहीं, बल्कि अपने अंतरात्मा को भी प्रणाम करते हैं।

🕉�🙏 हरि विठ्ठल! जय ज्ञानोबा माऊली!

📸 प्रतीकात्मक चित्र/इमोजी:

सजाई गई पालखी – 🐘🌺

वारकरी महिलाएं गाती हुई – 👩�🦰🎶

पगथ्थर पर भक्त – 👣👣👣

भगवा झंडे – 🚩🚩🚩

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-19.06.2025-गुरुवार.
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