देवी दुर्गा की पूजा और 'मानव जीवन के बंधनों से मुक्ति'-

Started by Atul Kaviraje, June 27, 2025, 10:13:29 PM

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Atul Kaviraje

देवी दुर्गा की पूजा और 'मानव जीवन के बंधनों से मुक्ति'-
(देवी दुर्गा की पूजा और जीवन के बंधनों से मुक्ति)
(The Worship of Goddess Durga and the Liberation from Life's Bonds)

देवी दुर्गा की पूजा और मानव जीवन के बंधनों से मुक्ति-
भारत की सनातन परंपरा में देवी दुर्गा को सिर्फ एक शक्तिशाली देवी के रूप में ही नहीं पूजा जाता, बल्कि वे मानव जीवन के बंधनों से मुक्ति का भी प्रतीक हैं। उनके नौ रूप, उनकी विविध शक्तियाँ और उनकी पूजा विधि हमें जीवन की जटिलताओं को समझने और उनसे पार पाने का मार्ग दिखाती है। दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है जो हमें भय, अज्ञानता, अहंकार और भौतिक आसक्तियों के बंधनों से मुक्त करती है। 🙏

भक्तिभावपूर्ण कविता
यह कविता देवी दुर्गा की पूजा और जीवन के बंधनों से मुक्ति के गहन दर्शन को दर्शाती है:

पहला चरण:

दुर्गा माँ हैं शक्ति रूपा,
मिटाती जीवन के दुःख कूपा।
हर बंधन से देती मुक्ति,
दिखाती हमको ज्ञान स्वरूपा।

अर्थ: दुर्गा माँ शक्ति का रूप हैं, वे जीवन के दुखों के गहरे कुएँ को मिटाती हैं। वे हमें हर बंधन से मुक्ति देती हैं और ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं। 💪

दूसरा चरण:

अहंकार का महिषासुर भारी,
माँ उसे देती पल में तारी।
विनम्रता जब मन में आए,
खुले मुक्ति की द्वार सारी।

अर्थ: अहंकार रूपी महिषासुर बहुत शक्तिशाली है, पर माँ उसे पल भर में नष्ट कर देती हैं। जब मन में विनम्रता आती है, तो मुक्ति के सारे द्वार खुल जाते हैं। 👺➡️😇

तीसरा चरण:

अज्ञानता का घोर अँधेरा,
माँ मिटाती अपनी ज्योति से।
ज्ञान का दीपक जलाती वो,
भगाती हर डर भय से।

अर्थ: अज्ञानता का गहरा अँधेरा, माँ अपनी रोशनी से मिटा देती हैं। वे ज्ञान का दीपक जलाती हैं और हर डर-भय को दूर भगाती हैं। 🌑➡️☀️

चौथा चरण:

मोह और माया का ये बंधन,
माँ सिखाती उनसे विरक्ति।
अनासक्त जब होता मन,
मिलती सच्ची आत्म-शक्ति।

अर्थ: मोह और माया का यह बंधन है, माँ उनसे वैराग्य सिखाती हैं। जब मन अनासक्त होता है, तो सच्ची आत्म-शक्ति मिलती है। 💖➡️💔

पांचवा चरण:

क्रोध, घृणा का त्याग सिखाती,
शांति का पाठ है पढ़ाती।
करुणा का जब भाव जागे,
माँ मुक्ति का मार्ग दिखाती।

अर्थ: माँ हमें क्रोध और घृणा का त्याग करना सिखाती हैं, और शांति का पाठ पढ़ाती हैं। जब करुणा का भाव जागता है, तो माँ मुक्ति का मार्ग दिखाती हैं। 😡➡️😊

छठा चरण:

नवदुर्गा के नौ हैं रूप,
हर रूप से मिले मुक्ति अनूप।
हर बंधन को तोड़ो तुम,
जीवन बने तब सुख स्वरूप।

अर्थ: नवदुर्गा के नौ रूप हैं, हर रूप से अद्वितीय मुक्ति मिलती है। तुम हर बंधन को तोड़ दो, तब जीवन सुखमय बन जाएगा। 🌈

सातवां चरण:

भक्ति और तप का जब हो मेल,
माँ करती जीवन का हर खेल।
आत्म-ज्ञान की राह दिखाती,
कराती मुक्ति का अब मेल।

अर्थ: जब भक्ति और तपस्या का मिलन होता है, तो माँ जीवन के हर खेल को आसान कर देती हैं। वे आत्म-ज्ञान का मार्ग दिखाती हैं, और अब मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। 🧘�♀️🌌

कविता का सारांश 📝
यह कविता देवी दुर्गा की पूजा को मानव जीवन के बंधनों से मुक्ति की एक आध्यात्मिक यात्रा के रूप में प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि कैसे देवी दुर्गा शक्ति, ज्ञान और निर्भयता का प्रतीक हैं, और कैसे उनकी पूजा अहंकार, अज्ञानता, भय, मोह, क्रोध और कर्म जैसे बंधनों से मुक्ति दिलाती है। कविता नवदुर्गा के नौ रूपों और तपस्या के महत्व पर भी प्रकाश डालती है, जो अंततः आध्यात्मिक जागरण और मोक्ष की ओर ले जाते हैं।

--अतुल परब
--दिनांक-27.06.2025-शुक्रवार.
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