संतोषी माता और ‘नई आशा’ और ‘सकारात्मक दृष्टिकोण’-

Started by Atul Kaviraje, June 27, 2025, 10:15:25 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

संतोषी माता और 'नई आशा' और 'सकारात्मक दृष्टिकोण'-
(Santoshi Mata and the 'New Hope' and 'Positive Outlook')

संतोषी माता और 'नई आशा' व 'सकारात्मक दृष्टिकोण'
भारतीय जनमानस में संतोषी माता का स्थान अत्यंत विशेष है। उन्हें अक्सर शुक्रवार के व्रत और भक्ति के साथ जोड़ा जाता है, लेकिन उनका महत्व केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं है। संतोषी माता वास्तव में 'नई आशा' और 'सकारात्मक दृष्टिकोण' की प्रतीक हैं। उनकी पूजा और उनके दर्शन हमें जीवन की चुनौतियों के बावजूद धैर्य, संतोष और प्रसन्नता बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं। वे हमें सिखाती हैं कि सच्ची खुशी बाहरी परिस्थितियों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर के संतोष में निहित है। 🙏😊

भक्तिभावपूर्ण कविता
यह कविता संतोषी माता और 'नई आशा' व 'सकारात्मक दृष्टिकोण' के इस गहन दर्शन को दर्शाती है:

पहला चरण:

संतोषी माँ, नाम में संतोष,
हर जीवन का मिटाती रोष।
नई आशा का दें संदेश,
दूर करती हर मन का दोष।

अर्थ: संतोषी माँ, जिनके नाम में ही संतोष है, हर जीवन के क्रोध को मिटाती हैं। वे नई आशा का संदेश देती हैं और हर मन के दोष को दूर करती हैं। 🌟

दूसरा चरण:

शुक्रवार का पावन व्रत,
सिखाए धैर्य, हो मन में रत।
आत्म-अनुशासन का ये पाठ,
नकारात्मकता हो तुरंत रद।

अर्थ: शुक्रवार का पवित्र व्रत धैर्य सिखाता है, और मन को इसमें लीन करता है। यह आत्म-अनुशासन का पाठ है, जिससे नकारात्मकता तुरंत खत्म हो जाती है। 🗓�

तीसरा चरण:

जब निराशा घेरे मन को,
माँ जगाए नई उमंग।
अँधेरे में भी देती किरण,
जीवन चले खुशियों के संग।

अर्थ: जब मन को निराशा घेर लेती है, तो माँ नई उमंग जगाती हैं। वे अँधेरे में भी किरण देती हैं, जिससे जीवन खुशियों के साथ चलता है। 💡🚀

चौथा चरण:

सकारात्मक दृष्टि जब हो,
हर मुश्किल आसान लगे।
संतोषी माँ की कृपा से,
जीवन में हर फूल खिले।

अर्थ: जब हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होता है, तो हर मुश्किल आसान लगने लगती है। संतोषी माँ की कृपा से, जीवन में हर फूल खिलता है। 😊🌸

पांचवा चरण:

कथाएँ उनकी देती सीख,
धैर्य से मिले हर भीख।
ईमानदारी से जो करे कर्म,
सफलता की मिले हर लीक।

अर्थ: उनकी कथाएँ हमें सीख देती हैं कि धैर्य से सब कुछ मिलता है। जो ईमानदारी से कर्म करता है, उसे सफलता की हर राह मिलती है। 📖

छठा चरण:

अहंकार, लोभ को त्यागो,
संतुष्ट रहो जो भी मिला।
कृपा माँ की सदा बरसे,
मन हो जाए निर्मल, खिला।

अर्थ: अहंकार और लोभ को छोड़ दो, जो मिला है उसमें संतुष्ट रहो। माँ की कृपा हमेशा बरसेगी, और मन निर्मल व प्रसन्न हो जाएगा। 🚫🤑

सातवां चरण:

आंतरिक शांति ही सच्चा धन,
यही माँ का है पावन वंदन।
संतोषी माँ की जय बोलो,
टूटे जीवन के हर बंधन।

अर्थ: आंतरिक शांति ही सच्चा धन है, यही माँ का पवित्र अभिवादन है। संतोषी माँ की जय बोलो, और जीवन के हर बंधन टूट जाएंगे। 🧘�♀️🌌

कविता का सारांश 📝
यह कविता संतोषी माता को 'नई आशा' और 'सकारात्मक दृष्टिकोण' की प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि कैसे उनकी पूजा और शुक्रवार का व्रत संतोष, आत्म-अनुशासन, धैर्य और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है। कविता में संतोषी माता की कथाओं के शिक्षाप्रद महत्व, अहंकार-लोभ के त्याग, परिश्रम, कृतज्ञता और अंततः आध्यात्मिक विकास व आंतरिक शांति की प्राप्ति पर प्रकाश डाला गया है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी आंतरिक संतोष और आशावादी दृष्टिकोण में निहित है।

--अतुल परब
--दिनांक-27.06.2025-शुक्रवार.
===========================================