जिंदगी

Started by mkapale, July 15, 2025, 09:21:52 PM

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mkapale

इस जिंदगी में जी रहा हूँ, एक और जिंदगी,
जो कभी जुड़ जाती है पलभर, अलग है मगर।

जिसमें ऐसे रिश्ते हैं गुलज़ार, पहुँच से बाहर,
साथ होते, तो रंग कुछ और, ढंग और—क्या ख़बर?

कुछ मुकाम जो लगते मेरे हैं, पर दूर हैं काफ़ी,
हक़ीकत में मुकम्मल भी बनें, जैसा है सफ़र।

इन्हें ख़्वाब कहूँ या यक़ीन, कि पलट जाएँ रास्ते?
मेरा आज, वह जिंदगी बने, जो ज़हन में है अक्सर।

फिर जो मैं जी रहा हूँ, वह भी तो कभी अलग थी—
मेरे कल में, जो ख़यालों में आती थी, पल जो गए गुज़र।

यह जिंदगी है, कि कल की चाहत का कोई सिलसिला,
कि आज से कुछ अलग हो, आने वाले कल की सहर।

कल की डोर को खींचते, जो गुज़र गया उसे छोड़ते,
एक जिंदगी से, एक और जिंदगी का चलता हुआ सफ़र।