डूबती 'उद्धव बालासाहेब ठाकरे' सेना को सुप्रीम कोर्ट का तिनका बचा पाएगा? -

Started by Atul Kaviraje, July 19, 2025, 02:53:27 PM

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Atul Kaviraje

डूबती 'उद्धव बालासाहेब ठाकरे' सेना को सुप्रीम कोर्ट का तिनका बचा पाएगा? - हिंदी कविता-

महाराष्ट्र में छाया, है एक अंधियारा,
शिवसेना का टूटा, है अब किनारा।
उद्धव गुट जो डूबा, लेता सहारा,
सुप्रीम कोर्ट की 'काडी', क्या बनेगी सहारा?
अर्थ: महाराष्ट्र में एक अंधियारा छाया हुआ है, शिवसेना का किनारा टूट गया है। उद्धव गुट जो डूब रहा है, सहारा ले रहा है, क्या सुप्रीम कोर्ट का 'तिनका' उसे सहारा दे पाएगा?

बालासाहेब की सेना, हुई अब दो फाड़,
विचारों में बिखरी, है एक बड़ी दरार।
जमीनी पकड़ छूटी, कार्यकर्ता उदास,
क्या कोर्ट का निर्णय, देगा कोई आस?
अर्थ: बालासाहेब की सेना अब दो हिस्सों में बंट गई है, विचारों में एक बड़ी दरार आ गई है। जमीनी पकड़ छूट गई है, कार्यकर्ता उदास हैं, क्या कोर्ट का निर्णय कोई उम्मीद देगा?

मैदान छोड़कर, कोर्ट में लड़ाई,
न्याय की उम्मीद में, लगाई सुनवाई।
क्या सिर्फ कानून से, दल बचेगा क्या?
जनता के मन में, जगह पाएगा क्या?
अर्थ: मैदान छोड़कर, लड़ाई कोर्ट में चली गई है, न्याय की उम्मीद में सुनवाई लगाई गई है। क्या केवल कानून से पार्टी बचेगी? क्या जनता के मन में जगह बना पाएगी?

हिंदुत्व का मुद्दा, भी अब है धुंधला,
गठबंधन ने बदला, रास्ता ये अगला।
अपनी पहचान से, जो हुए हैं दूर,
क्या फिर से पाएंगे, अपना वो नूर?
अर्थ: हिंदुत्व का मुद्दा भी अब धुंधला हो गया है, गठबंधन ने रास्ता बदल दिया है। अपनी पहचान से जो दूर हो गए हैं, क्या वे फिर से अपना वह तेज (नूर) पा पाएंगे?

शिंदे गुट है भारी, भाजपा का साथ,
उद्धव गुट अकेला, ना कोई हाथ।
चुनाव चिह्न भी छीना, नया अब नाम,
क्या अंधेरे में पाएंगे, कोई आराम?
अर्थ: शिंदे गुट भारी है, भाजपा के साथ है, उद्धव गुट अकेला है, कोई सहारा नहीं है। चुनाव चिह्न भी छीन लिया गया है, नया नाम है, क्या अंधेरे में कोई आराम मिलेगा?

नेतृत्व में कमी है, करिश्मा है नहीं,
जनता को बांधने की, वो शक्ति है नहीं।
क्या कोर्ट के फैसले से, बदलेंगे हालात?
या इतिहास में खो जाएंगे, पुरानी बात?
अर्थ: नेतृत्व में कमी है, करिश्मा नहीं है, जनता को जोड़ने की वह शक्ति नहीं है। क्या कोर्ट के फैसले से हालात बदलेंगे? या पुरानी बात इतिहास में खो जाएगी?

तोरसेकर ने पूछा, यह गहरा सवाल,
क्या 'काडी' बचाएगी, डूबती यह हाल?
राजनीति की राहें, जनता तय करती,
अदालत नहीं, यह बात सदा ही कहती।
अर्थ: तोरसेकर ने यह गहरा सवाल पूछा है, क्या 'तिनका' इस डूबते हुए हालात को बचा पाएगा? राजनीति की राहें जनता तय करती है, अदालत नहीं, यह बात हमेशा कही जाती है।

कविता का संक्षिप्त अर्थ
यह कविता भाऊ तोरसेकर के राजनीतिक विश्लेषण के आधार पर 'उद्धव बालासाहेब ठाकरे' (UBT) गुट की वर्तमान स्थिति और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाती है। यह शिवसेना के विभाजन, UBT गुट के सिकुड़ने, न्यायिक निर्भरता, जमीनी पकड़ के अभाव, हिंदुत्व पर असमंजस और नेतृत्व की कमी जैसे मुद्दों को उजागर करती है। कविता अंत में इस बात पर जोर देती है कि राजनीतिक अस्तित्व केवल कानूनी फैसलों से नहीं, बल्कि जनता के समर्थन और जमीनी काम से ही बचाया जा सकता है।

कविता के लिए प्रतीक और इमोजी
डूबती नाव: 🚢 राजनीतिक दल का संकट।

न्याय का तराजू: ⚖️ सुप्रीम कोर्ट और न्यायिक प्रक्रिया।

प्रश्न चिह्न: 🤔 अनिश्चितता।

टूटा हुआ दिल: 💔 विभाजन।

कमजोर तिनका: 🌾 'काडी' या छोटा सहारा।

खाली हाथ: 👐 जमीनी जुड़ाव की कमी।

चुनाव चिह्न: 🏹 राजनीतिक पहचान।

कविता का इमोजी सारांश
🚢⚖️🤔💔🌾👐🏹

--अतुल परब
--दिनांक-19.07.2025-शनिवार.
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