30 जुलाई 2025, बुधवार: सुपोदन वर्ण षष्ठी और श्रीयाल षष्ठी का महत्व-

Started by Atul Kaviraje, July 31, 2025, 10:18:34 AM

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Atul Kaviraje

1-सुपोदन वर्ण षष्ठी-

२-श्रीयाल षष्ठी-

30 जुलाई 2025, बुधवार: सुपोदन वर्ण षष्ठी और श्रीयाल षष्ठी का महत्व

आज, 30 जुलाई 2025, बुधवार को सुपोदन वर्ण षष्ठी और श्रीयाल षष्ठी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। ये दोनों ही पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, विशेषकर जैन धर्म में इनका विशेष स्थान है। आइए, इनके महत्व और इनसे जुड़ी भक्ति भावना को विस्तार से समझते हैं।

इन पर्वों का महत्व (10 प्रमुख बिंदु)

षष्ठी तिथि का महत्व: भारतीय पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि का धार्मिक कार्यों में विशेष महत्व है। यह तिथि कई देवी-देवताओं को समर्पित है और इस दिन किए गए पूजन, व्रत और अनुष्ठान अत्यधिक फलदायी माने जाते हैं।

सुपोदन वर्ण षष्ठी: यह पर्व मुख्य रूप से जैन धर्म से संबंधित है। यह श्री सुपाश्र्वनाथ भगवान के गर्भ कल्याणक महोत्सव से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान सुपाश्र्वनाथ गर्भ में आए थे। इस दिन जैन धर्मावलंबी भगवान सुपाश्र्वनाथ का स्मरण करते हैं, उनकी भक्ति करते हैं और उनके गुणों का ध्यान करते हैं। यह आत्मशुद्धि और साधना का दिन होता है।

उदाहरण: जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, प्रवचन और विधान का आयोजन किया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं और अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।

श्रीयाल षष्ठी: यह पर्व भी जैन परंपरा से जुड़ा है। यह राजा श्रीयाल और रानी चेलना के त्याग, धैर्य और अटूट आस्था की कहानी को दर्शाता है। राजा श्रीयाल ने अपनी पत्नी चेलना के साथ मिलकर अपनी सभी संपत्ति दान कर दी थी और भिक्षाटन करते हुए जीवन व्यतीत किया था। यह पर्व त्याग, दान और धर्म के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है।

उदाहरण: इस दिन जैन समाज में दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। लोग जरूरतमंदों की सहायता करते हैं और त्याग की भावना को आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। राजा श्रीयाल और रानी चेलना के बलिदान को याद किया जाता है।

त्याग और बलिदान का संदेश: दोनों ही पर्व त्याग और बलिदान का गहरा संदेश देते हैं। सुपाश्र्वनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक हमें आत्मत्याग और मोक्ष की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है, जबकि श्रीयाल षष्ठी सांसारिक मोहमाया त्यागकर धर्म पथ पर चलने का आदर्श प्रस्तुत करती है। 🌟🙏

भक्ति और आस्था का प्रतीक: ये दिन भक्तों के लिए अपनी श्रद्धा और आस्था व्यक्त करने का अवसर होते हैं। वे भगवान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 🧘�♀️❤️

आत्मशुद्धि और तपस्या: इन पर्वों पर उपवास, ध्यान और तपस्या का विशेष महत्व है। भक्त अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पाकर आत्मशुद्धि का प्रयास करते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। ✨🌿

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण: ये पर्व हमारी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक अभिन्न अंग हैं। इन्हें मनाकर हम अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं और आने वाली पीढ़ियों तक उनके महत्व को पहुंचाते हैं। 🏛�📜

सामुदायिक एकजुटता: इन पर्वों के अवसर पर समाज के लोग एक साथ आते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और विभिन्न धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। इससे सामुदायिक भावना मजबूत होती है और आपसी सौहार्द बढ़ता है। 🤝👨�👩�👧�👦

नैतिक मूल्यों का सुदृढीकरण: सुपोदन वर्ण षष्ठी और श्रीयाल षष्ठी हमें ईमानदारी, करुणा, दान, त्याग और अहिंसा जैसे नैतिक मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। ये मूल्य एक सुखी और सार्थक जीवन के लिए आवश्यक हैं। 🕊�💖

नकारात्मकता का नाश: इन पावन दिनों पर की गई भक्ति और प्रार्थना से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। यह मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतोष प्रदान करता है। 😊☮️

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-30.07.2025-बुधवार.
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