🌹 जाति व्यवस्था: समाज का दर्द 🌹💔😔📚🗳️🤝

Started by Atul Kaviraje, August 06, 2025, 10:08:58 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

🌹 जाति व्यवस्था: समाज का दर्द 🌹

चरण 1: पुरानी वो दीवारें
पुरानी वो दीवारें, जो अब भी हैं खड़ी,
जात-पात की बेड़ी, है कितनी है कड़ी।
इंसान से इंसान को, दूर करती हैं ये,
समाज में हर पल, जहर भरती हैं ये।

अर्थ: जाति-व्यवस्था की पुरानी दीवारें आज भी खड़ी हैं, जो लोगों को एक-दूसरे से दूर करती हैं और समाज में जहर फैलाती हैं।

चरण 2: भेदभाव का वार
भेदभाव का वार, हर रोज़ होता है,
कोई अपने ही घर में, पराया होता है।
छुआछूत का कलंक, आज भी है बाकी,
इंसानियत की है ये, सबसे बड़ी फाँसी।

अर्थ: आज भी भेदभाव होता है, जिससे लोग अपने ही समाज में पराया महसूस करते हैं। छुआछूत का कलंक आज भी बाकी है, जो मानवता के लिए सबसे बड़ी त्रासदी है।

चरण 3: शिक्षा में रोड़े
शिक्षा का मंदिर, जहाँ सब थे समान,
वहाँ भी होता है, अब जात का अपमान।
गरीबी और जाति, पढ़ाई रोकती है,
सपनों की उड़ान को, हर पल टोकती है।

अर्थ: शिक्षा के मंदिर में भी आज जाति के नाम पर अपमान होता है। गरीबी और जाति के कारण कई लोग पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते, जिससे उनके सपने अधूरे रह जाते हैं।

चरण 4: राजनीति का खेल
राजनीति का खेल, इसी पर तो टिका है,
वोट बैंक के लिए, हर कोई बिका है।
जाति के नाम पर, ये देश को बाँटते,
समाज में हर दिन, नई खाई पाटते।

अर्थ: राजनीति पूरी तरह से जाति पर टिकी है। वोट बैंक के लिए नेता जाति के नाम पर देश को बाँटते हैं और समाज में खाई पैदा करते हैं।

चरण 5: समानता का सपना
समानता का सपना, अब भी है अधूरा,
जाति की बेड़ी से, हर कोई है चूरा।
जब तक नहीं टूटेगी, ये बेड़ी की जंजीर,
तब तक नहीं मिलेगी, हमें नई तकदीर।

अर्थ: समानता का सपना आज भी अधूरा है, क्योंकि जाति की बेड़ियों में सब बँधे हुए हैं। जब तक यह जंजीर नहीं टूटेगी, तब तक हमें नई किस्मत नहीं मिलेगी।

चरण 6: बदलाव की आवाज
बदलाव की आवाज, अब उठानी होगी,
पुरानी सोच को, हमें मिटानी होगी।
हर एक इंसान को, इंसान ही समझना होगा,
भेदभाव के राक्षस को, हमें ही हराना होगा।

अर्थ: अब हमें बदलाव की आवाज उठानी होगी और पुरानी सोच को मिटाना होगा। हमें हर इंसान को इंसान समझना होगा और भेदभाव के इस राक्षस को हराना होगा।

चरण 7: एक नया सवेरा
जब हर कोई हो, बस एक हिंदुस्तानी,
तब ही तो होगी, ये सच्ची जिंदगानी।
जात-पात से ऊपर, जब बढ़ेगा ये समाज,
तब ही तो होगा, एक नया सवेरा आज।

अर्थ: जब हर कोई सिर्फ एक हिंदुस्तानी होगा, तभी यह सच्ची जिंदगी होगी। जब समाज जाति-पात से ऊपर उठेगा, तभी एक नया सवेरा आएगा।

📝 सारांश
यह कविता जाति व्यवस्था की पुरानी दीवारों, भेदभाव और राजनीति पर उसके नकारात्मक प्रभाव को दर्शाती है। यह हमें इस समस्या को खत्म करने और एक समान समाज बनाने के लिए प्रेरित करती है।

इमोजी सारांश: 💔😔📚🗳�🤝

--अतुल परब
--दिनांक-06.08.2025-बुधवार.
===========================================