कुछ प्रजातियाँ संकटग्रस्त क्यों हैं?- हिंदी कविता: बेजुबान की पुकार-

Started by Atul Kaviraje, August 16, 2025, 08:35:04 PM

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Atul Kaviraje

कुछ प्रजातियाँ संकटग्रस्त क्यों हैं?-

हिंदी कविता: बेजुबान की पुकार-

(१) पर क्यों कुछ प्रजातियाँ रोती हैं?
पर क्यों कुछ प्रजातियाँ रोती हैं, क्यों उनका घर उजड़ता है।
जंगलों की रानी, शहरों में क्यों डरती है।
उनकी चीखें, हम क्यों सुनते नहीं हैं।
पर क्यों कुछ प्रजातियाँ रोती हैं, क्यों उनका घर उजड़ता है।
(अर्थ: इस चरण में संकटग्रस्त प्रजातियों के दुख और उनके आवास के विनाश पर चिंता व्यक्त की गई है।)

(२) घर उनके हमने छीने
घर उनके हमने छीने, खेती और मकान बनाए।
जो जंगल थे उनके घर, अब वहाँ कारखाने बनाए।
यह हमारी लालच है, जो उन्हें मौत के मुँह में धकेलती है।
घर उनके हमने छीने, खेती और मकान बनाए।
(अर्थ: यह चरण मानव द्वारा आवास विनाश को मुख्य कारण बताता है।)

(३) शिकार और व्यापार का कहर
शिकार और व्यापार का कहर, उन्हें जीने नहीं देता।
इंसानी क्रूरता का यह खेल, उन्हें मिटा देता है।
सोने और पैसों की चाह, उन्हें बेमौत मारती है।
शिकार और व्यापार का कहर, उन्हें जीने नहीं देता।
(अर्थ: इस चरण में अवैध शिकार और तस्करी के क्रूर प्रभाव का वर्णन है।)

(४) प्रदूषण का जहर बहता है
प्रदूषण का जहर बहता है, हवा, पानी को गंदा करता है।
प्लास्टिक और कचरा, उनके पेट में जाता है।
नदियाँ और सागर, उनके लिए कब्रगाह बनते हैं।
प्रदूषण का जहर बहता है, हवा, पानी को गंदा करता है।
(अर्थ: यह चरण प्रदूषण के कारण जानवरों और उनके आवास को होने वाले नुकसान को बताता है।)

(५) प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा
प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा, जब एक कड़ी टूटती है।
जो जानवर गायब होते, पूरी दुनिया हिल जाती है।
यह हमारी ही लापरवाही, जो हमें खतरे में डालती है।
प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा, जब एक कड़ी टूटती है।
(अर्थ: यह चरण प्रजातियों के विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलित होने पर जोर देता है।)

(६) आओ हम सब शपथ लें
आओ हम सब शपथ लें, इन बेजुबानों को बचाएँ।
जंगलों को हम न काटें, नदियों को हम साफ करें।
उनकी दुनिया की रक्षा करें, उन्हें जीवन का हक दें।
आओ हम सब शपथ लें, इन बेजुबानों को बचाएँ।
(अर्थ: इस चरण में वन्यजीवों की रक्षा और पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेने की प्रेरणा दी गई है।)

(७) हमारा भविष्य है उनके साथ
हमारा भविष्य है उनके साथ, यह बात हमें माननी होगी।
जब तक रहेंगे जानवर, तब तक रहेगी यह धरती।
यह हमारी जिम्मेदारी है, इसे हम निभाएँ।
हमारा भविष्य है उनके साथ, यह बात हमें माननी होगी।
(अर्थ: यह अंतिम चरण मानवता और जानवरों के बीच के संबंध और उनके संरक्षण की आवश्यकता को बताता है।)

--अतुल परब
--दिनांक-16.08.2025-शनिवार.
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