पर्युषण पर्वारंभ - पंचमी पक्ष (जैन) 🙏✨- गुरुवार, २१ अगस्त, २०२५-1-

Started by Atul Kaviraje, August 22, 2025, 11:16:18 AM

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Atul Kaviraje

पर्युषण पर्वारंभ- पंचमी पक्ष- जैन-

पर्युषण पर्वारंभ - पंचमी पक्ष (जैन) 🙏✨-

आज, गुरुवार, २१ अगस्त, २०२५ के शुभ दिन, जैन धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व पर्युषण पर्व का आरंभ हो रहा है। यह पर्व जैनियों के लिए आत्म-शुद्धि, तपस्या और क्षमा का महापर्व है। 'पर्युषण' शब्द का अर्थ है 'पास में आना' या 'आत्मा के निकट आना'। यह पर्व हमें अपनी आत्मा के करीब जाने, कर्मों की शुद्धि करने और स्वयं को बेहतर बनाने का अवसर देता है। यह पर्व दस दिनों तक चलता है, जिसे दसलक्षण धर्म के नाम से भी जाना जाता है।

१. पर्युषण पर्व का आध्यात्मिक महत्व 🕉�
पर्युषण पर्व जैनियों के लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है।

आत्म-शुद्धि: यह पर्व हमें अपने अंदर के विकारों (क्रोध, मान, माया, लोभ) को दूर करने और आत्मा को शुद्ध करने का मौका देता है।

कर्मों का नाश: कठोर तप और उपवास के माध्यम से पूर्व जन्मों के संचित कर्मों को नष्ट किया जाता है।

आत्मा का उत्थान: इस पर्व का उद्देश्य आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसर करना है, जो जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य है।

२. पर्व की शुरुआत: पंचमी 🌟
पर्युषण पर्व की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल पंचमी तिथि से होती है। इस दिन से जैन साधक और श्रावक १० दिनों के लिए विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान शुरू करते हैं।

प्रारंभिक अनुष्ठान: पहले दिन, साधक और श्रावक उपवास, ध्यान और स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन) का संकल्प लेते हैं।

पवित्रता का भाव: इस दिन से ही घरों और मंदिरों में विशेष सात्विक वातावरण बनाया जाता है।

३. दसलक्षण धर्म का पालन 💎
पर्युषण के दस दिन दस उत्तम गुणों या 'दसलक्षण धर्म' को समर्पित हैं। प्रत्येक दिन एक विशेष धर्म का पालन किया जाता है:

१. उत्तम क्षमा: क्रोध को त्यागना।

२. उत्तम मार्दव: अभिमान को त्यागना।

३. उत्तम आर्जव: सरलता और निष्कपटता अपनाना।

४. उत्तम शौच: लोभ को त्यागना।

५. उत्तम सत्य: सत्य बोलना।

६. उत्तम संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण।

७. उत्तम तप: आत्म-नियंत्रण और तपस्या।

८. उत्तम त्याग: दान देना।

९. उत्तम आकिंचन: अपरिग्रह (आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना)।

१०. उत्तम ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन।

४. पर्व के दौरान किए जाने वाले प्रमुख कार्य 🧘�♀️
पर्युषण के दिनों में जैन समुदाय विभिन्न धार्मिक क्रियाओं में संलग्न रहता है।

तपस्या: अनेक जैन भाई-बहन दस दिनों तक उपवास रखते हैं (दशलक्षण व्रत), कुछ लोग एक दिन छोड़कर (बेला), दो दिन छोड़कर (तेले) या आठ दिन तक (अट्ठाई) भी उपवास करते हैं।

प्रतिक्रमण: साधक और श्रावक अपनी दिनचर्या में हुई गलतियों के लिए प्रतिक्रमण (पश्चात्ताप) करते हैं।

स्वाध्याय और प्रवचन: इस दौरान जैन मंदिरों में प्रवचन और स्वाध्याय का आयोजन होता है, जहाँ जैन गुरु दसलक्षण धर्म का महत्व बताते हैं।

दान: लोग अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को दान देते हैं।

५. क्षमापना का महत्व 🙏
पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी के रूप में मनाया जाता है, जब लोग 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहकर एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं।

मिच्छामि दुक्कड़म्: इसका अर्थ है, "मेरे द्वारा किए गए सभी बुरे कर्मों के लिए, मैं क्षमा चाहता हूँ।" यह क्षमा का सबसे बड़ा प्रतीक है।

मन की शुद्धि: क्षमा मांगने और देने से मन में द्वेष, ईर्ष्या और क्रोध का नाश होता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-21.08.2025-गुरुवार.
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