२६ अगस्त, मंगलवार-हरितालिका तृतीया - हरतालिका तीज:

Started by Atul Kaviraje, August 27, 2025, 11:29:25 AM

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Atul Kaviraje

हरितालिका तृतीया -

हरतालिका तीज: -

एक भक्तिपूर्ण और विस्तृत विवेचन-

आज, २६ अगस्त, मंगलवार को, हम हरतालिका तृतीया (तीज) का पावन पर्व मना रहे हैं। यह पर्व हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए यह उपवास रखती हैं, जबकि अविवाहित लड़कियाँ अच्छे पति की कामना के लिए यह व्रत करती हैं।

१. हरतालिका तीज का अर्थ और महत्व
हरतालिका शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है: 'हरत' यानी हरण करना और 'आलिका' यानी सहेली या सखी। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने बचपन में ही कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाने का निश्चय कर लिया था, लेकिन उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था। माता पार्वती की सहेलियों ने उन्हें इस विवाह से बचाने के लिए उनका हरण करके एक घने जंगल में छिपा दिया, इसीलिए इस व्रत को 'हरतालिका' कहा गया।

यह उपवास महिलाओं को अपने पति के प्रति प्रेम, समर्पण और निष्ठा की याद दिलाता है। माता पार्वती ने यह व्रत करके भगवान शिव को प्राप्त किया था, इसलिए महिलाएँ इस व्रत को विशेष महत्व देती हैं।

२. हरतालिका तीज का उपवास और पूजा विधि
यह उपवास निर्जला (बिना पानी के) और निराहार (बिना भोजन के) किया जाता है। महिलाएँ २४ घंटे तक पानी या भोजन ग्रहण नहीं करतीं।

सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहने जाते हैं।

पूजा के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी या रेत से बनी मूर्ति या प्रतिमा बनाई जाती है।

पूजा स्थल पर कलश स्थापित किया जाता है और उसमें नारियल, सुपारी और सिक्का रखा जाता है।

सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है, फिर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।

शिवालय (शिवलिंग), माता पार्वती की मूर्ति और गणेश जी की मूर्ति को विभिन्न वस्तुएँ अर्पित की जाती हैं, जैसे बेलपत्र, धतूरा, फूल, वस्त्र, फल, मिठाई और विशेष रूप से सोलह श्रृंगार (काजल, टिकली, चूड़ियाँ, बिंदी, मेंहदी, सिंदूर, आदि)।

३. उपवास के नियम और परंपराएँ
यह उपवास अत्यंत कठोर माना जाता है। महिलाएँ अगले दिन सुबह सूर्योदय से पहले पारण (व्रत तोड़ना) करती हैं।

उपवास के दौरान महिलाएँ गाने गाती हैं, कहानियाँ सुनती हैं और रात भर जागरण करती हैं।

उपवास के दूसरे दिन सुबह फिर से पूजा की जाती है, जिसके बाद ही भोजन किया जाता है।

कुछ जगहों पर, जो महिलाएँ यह व्रत शुरू करती हैं, उन्हें इसे जीवन भर करना होता है।

४. सोलह श्रृंगार और उनका महत्व
इस दिन महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं। ये श्रृंगार केवल सुंदरता के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक भी हैं।

प्रत्येक श्रृंगार का अपना आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। जैसे, सिंदूर पति की लंबी उम्र का प्रतीक है, जबकि बिंदी और चूड़ियाँ सौभाग्य और समृद्धि को दर्शाती हैं।

५. कथा और पौराणिक महत्व
हरतालिका तीज की कथा भगवान शिव और माता पार्वती की कथा पर आधारित है। इस कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए एक घने जंगल में जाकर कठोर तपस्या की।

उन्होंने रेत का शिवलिंग बनाया और कई वर्षों तक तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यह कथा प्रेम, भक्ति और निष्ठा का उदाहरण है।

६. उपवास और स्वास्थ्य
कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, उपवास शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता है।

लेकिन निर्जला उपवास करना थोड़ा कठिन है, इसलिए स्वास्थ्य का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। मधुमेह या अन्य गंभीर बीमारियों वाली महिलाओं को डॉक्टर की सलाह के बाद ही यह उपवास करना चाहिए।

७. क्षेत्रीय विविधता
हरतालिका तीज पूरे भारत में अलग-अलग नामों और अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है।

उत्तर भारत में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

महाराष्ट्र में भी यह त्योहार मनाया जाता है, लेकिन कुछ परंपराओं में अंतर हो सकता है।

८. तीज के अवसर पर उपहार
इस दिन लड़कियों और विवाहित महिलाओं को साड़ी, चूड़ियाँ, मेंहदी, मिठाई और फल उपहार में दिए जाते हैं।

इन उपहारों को प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

९. पारिवारिक मिलन
यह त्योहार परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है।

महिलाएँ एक साथ बैठती हैं, कहानियाँ-गाने गाती हैं और त्योहार का आनंद लेती हैं।

१०. आधुनिक युग में तीज
आज के समय में, महिलाएँ अपने काम की जगह और पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालते हुए भी यह उपवास करती हैं।

आधुनिक युग में भी इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि ऑनलाइन पूजा, डिजिटल कहानियाँ और वर्चुअल उत्सवों के कारण यह त्योहार और अधिक लोगों तक पहुँच गया है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-26.08.2025-मंगळवार..
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