जैन संवस्तरी-चतुर्थी पक्ष-1-🙏🕊️❤️🧘‍♂️✨

Started by Atul Kaviraje, August 28, 2025, 02:31:50 PM

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Atul Kaviraje

जैन संवस्तरी-चतुर्थी पक्ष-

आज 27 अगस्त, बुधवार को, हम जैन धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक, संवत्सरी मना रहे हैं। यह पर्व जैन धर्म के श्वेतांबर समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले पर्युषण महापर्व के आठवें और अंतिम दिन आता है। यह दिन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि, क्षमा, और आत्म-चिंतन का एक गहरा अभ्यास है। इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू "मिच्छामि दुक्कड़म्" कहकर एक-दूसरे से क्षमा मांगना और सभी को क्षमा करना है।

जैन संवत्सरी: एक भक्तिपूर्ण और विवेचनात्मक लेख-

1. संवत्सरी: आत्म-शोधन का अंतिम दिन
संवत्सरी का अर्थ है "संवत्सर", यानी वर्ष का अंत। यह पर्युषण पर्व का अंतिम दिन है, जिसे जैन धर्म में आत्म-शुद्धि का सबसे बड़ा अवसर माना जाता है। इस दिन, जैन अनुयायी पूरे वर्ष में जाने-अनजाने में हुई गलतियों, विचारों और कर्मों के लिए पश्चाताप करते हैं। इसका उद्देश्य मन, वचन और काया को शुद्ध करना है।

2. क्षमावाणी: पर्व का मूल सार
संवत्सरी का सबसे महत्वपूर्ण अंग 'क्षमावाणी' है।

मिच्छामि दुक्कड़म्: यह एक प्राकृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, "मेरे द्वारा किए गए सभी बुरे कर्म व्यर्थ हो जाएँ" या "अगर मैंने आपको जाने-अनजाने में दुख पहुँचाया हो, तो मुझे क्षमा करें।"

क्षमा मांगने का उद्देश्य: इसका उद्देश्य अहंकार को त्यागना और मन में व्याप्त सभी वैर-भाव को समाप्त करना है। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि हृदय से किया गया एक सच्चा पश्चाताप है।

3. पर्युषण पर्व और दस लक्षण धर्म
संवत्सरी, जैन धर्म के दस दिनों के दसलक्षण धर्म पर्व का समापन है। यह दस धर्म जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए मार्गदर्शक हैं।

उत्तम क्षमा: क्रोध को त्यागना।

उत्तम मार्दव: अहंकार को छोड़कर विनम्रता अपनाना।

उत्तम आर्जव: मन, वचन और कर्म में सरलता लाना।

उत्तम सत्य: सत्य बोलना।

उत्तम शौच: मन और शरीर दोनों की शुद्धि।

उत्तम संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण।

उत्तम तप: इच्छाओं को नियंत्रित करने के लिए तप करना।

उत्तम त्याग: सांसारिक वस्तुओं का त्याग करना।

उत्तम आकिंचन्य: किसी भी चीज़ के प्रति आसक्ति न रखना।

उत्तम ब्रह्मचर्य: पवित्रता और आत्म-नियंत्रण बनाए रखना।

4. प्रतिक्रमण: आत्म-विश्लेषण का गहन अभ्यास
संवत्सरी के दिन, जैन अनुयायी 'संवत्सरी प्रतिक्रमण' करते हैं।

प्रतिक्रमण का अर्थ: इसका अर्थ है 'वापस लौटना' या 'अपनी गलतियों को स्वीकार कर सही मार्ग पर लौटना'।

छः आवश्यक क्रियाएं: प्रतिक्रमण में छह आवश्यक क्रियाएं शामिल हैं:

सामायिक: समभाव (समानता) का अभ्यास।

चतुर्विंशति स्तव: तीर्थंकरों की स्तुति।

वंदन: गुरुओं और संतों को सम्मान देना।

प्रतिक्रमण: आत्म-समीक्षा।

कायोत्सर्ग: आत्म-चिंतन के लिए शरीर को स्थिर करना।

प्रत्याख्यान: भविष्य में गलतियों को न दोहराने का संकल्प।

5. संवत्सरी के दिन के प्रमुख क्रियाकलाप
इस दिन भक्तगण कठोर व्रत और साधना करते हैं।

उपवास: कई जैन अनुयायी 24 घंटे का उपवास करते हैं, जिसे 'संवत्सरी पौषध' भी कहते हैं।

प्रार्थना और साधना: मंदिरों में विशेष प्रार्थनाएं और प्रवचन होते हैं।

स्वाध्याय: धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया जाता है।

दया और करुणा: इस दिन जानवरों और गरीबों के प्रति दया भाव दिखाया जाता है।

प्रतीक और इमोजी: 🙏🕊�❤️🧘�♂️✨

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.08.2025-बुधवार.
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