राष्ट्रीय दुःख जागरूकता दिवस: सहानुभूति और समझ का आह्वान-'दुःख का सफर'-

Started by Atul Kaviraje, August 31, 2025, 11:11:52 AM

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Atul Kaviraje

राष्ट्रीय दुःख जागरूकता दिवस-स्वास्थ्य-जागरूकता, मानसिक स्वास्थ्य-

राष्ट्रीय दुःख जागरूकता दिवस: सहानुभूति और समझ का आह्वान-

हिंदी कविता: 'दुःख का सफर'-

(१)
दुःख का सफर, है गहरा और शांत,
आँखों में आँसू, मन में अशांत।
इस यात्रा में हम, अकेले नहीं,
कोई सुन रहा है, मन की बात यहीं।
अर्थ: दुःख का सफर बहुत गहरा और शांत होता है, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि हम इसमें अकेले नहीं हैं।

(२)
हर दर्द की अपनी, एक कहानी है,
हर आँसू में छिपी, कोई निशानी है।
न दबाओ इसे, न छिपाओ इसे,
दिल खोल कर, बहाओ इसे।
अर्थ: हर दर्द की अपनी एक कहानी होती है, जिसे दबाने या छिपाने के बजाय खुलकर व्यक्त करना चाहिए।

(३)
कंधा बनकर दो, सहारा बनकर आओ,
बस सुनो उसकी, कोई राय न सुनाओ।
शब्दों से ज्यादा, है स्पर्श जरूरी,
सहानुभूति की, ये ही है कसौटी।
अर्थ: दुःखित व्यक्ति को केवल राय देने के बजाय, उसे सहारा देना और उसकी बात सुनना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

(४)
यह कोई कमजोरी, नहीं है हमारी,
भावनाओं का सागर, है दुनिया सारी।
चलो मिलकर स्वीकारें, इस दर्द को,
दें सम्मान हर, भावना के स्पर्श को।
अर्थ: दुःख महसूस करना कोई कमजोरी नहीं है। हमें इस दर्द को स्वीकार करना चाहिए और हर भावना का सम्मान करना चाहिए।

(५)
आँसू बहते हैं, तो बहने दो,
मन की गाथा, कहने दो।
रात जितनी गहरी, सवेरा उतना पास,
उम्मीद की किरण, जगाए नया विश्वास।
अर्थ: आँसुओं को बहने देना चाहिए, क्योंकि जितनी गहरी रात होती है, सवेरा उतना ही करीब आता है और नई उम्मीद जगाता है।

(६)
जब भी तुम्हें लगे, तुम अकेले हो,
याद रखना, हम सब तुम्हारे हो।
यह दिन है हमें, यही सिखाता,
हर दुःख में हम, साथ हो जाते।
अर्थ: यह कविता हमें याद दिलाती है कि दुःख में हम अकेले नहीं हैं, क्योंकि हम सब एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं।

(७)
दुःख के बाद, सुख की है बारी,
जीवन की यह, है सच्ची क्यारी।
मजबूत बनो, पर दिल से कोमल,
जीवन का यही, है सच्चा फल।
अर्थ: दुःख के बाद सुख आता ही है, और हमें दिल से मजबूत और कोमल बनकर जीवन का सामना करना चाहिए।

--अतुल परब
--दिनांक-30.08.2025-शनिवार.
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