नृत्य (Dance): लयबद्ध शारीरिक गतिविधियों का एक कला रूप।-1-

Started by Atul Kaviraje, September 04, 2025, 07:28:13 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

WORLD ENCYCLOPEDIA - विश्वकोश-

नृत्य (Dance): लयबद्ध शारीरिक गतिविधियों का एक कला रूप।-

विश्वकोश - नृत्य (Dance)
नृत्य, लयबद्ध शारीरिक गतिविधियों का एक कला रूप है, जो सदियों से मानव संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। यह एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो भावनाओं, विचारों और कहानियों को बिना शब्दों के प्रस्तुत करती है। नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक बंधन का माध्यम और व्यक्तिगत विकास का एक शक्तिशाली उपकरण भी है।

1. नृत्य की परिभाषा और महत्व
नृत्य एक कला है जिसमें शरीर की गति, ताल और लय का उपयोग कर भावनाओं और विचारों को व्यक्त किया जाता है। यह सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, सामाजिक समारोहों, और कहानियों को बताने के लिए भी किया जाता है। नृत्य के माध्यम से लोग अपने सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और इतिहास को जीवित रखते हैं। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

2. नृत्य के प्रकार और शैलियाँ
नृत्य की शैलियाँ दुनिया भर में विविध हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: शास्त्रीय और लोक नृत्य।

2.1. शास्त्रीय नृत्य
यह नृत्य शैली विशेष नियमों, तकनीकों और व्याकरण पर आधारित होती है। भारत में आठ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य हैं:

भरतनाट्यम: तमिलनाडु का नृत्य, जिसे मंदिरों में किया जाता था।

कथक: उत्तर भारत का नृत्य, जिसमें कहानी कहने पर जोर दिया जाता है।

कथकली: केरल का नृत्य, जिसमें विस्तृत वेशभूषा और चेहरे के भावों का प्रयोग होता है।

ओडिसी: ओडिशा का नृत्य, जिसमें मूर्तिकला की मुद्राएँ दिखाई जाती हैं।

मणिपुरी: मणिपुर का नृत्य, जो धीमी और कोमल गतियों के लिए जाना जाता है।

कुचिपुड़ी: आंध्र प्रदेश का नृत्य, जिसमें अभिनय और गायन शामिल है।

मोहिनीअट्टम: केरल का एक और शास्त्रीय नृत्य, जो स्त्री सौंदर्य पर आधारित है।

सत्त्रिया: असम का नृत्य, जो भक्ति आंदोलन से जुड़ा है।

2.2. लोक नृत्य
यह नृत्य शैली किसी विशेष क्षेत्र, समुदाय या जनजाति की संस्कृति को दर्शाती है। ये नृत्य अक्सर उत्सवों, फसल कटाई के समय या अन्य सामाजिक आयोजनों पर किए जाते हैं।

भांगड़ा: पंजाब का एक ऊर्जावान नृत्य।

गरबा: गुजरात का एक प्रसिद्ध नृत्य।

लावणी: महाराष्ट्र का एक पारंपरिक नृत्य।

घुमर: राजस्थान का एक सुंदर नृत्य।

3. नृत्य में उपयोग होने वाले उपकरण और पोशाक
नृत्य के प्रदर्शन में विभिन्न प्रकार के उपकरण और पोशाक का उपयोग किया जाता है।

पोशाक: प्रत्येक नृत्य शैली की अपनी विशिष्ट पोशाक होती है, जो उस कला रूप की पहचान होती है। उदाहरण के लिए, कथकली में विस्तृत रंगीन मेकअप और भारी पोशाक होती है, जबकि भरतनाट्यम में रेशम की साड़ी और गहनों का उपयोग होता है।

घूँघरू: ये छोटी घंटियाँ हैं जिन्हें पैरों पर पहना जाता है, खासकर कथक जैसे नृत्य में, ताकि ताल को स्पष्ट रूप से सुना जा सके।

अन्य उपकरण: कुछ नृत्यों में मुखौटे, तलवारें, या अन्य प्रॉप्स का भी उपयोग होता है।

4. नृत्य का इतिहास और विकास
नृत्य का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। प्राचीन गुफा चित्रों में नृत्य के प्रमाण मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह आदिमानव के जीवन का हिस्सा था।

प्राचीन काल: धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों में नृत्य का प्रयोग होता था।

मध्यकालीन: इस दौरान शास्त्रीय नृत्यों का विकास हुआ और उन्हें राजघरानों का संरक्षण मिला।

आधुनिक काल: 20वीं और 21वीं सदी में नृत्य का वैश्वीकरण हुआ, और बैले, जैज़, हिप-हॉप जैसे नए रूप सामने आए।

5. नृत्य का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
नृत्य केवल कला नहीं है, बल्कि यह समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

सामाजिक एकता: यह लोगों को एक साथ लाता है और समुदाय की भावना को मजबूत करता है।

सांस्कृतिक पहचान: यह किसी समुदाय की पहचान और विरासत को बनाए रखने में मदद करता है।

शिक्षा: नृत्य के माध्यम से इतिहास, पौराणिक कथाओं और नैतिक मूल्यों को सिखाया जा सकता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.09.2025-गुरुवार.
===========================================