डार्विनवाद (Darwinism): चार्ल्स डार्विन का विकास का सिद्धांत।-

Started by Atul Kaviraje, September 04, 2025, 07:29:54 PM

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Atul Kaviraje

WORLD ENCYCLOPEDIA - विश्वकोश-

डार्विनवाद (Darwinism): चार्ल्स डार्विन का विकास का सिद्धांत।-

विश्वकोश - डार्विनवाद (Darwinism)
डार्विनवाद चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रतिपादित विकास का सिद्धांत है।  यह सिद्धांत बताता है कि समय के साथ, प्राकृतिक चयन (natural selection) की प्रक्रिया के माध्यम से, प्रजातियाँ कैसे विकसित होती हैं और बदलती हैं। यह आज भी जीव विज्ञान का एक मौलिक और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो जीवन की विविधता और जटिलता को समझाता है।

1. डार्विनवाद की परिभाषा और मुख्य आधार
डार्विनवाद एक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो यह समझाता है कि प्रजातियाँ कैसे विकसित होती हैं। इसका मुख्य आधार यह है कि सभी जीव अपने पर्यावरण में जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए संघर्ष करते हैं। इस संघर्ष में, वे जीव जो अपने पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं, जीवित रहते हैं और अपने अनुकूल गुणों को अपनी अगली पीढ़ी में पहुंचाते हैं।

2. प्राकृतिक चयन: डार्विनवाद का केंद्रीय स्तंभ
प्राकृतिक चयन डार्विनवाद की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पर्यावरण उन जीवों का चयन करता है जो सबसे अच्छी तरह से अनुकूलित होते हैं। यह तीन मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है:

विभिन्नता (Variation): किसी भी प्रजाति के जीवों में प्राकृतिक रूप से भिन्नताएँ होती हैं। जैसे, एक ही पेड़ के फल का आकार अलग हो सकता है।

अति-प्रजनन (Over-reproduction): जीव अपने पर्यावरण की तुलना में अधिक संतान पैदा करते हैं।

जीवित रहने के लिए संघर्ष (Struggle for Existence): संसाधनों की सीमितता के कारण, जीवों को भोजन, आश्रय और साथी के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।

3. विकास के प्रमाण
डार्विन ने अपने सिद्धांत का समर्थन करने के लिए कई प्रमाण प्रस्तुत किए।

जीवाश्म रिकॉर्ड (Fossil Record): जीवाश्म प्राचीन जीवों के अवशेष हैं जो समय के साथ प्रजातियों में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को दर्शाते हैं।

तुलनात्मक शरीर रचना (Comparative Anatomy): विभिन्न प्रजातियों के शरीर के अंगों की संरचनाओं में समानताएं यह बताती हैं कि उनका एक सामान्य पूर्वज रहा होगा।

बायोज्योग्रफी (Biogeography): यह बताता है कि कैसे भौगोलिक रूप से अलग-थलग पड़े क्षेत्रों में जीवों का विकास अलग-अलग तरीकों से हुआ। उदाहरण के लिए, गैलापागोस द्वीप समूह पर फ़िंच पक्षियों की चोंच में अंतर।

4. लैमार्कवाद बनाम डार्विनवाद
डार्विन से पहले, लैमार्क (Lamarck) ने भी विकास का एक सिद्धांत दिया था।

लैमार्कवाद: यह मानता था कि जीव अपने जीवनकाल में जो गुण प्राप्त करते हैं, वे अपनी अगली पीढ़ी को देते हैं (उदाहरण के लिए, जिराफ़ ने अपनी गर्दन को खींचकर लंबा किया)।

डार्विनवाद: यह मानता है कि जो भिन्नताएँ पहले से मौजूद होती हैं, उनका ही चयन होता है (उदाहरण के लिए, लंबी गर्दन वाले जिराफ़ों को भोजन आसानी से मिलता था, इसलिए वे अधिक जीवित रहे)।

5. आधुनिक जीव विज्ञान पर डार्विनवाद का प्रभाव
डार्विन का सिद्धांत आधुनिक जीव विज्ञान की नींव है। यह आनुवंशिकी, आणविक जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है।

6. डार्विनवाद की आलोचना
डार्विनवाद की कई आलोचनाएँ भी हुई हैं, खासकर धार्मिक समुदायों और कुछ वैज्ञानिकों द्वारा। हालाँकि, वैज्ञानिक समुदाय में, डार्विन के सिद्धांत को अब तक के सबसे अच्छे और सबसे अधिक समर्थित सिद्धांतों में से एक माना जाता है।

7. डार्विनवाद और मानव विकास
डार्विनवाद मानव विकास पर भी लागू होता है। यह बताता है कि आधुनिक मनुष्य, एक सामान्य पूर्वज से लाखों वर्षों में विकसित हुए हैं, और हम भी प्राकृतिक चयन के अधीन हैं।

8. डार्विनवाद के उदाहरण
औद्योगिक क्रांति के दौरान कीटों का रंग: इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद, पेड़ की छाल काली हो गई। पहले, हल्के रंग के कीट ज़्यादा थे, लेकिन अब गहरे रंग के कीटों को छिपने में मदद मिली और वे बच गए, जबकि हल्के रंग के कीटों को पक्षियों ने खा लिया।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध: बैक्टीरिया में आनुवंशिक भिन्नताएँ होती हैं। कुछ बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। जब एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है, तो प्रतिरोधी बैक्टीरिया जीवित रहते हैं और प्रजनन करते हैं, जिससे एक नई प्रतिरोधी पीढ़ी पैदा होती है।

9. डार्विनवाद का संक्षिप्त सारांश
डार्विनवाद, चार्ल्स डार्विन का विकास का सिद्धांत है, जिसका मुख्य आधार प्राकृतिक चयन है। यह सिद्धांत बताता है कि समय के साथ, जीव अपने पर्यावरण में अनुकूलित होते जाते हैं और जो सबसे अच्छे से अनुकूलित होते हैं, वे जीवित रहते हैं और अपनी विशेषताओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। यह सिद्धांत आज भी आधुनिक जीव विज्ञान की नींव है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.09.2025-गुरुवार.
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