संन्यासियों के चातुर्मास्य की समाप्ति: भक्ति, ज्ञान और नवीनता का पर्व-

Started by Atul Kaviraje, September 08, 2025, 02:40:31 PM

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Atul Kaviraje

संन्यासियों के चातुर्मास्य की समाप्ति-

संन्यासियों के चातुर्मास्य की समाप्ति: भक्ति, ज्ञान और नवीनता का पर्व-

चातुर्मास्य का अंत-

चार महीने की तपस्या पूरी,
अब है यात्रा की तैयारी।
संन्यासी निकल पड़े राह पर,
लेकर ज्ञान की फुलवारी। 🌷

अर्थ: संन्यासियों की चार महीने की तपस्या पूरी हो गई है और अब वे अपनी यात्रा शुरू करने की तैयारी में हैं। वे ज्ञान की फुलवारी (बगीचा) लेकर अपनी राह पर निकल पड़े हैं।

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हवन की अग्नि धुआँ दे,
मंत्रों की ध्वनि गूंज उठे।
प्रसाद बाँटा जाए सब में,
भक्ति का ये सागर उमड़े। 🔥

अर्थ: हवन की अग्नि से धुआँ निकल रहा है और मंत्रों की ध्वनि गूँज रही है। प्रसाद सभी में बाँटा जा रहा है, जिससे भक्ति का यह सागर उमड़ रहा है।

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गुरु का आशीष मिला,
शिष्य का मन हर्षित हुआ।
ज्ञान की गंगा बहाकर,
हर एक पाप को धोया। 🗣�💧

अर्थ: गुरु का आशीर्वाद मिला और शिष्य का मन बहुत प्रसन्न हुआ। गुरु ने ज्ञान की नदी बहाकर शिष्यों के हर पाप को धो दिया।

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दान-पुण्य का है ये दिन,
किसी का न रहे कोई ऋण।
वस्त्र और भोजन दान कर,
मनाएं पर्व ये हर छिन। 🎁🍚

अर्थ: यह दिन दान और पुण्य करने का है, ताकि किसी पर कोई कर्ज न रहे। वस्त्र और भोजन का दान करके हम इस पर्व को हर पल मनाते हैं।

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एक जगह थे सब रहते,
ज्ञान की बातें सब कहते।
अब फिर से अलग हो जाएँगे,
लेकिन प्रेम से बंधे रहेंगे। 🤗

अर्थ: चातुर्मास्य के दौरान सभी एक ही जगह रहते थे और ज्ञान की बातें करते थे। अब वे फिर से अलग-अलग हो जाएँगे, लेकिन प्रेम के बंधन से हमेशा जुड़े रहेंगे।

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वैराग्य का पथ है ये,
भक्ति का ये अनमोल गहना।
मोह-माया से दूर रहकर,
जीवन को सही राह में बहना। 💖

अर्थ: यह वैराग्य का मार्ग है और भक्ति एक अनमोल आभूषण है। मोह-माया से दूर रहकर ही जीवन सही मार्ग पर बहता है।

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चले संन्यासी, चले साधु,
ज्ञान का दीपक जलाकर।
जन-जन तक फैलाएं धर्म,
आशीर्वाद देते जाकर। 🌍🙏

अर्थ: संन्यासी और साधु ज्ञान का दीपक जलाकर चल पड़े हैं। वे घर-घर जाकर धर्म का प्रसार करेंगे और सभी को अपना आशीर्वाद देंगे।

--अतुल परब
--दिनांक-07.09.2025-रविवार.
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