अष्टमी श्राद्ध: भक्ति और आस्था का महापर्व- रविवार, 14 सितंबर, 2025-

Started by Atul Kaviraje, September 15, 2025, 04:14:45 PM

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Atul Kaviraje

अष्टमी श्राद्ध: भक्ति और आस्था का महापर्व-

आज, रविवार, 14 सितंबर, 2025, श्राद्ध पक्ष की अष्टमी है, जिसे 'अष्टमी श्राद्ध' या 'मध्यअष्टमी श्राद्ध' भी कहते हैं। यह दिन हमारे पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक विशेष दिन है। पितृ पक्ष में अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन किसी भी पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था।

श्राद्ध का अर्थ है 'श्रद्धा' और 'आदर'। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि हमारे पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने का एक पवित्र तरीका है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्त होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे हमारा जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है।

अष्टमी श्राद्ध के 10 प्रमुख बिंदु

1. अष्टमी श्राद्ध का महत्व:
यह दिन विशेष रूप से उन पूर्वजों के लिए समर्पित है, जिनका निधन किसी भी महीने की अष्टमी तिथि को हुआ है। इस दिन श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन पितृ दोष के निवारण के लिए भी विशेष पूजा की जाती है।

2. श्राद्ध विधि का सही समय:
श्राद्ध हमेशा 'कुतुप' या 'रोहिण' मुहूर्त में किया जाना चाहिए।

'कुतुप' मुहूर्त दोपहर 12:00 बजे से 12:45 बजे तक होता है।

इस समय पिंडदान और तर्पण करने से इसका फल कई गुना बढ़ जाता है।

3. पिंडदान और तर्पण:

पिंडदान: चावल, तिल, दूध और शहद मिलाकर बनाया गया 'पिंड' पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।

तर्पण: पानी में तिल और फूल मिलाकर पूर्वजों का 'तर्पण' किया जाता है।

4. श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री:

सामग्री: तिल, चावल, दूध, शहद, गंगाजल, फूल, कुश (दर्भा), आदि।

भोजन: ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराने के लिए खीर, पुरी, और सात्विक भोजन तैयार किया जाता है।

5. ब्राह्मण भोजन:
श्राद्ध विधि के बाद, ब्राह्मणों को आदरपूर्वक घर बुलाकर भोजन कराया जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह अन्न सीधे पूर्वजों तक पहुँचता है।

6. काकबली और गो ग्रास:
श्राद्ध के समय, पितरों को अर्पित किए गए भोजन का कुछ हिस्सा कौओं (काकबली) और गाय (गो ग्रास) को दिया जाता है। कौओं को यमदूतों का प्रतीक माना जाता है, और गाय को पवित्र माना जाता है।

7. अष्टमी श्राद्ध का संकल्प:
यह श्राद्ध 'मध्यअष्टमी श्राद्ध' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह पितृ पक्ष के बीच में आता है। इस दिन किया गया श्राद्ध विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

8. कथाएँ और दंतकथाएँ:
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने श्राद्ध का महत्व बताया था। उन्होंने श्राद्ध को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत आवश्यक माना था।

9. आधुनिक काल में श्राद्ध:
आज के समय में, श्राद्ध विधि कम समय और सरल तरीके से की जाती है। कई लोग ब्राह्मणों के उपलब्ध न होने पर, मंदिरों या धार्मिक स्थलों पर भोजन दान करते हैं।

10. फल और आशीर्वाद:
श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और वंशजों को दीर्घायु, स्वास्थ्य, धन और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यह सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-14.09.2025-रविवार.
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