संत मुक्ताबाई जयंती: भक्ति और ज्ञान की देवी-🙏🕊️📜✨👩‍🦳💖

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2025, 02:43:25 PM

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Atul Kaviraje

संत मुक्ताबाई जयंती-

संत मुक्ताबाई जयंती: भक्ति और ज्ञान की देवी-

संत मुक्ताबाई 13वीं शताब्दी की एक महान संत थीं, जिन्होंने अपने ज्ञान, भक्ति और त्याग से समाज को एक नई दिशा दी। वे संत ज्ञानेश्वर, संत सोपानदेव और संत निवृत्तिनाथ की सबसे छोटी बहन थीं। उनकी जयंती हर वर्ष आश्विन मास के पहले दिन, यानी 22 सितंबर, 2025 को मनाई जाती है। यह दिन उनके जीवन और शिक्षाओं को याद करने का एक पवित्र अवसर है। 🙏🕊�

१. संत मुक्ताबाई का जीवन परिचय
संत मुक्ताबाई का जन्म 1279 ईस्वी में महाराष्ट्र के आपेगाँव में हुआ था। वे अपने भाई-बहनों के साथ आध्यात्मिक साधना और ज्ञान की खोज में लगी रहीं।

(अ) बाल्यकाल और त्याग: उन्होंने बहुत कम उम्र में ही सांसारिक मोहमाया का त्याग कर दिया था।

(ब) आध्यात्मिक गुरु: वे अपने बड़े भाई संत निवृत्तिनाथ को अपना गुरु मानती थीं, जिन्होंने उन्हें ज्ञान का मार्ग दिखाया।

२. उनके अभंग और रचनाएँ
संत मुक्ताबाई ने मराठी भाषा में कई अभंगों (भक्तिपूर्ण कविताओं) की रचना की, जो आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

(अ) आध्यात्मिक संदेश: उनके अभंगों में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और सामाजिक समरसता का गहरा संदेश मिलता है।

(ब) 'ताटीचे अभंग': उनके सबसे प्रसिद्ध अभंगों में से एक 'ताटीचे अभंग' हैं, जो उन्होंने संत ज्ञानेश्वर को आत्म-संयम और धैर्य का पाठ पढ़ाने के लिए लिखे थे। 📜

३. संत ज्ञानेश्वर और मुक्ताबाई का संबंध
संत मुक्ताबाई और संत ज्ञानेश्वर का संबंध केवल भाई-बहन का नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य और आध्यात्मिक साथी का भी था।

(अ) ज्ञान और प्रेम: मुक्ताबाई ने ज्ञानेश्वर को न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया, बल्कि एक बहन के रूप में उन्हें प्रेम और सहारा भी दिया।

(ब) 'ताटी उघडा ज्ञानेश्वरा': यह उनका प्रसिद्ध अभंग है, जिसके माध्यम से उन्होंने ज्ञानेश्वर को समाज के बहिष्कार के कारण निराश होकर अपने घर का दरवाजा बंद करने से रोका था।

४. उनके उपदेश और शिक्षाएँ
संत मुक्ताबाई ने अपने जीवन और अभंगों के माध्यम से कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दीं।

(अ) आत्म-नियंत्रण: उन्होंने सिखाया कि बाहरी दुनिया की अपेक्षा आंतरिक शांति और आत्म-नियंत्रण अधिक महत्वपूर्ण है।

(ब) सर्वधर्म समभाव: उन्होंने यह भी सिखाया कि भक्ति और आध्यात्मिकता किसी जाति या धर्म तक सीमित नहीं है।

५. मुक्ताईनगर और समाधि स्थल
मुक्ताबाई का समाधि स्थल महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में मुक्ताईनगर में स्थित है। यह स्थान आज भी भक्तों के लिए एक तीर्थस्थल है।

(अ) तीर्थयात्रा: हर साल उनकी जयंती पर हजारों भक्त मुक्ताईनगर जाते हैं, जहाँ उनकी समाधि की पूजा की जाती है।

(ब) उत्सव: जयंती के अवसर पर विशेष पूजा, भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

६. संत मुक्ताबाई का आध्यात्मिक योगदान
मुक्ताबाई ने महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय को बहुत योगदान दिया।

(अ) वारकरी परंपरा: उन्होंने भक्ति और ज्ञान के मार्ग को मिलाकर वारकरी परंपरा को मजबूत किया।

(ब) नारी शक्ति: वे एक महिला संत के रूप में नारी शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं। 👩�🦳

७. उनकी मृत्यु और मोक्ष
संत मुक्ताबाई ने 1297 ईस्वी में तापी नदी के किनारे समाधि ली थी।

(अ) समाधि स्थल: उनका समाधि स्थल आज भी मुक्ताईनगर के पास कोथली नामक गाँव में स्थित है।

(ब) मोक्ष: ऐसा माना जाता है कि उन्होंने जीवित समाधि लेकर मोक्ष प्राप्त किया था।

८. मुक्ताबाई का प्रभाव
मुक्ताबाई का प्रभाव केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहा।

(अ) जन-साधारण पर प्रभाव: उनके अभंगों और उपदेशों ने आम लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

(ब) साहित्यिक योगदान: मराठी साहित्य में उनके अभंगों का विशेष स्थान है।

९. संत मुक्ताबाई जयंती का उत्सव
यह दिन उनके जीवन और शिक्षाओं को याद करने का एक विशेष अवसर है।

(अ) उत्सव का स्वरूप: इस दिन भक्तगण विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, उनके अभंग गाते हैं और उनके जीवन के बारे में चर्चा करते हैं।

(ब) संदेश: यह दिन हमें उनके द्वारा दिए गए शांति, प्रेम और ज्ञान के संदेश को जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करता है। 💖

१०. आज के समय में प्रासंगिकता
संत मुक्ताबाई की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उनके समय में थीं।

(अ) मानसिक शांति: उनकी शिक्षाएँ हमें आधुनिक जीवन के तनाव और दबाव से निपटने में मदद करती हैं।

(ब) सामाजिक सद्भाव: उनके उपदेश हमें सामाजिक सद्भाव और आपसी प्रेम को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं। 🕊�

Emoji सारांश: 🙏🕊�📜✨👩�🦳💖

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-22.09.2025-सोमवार.
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