नवरात्रोत्सव, सालगाँव, अडवलपाल: भक्ति, श्रद्धा और सांस्कृतिक का संगम-🙏🌺

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2025, 02:47:04 PM

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Atul Kaviraje

नवरात्रोत्सव, सालगाँव, अडवलपाल: भक्ति, श्रद्धा और सांस्कृतिक का संगम-

नवरात्रोत्सव, जो गोवा के डिचोली तालुका के सालगाँव और अडवलपाल गाँवों में मनाया जाता है, यह केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि लाखों भक्तों की आस्था का प्रतीक है। यह उत्सव विशेष रूप से शारदीय नवरात्री के दौरान आयोजित किया जाता है, जब भक्त नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह उत्सव पारंपरिक उत्साह, भक्ति और सांस्कृतिक विरासत का एक अद्भुत संगम है। इस वर्ष, यह उत्सव 22 सितंबर, 2025 से शुरू हो रहा है। 🙏🌺

1. सालगाँव और अडवलपाल के मंदिरों का इतिहास और महत्व
सालगाँव और अडवलपाल में देवी के मंदिर बहुत प्राचीन हैं और इस क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक केंद्र हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इन मंदिरों का इतिहास कई सदियों पुराना है। ये मंदिर स्थानीय लोगों के जीवन का अभिन्न अंग हैं।

महत्व: यहाँ स्थापित देवी को 'जागृत देवी' माना जाता है, जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

2. उत्सव का आरंभ और वातावरण
नवरात्रोत्सव का आरंभ घटस्थापना से होता है, जो नवरात्री के पहले दिन यानी 22 सितंबर, 2025 को है।

उत्सव का वातावरण: घटस्थापना के साथ ही पूरे सालगाँव और अडवलपाल में भक्तिमय और उत्साह का वातावरण फैल जाता है। मंदिरों को फूलों, रोशनी और दीयों से सजाया जाता है। ✨

भक्तों का आगमन: गोवा और पड़ोसी राज्यों से भी भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं।

3. नवरात्रि के नौ दिन और पूजा विधि
उत्सव के नौ दिनों में मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक विधि-विधान होते हैं।

दैनिक पूजा: रोज़ाना सुबह और शाम को देवी की विशेष आरती की जाती है। भक्त देवी को साड़ी, फूल और नैवेद्य (भोग) अर्पित करते हैं।

जागरण और भजन: रात में भजन-कीर्तन और जागरण आयोजित किया जाता है, जिसमें भक्त पूरी रात देवी का जयघोष करते हैं। 🎶

4. पारंपरिक गरबा और डांडिया
नवरात्रोत्सव में गरबा और डांडिया का विशेष महत्व है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।

नृत्य का आयोजन: मंदिर परिसर और आसपास के मैदानों में गरबा और डांडिया रास का आयोजन किया जाता है, जिसमें युवा और बुजुर्ग दोनों उत्साह के साथ भाग लेते हैं। 💃

उत्साह: पारंपरिक वेशभूषा और संगीत से उत्सव का वातावरण और भी आनंदमय हो जाता है।

5. महाप्रसाद और भंडारा
उत्सव के दौरान भक्तों के लिए महाप्रसाद का वितरण करना एक महत्वपूर्ण परंपरा है।

भंडारे का आयोजन: मंदिर प्रशासन और स्थानीय लोग मिलकर रोज़ भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं, जिसे भंडारा कहते हैं।

सेवा भाव: यह भंडारा निस्वार्थ सेवा और अपनेपन का प्रतीक है। 🍛

6. सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेला
नवरात्रोत्सव के दौरान मंदिर परिसर में एक बड़ा मेला भी लगता है।

मनोरंजन: मेले में बच्चों के लिए झूले, खिलौने और खाने-पीने के स्टॉल होते हैं, जो उत्सव के माहौल को और भी खुशनुमा बनाते हैं। 🎠

धार्मिक कार्यक्रम: कई जगहों पर देवी के जीवन पर आधारित धार्मिक कार्यक्रम और नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं।

7. नवमी और विजयादशमी
नवरात्री का समापन नवमी और दसवें दिन विजयादशमी से होता है।

कन्या पूजन: नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है, जिसमें छोटी लड़कियों को देवी का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है।

दशहरा: विजयादशमी के दिन रावण दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। 🏹

8. सुरक्षा और व्यवस्था
इतनी बड़ी संख्या में भक्तों के आगमन के कारण सुरक्षा और व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

भीड़ नियंत्रण: भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और स्वयंसेवक विशेष उपाय करते हैं।

स्वच्छता: उत्सव के दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

9. नवरात्रोत्सव का सामाजिक महत्व
यह उत्सव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सद्भावना का भी प्रतीक है।

भाईचारा: यह उत्सव सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है।

अपनापन: लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और अपनेपन और सद्भावना को बढ़ावा देते हैं। 🤝

10. नवरात्रोत्सव का संदेश
यह उत्सव हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देता है।

भक्ति और विश्वास: यह हमें सच्ची भक्ति और विश्वास का महत्व सिखाता है।

शक्ति का सम्मान: यह नारी शक्ति का सम्मान करने का संदेश देता है, क्योंकि देवी शक्ति का रूप हैं।

एकता: यह उत्सव हमें एक साथ रहकर कोई भी कार्य करने की प्रेरणा देता है। 💖

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-22.09.2025-सोमवार.
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