श्री अंबिका माता नवरात्र उत्सव, शिरवा, तालुका-खंडाळा, जिल्हा-सातारा-1-

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2025, 02:57:14 PM

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Atul Kaviraje

श्री अंबिका माता नवरात्र उत्सव प्रIरंभ-शिरवा, तालुका-खंडाळ, जिल्हा-सातारा-

श्री अंबिका माता नवरात्र उत्सव, शिरवा, तालुका-खंडाळा, जिल्हा-सातारा-

दिनांक: २२ सितंबर, २०२५
दिन: सोमवार

जय माता दी! 🙏

महाराष्ट्र के सातारा जिले में, खंडाळा तालुका के शिरवा गांव में, श्री अंबिका माता का प्राचीन और जागृत मंदिर स्थित है। यह मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है और विशेष रूप से नवरात्र के दौरान यहां का वातावरण भक्तिमय हो जाता है। इस वर्ष भी, २२ सितंबर, २०२५ को, शारदीय नवरात्र उत्सव का आरंभ हुआ, जो मां अंबिका के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

१. प्रस्तावना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
शिरवा गांव का श्री अंबिका माता मंदिर, एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यहां का नवरात्र उत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गांव की संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिंब है।

मंदिर का महत्व: माना जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है और यहां देवी साक्षात निवास करती हैं। भक्तों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।

ऐतिहासिक विरासत: इस मंदिर का इतिहास मराठा साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से ही इस मंदिर का महत्व रहा है, जिससे यह स्थल और भी पूजनीय हो जाता है। 🛡�

२. घटस्थापना: उत्सव का शुभारंभ
नवरात्र का पहला दिन, जिसे घटस्थापना कहते हैं, पूरे उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। यह नौ दिवसीय उत्सव का आधिकारिक आरंभ होता है।

कलश स्थापना का महत्व: एक पवित्र कलश में जल भरकर, उसके चारों ओर जौ या धान बोया जाता है। यह कलश ब्रह्मांड और जीवन के प्रतीक के रूप में देवी के समक्ष स्थापित किया जाता है। 🌱

आध्यात्मिक महत्व: यह अनुष्ठान देवी के नौ दिनों के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक है, जिससे भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। 💖

३. भक्ति और उपासना के विविध स्वरूप
नवरात्र के दौरान, मां अंबिका के नौ विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है, जो नारी शक्ति और ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

देवी के नौ रूप: प्रत्येक दिन देवी के एक अलग रूप की पूजा होती है—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। यह भक्तों को विभिन्न प्रकार की शक्ति और प्रेरणा प्रदान करता है।

भजन, आरती और कीर्तन: सुबह और शाम को मंदिर में विशेष आरतियों और भजनों का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। यह वातावरण को अत्यंत पवित्र और ऊर्जावान बना देता है। 🎶🔔

४. पारंपरिक अनुष्ठान और लोककलाएँ
शिरवा का नवरात्र उत्सव सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोककलाओं और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र बन जाता है।

सकाळची पूजा आणि देवीची पालखी: सुबह के समय विशेष पूजा के बाद, देवी की पालखी पूरे गांव में घुमाई जाती है। यह एक भव्य जुलूस होता है, जिसमें भक्तगण भक्ति गीतों पर झूमते और नाचते हैं। 🚶�♂️✨

जागरण और गोंधळ: रात में जागरण और गोंधळ का आयोजन होता है, जो महाराष्ट्र की पारंपरिक लोककला है। इन कार्यक्रमों में, लोकगीतों के माध्यम से देवी की महिमा का गुणगान किया जाता है। 🥁

५. प्रसाद वितरण और सामुदायिक भोजन
नवरात्र के दौरान, प्रसाद वितरण और सामुदायिक भोजन का आयोजन किया जाता है, जो एकता और भाईचारे का प्रतीक है।

अन्नदान: मंदिर में रोज "अन्नदान" या भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह समानता का संदेश देता है। 🍲

सेवा का महत्व: इस आयोजन में गांव के सभी लोग निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, चाहे वह खाना पकाने में हो या परोसने में। यह निस्वार्थ सेवा का सुंदर उदाहरण है। 🤝

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-22.09.2025-सोमवार.
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