कर्मवीर भाऊराव पाटील जन्मदिन-1-

Started by Atul Kaviraje, September 24, 2025, 03:01:49 PM

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Atul Kaviraje

कर्मवीर भाऊराव पाटील जन्मदिन-

दिनांक: २२ सितंबर, २०२५
दिन: सोमवार

भारत की पावन भूमि ने अनेक महान व्यक्तियों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने असाधारण कार्यों से समाज में क्रांति ला दी। इन्हीं में से एक थे कर्मवीर भाऊराव पाटील, जिनका जन्मदिन, २२ सितंबर को, पूरे महाराष्ट्र में शिक्षा के प्रति उनके समर्पण और दूरदर्शिता को याद करने के लिए मनाया जाता है। 'कर्मवीर' (कर्म का योद्धा) की उपाधि से सम्मानित भाऊराव पाटील ने अपना पूरा जीवन "बहिर्गावी शिक्षण मंडळा" (रयत शिक्षण संस्था) की स्थापना और उसे विकसित करने में समर्पित कर दिया, जिससे लाखों वंचित और गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिला।

१. प्रस्तावना और प्रारंभिक जीवन
कर्मवीर भाऊराव पाटील का जन्म २२ सितंबर १८८७ को कोल्हापुर जिले के कुंभोज गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम भाऊराव पायगोंडा पाटील था।

शिक्षा के प्रति लगाव: बचपन से ही उनमें शिक्षा के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने देखा कि समाज में शिक्षा का अभाव कैसे गरीबी और पिछड़ेपन का कारण बनता है।

बहिष्कृत वर्ग के लिए संघर्ष: उन्होंने महसूस किया कि समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों को शिक्षा से दूर रखा गया है। उन्होंने इसी असमानता को दूर करने का संकल्प लिया। 💖

२. रयत शिक्षण संस्था की स्थापना
भाऊराव पाटील के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कदम रयत शिक्षण संस्था की स्थापना था।

१९१९ की स्थापना: उन्होंने १९१९ में सातारा जिले में, एक छोटे से गांव, काले, में 'रयत शिक्षण संस्था' की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य गरीब और पिछड़े बच्चों को शिक्षा प्रदान करना था।

'स्वावलंबन' का मंत्र: उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को स्वावलंबी बनाने पर जोर दिया। उन्होंने "कमवा आणि शिका" (कमाओ और सीखो) की अवधारणा पेश की, जिससे छात्र अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सकें। 🧑�🎓📚

३. 'कमवा आणि शिका' आंदोलन
यह केवल एक शैक्षिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति थी, जिसने छात्रों के आत्म-सम्मान को बढ़ाया।

श्रम का सम्मान: छात्र अपने स्कूल और हॉस्टल के लिए खेती करते, कपड़े सिलते और अन्य छोटे-मोटे काम करते। इससे उनमें श्रम के प्रति सम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित हुई। 🌾✂️

आर्थिक आत्मनिर्भरता: इस मॉडल ने गरीब छात्रों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया, जिससे वे बिना किसी बोझ के अपनी शिक्षा पूरी कर सके।

४. ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार
भाऊराव पाटील का लक्ष्य केवल कुछ स्कूलों की स्थापना करना नहीं था, बल्कि शिक्षा को ग्रामीण भारत के कोने-कोने तक पहुंचाना था।

गाँव-गाँव में स्कूल: उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालयों की स्थापना की, ताकि गरीब और किसान के बच्चों को भी शिक्षा मिल सके। 🏫

गुरु-शिष्य परंपरा: उन्होंने खुद कई शिक्षकों को प्रशिक्षित किया और उन्हें गांव-गांव में स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया। 👨�🏫

५. बहुजन समाज के लिए योगदान
कर्मवीर भाऊराव पाटील का सबसे बड़ा योगदान बहुजन समाज को शिक्षा से जोड़ना था।

जाति और धर्म से ऊपर: उन्होंने शिक्षा को जाति और धर्म की सीमाओं से मुक्त किया। उनके स्कूलों में सभी जातियों के बच्चों को बिना किसी भेदभाव के प्रवेश दिया गया। 🤝

सामाजिक समता का प्रतीक: उनकी संस्था ने सामाजिक समता और भाईचारे का एक नया आदर्श स्थापित किया, जो उस समय के समाज के लिए एक क्रांतिकारी कदम था।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-22.09.2025-सोमवार.
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