त्र्यंबोली यात्रा-कोल्हापूर- 27 सितंबर 2025 (शनिवार)-1-

Started by Atul Kaviraje, September 27, 2025, 06:44:46 PM

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Atul Kaviraje

त्र्यंबोली यात्रा-कोल्हापूर-

27 सितंबर 2025 (शनिवार) को शारदीय नवरात्रि का पाँचवाँ दिन, यानी आश्विन शुक्ल पंचमी तिथि है। कोल्हापूर में इस पंचमी को ललिता पंचमी के नाम से जाना जाता है और इसी दिन करवीर निवासिनी महालक्ष्मी (अंबाबाई) अपनी सखी त्र्यंबोली देवी से मिलने के लिए त्र्यंबोली पहाड़ी (टेंबलाई) तक पालकी में जाती हैं। यह यात्रा कोल्हापूर की सबसे महत्वपूर्ण और भावपूर्ण धार्मिक परंपराओं में से एक है।

हिंदी लेख: त्र्यंबोली यात्रा - महालक्ष्मी और उनकी सखी का भक्तिमय मिलन-

दिनांक: 27 सितंबर 2025 (शनिवार) 🗓�
पर्व: त्र्यंबोली यात्रा / ललिता पंचमी
स्थान: कोल्हापूर, महाराष्ट्र 🚩

कोल्हापूर, जिसे दक्षिण काशी भी कहा जाता है, अपनी अधिष्ठात्री देवी करवीर निवासिनी श्री महालक्ष्मी (अंबाबाई) के कारण जग-प्रसिद्ध है। 27 सितंबर 2025 का दिन, जो शारदीय नवरात्रि के पाँचवें दिन ललिता पंचमी के रूप में मनाया जा रहा है, कोल्हापूर की एक अनूठी और भावपूर्ण परंपरा का साक्षी बनेगा—यह है त्र्यंबोली यात्रा। इस दिन, माता महालक्ष्मी 👑 अपनी पालकी में सवार होकर अपनी सखी त्र्यंबोली देवी (टेंबलाई) से मिलने के लिए त्र्यंबोली पहाड़ी तक जाती हैं। यह केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं, बल्कि दो देवियों के स्नेह, शक्ति और विजयोत्सव का प्रतीक है।

1. यात्रा का ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व
1.1. ललिता पंचमी का पावन दिन:

शारदीय नवरात्रि की आश्विन शुक्ल पंचमी तिथि को ललिता पंचमी कहते हैं। इस दिन माता अंबाबाई अपनी पालकी में मुख्य मंदिर से त्र्यंबोली पहाड़ी तक यात्रा करती हैं। 🔔

यह दिन स्कंदमाता की पूजा का भी होता है, जो शक्ति की दिव्यता को और बढ़ाता है।

1.2. महालक्ष्मी और त्र्यंबोली की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, जब कोल्हासुर राक्षस का पुत्र कामाक्ष उपद्रव कर रहा था, तब त्र्यंबोली देवी ने उसका वध किया। महालक्ष्मी, जो कामाक्ष के वध के बाद विजयोत्सव मना रही थीं, त्र्यंबोली को निमंत्रण देना भूल गईं।

त्र्यंबोली देवी रुष्ट होकर मंदिर से दूर, पहाड़ी पर बस गईं। उनका गुस्सा शांत करने के लिए, स्वयं महालक्ष्मी हर वर्ष इस दिन अपनी सखी से मिलने जाती हैं। 🤝

2. त्र्यंबोली यात्रा के प्रमुख अनुष्ठान
2.1. पालकी प्रस्थान और स्वागत:

महालक्ष्मी (अंबाबाई) की उत्सव मूर्ति को पालकी में विराजित कर, भव्य शाही लवाजमे और पारंपरिक वाद्य-संगीत के साथ मंदिर से निकाला जाता है। 🎶

पूरे मार्ग पर भक्त सुंदर रांगोलियाँ 🎨 और फूलों के कालीन बिछाते हैं और पालकी का आरती से स्वागत करते हैं।

2.2. कोहळा भेदन (कुष्मांड छेदन) विधि:

त्र्यंबोली पहाड़ी पर पहुँचने के बाद, कामाक्ष राक्षस के वध के प्रतीक के रूप में कोहळे (पेठा या कद्दू) की बलि दी जाती है। 🔪

यह विधि शक्ति द्वारा आसुरी शक्तियों के नाश का प्रतीक है, जिसे एक कुमारिका (छोटी कन्या) द्वारा संपन्न किया जाता है।

3. भक्ति, श्रद्धा और उत्सव का वातावरण
3.1. भाविकों का उत्साह:

यात्रा में कोल्हापूर और आसपास के हजारों भक्त भगवा ध्वज लेकर शामिल होते हैं। "अंबाबाई की जय!" के जयकारे से पूरा शहर गूँज उठता है। 🙏

भक्तों में फटाखों की आतिशबाजी 💥 और पारंपरिक ढोल-ताशा का जबरदस्त उत्साह देखने को मिलता है।

3.2. प्रसाद और नैवेद्य:

इस यात्रा में भक्त देवी को नए पानी (आषाढ़ में नदी में आए नए जल) का नैवेद्य और प्रसाद चढ़ाते हैं।

पारंपरिक रूप से, इस यात्रा के दौरान मटन वाटे (मांसाहारी नैवेद्य) चढ़ाने की भी प्रथा है, जो कोल्हापूर की प्राचीन ग्रामदेवता परंपरा को दर्शाता है। 🍚

4. शक्तिपीठों का मिलन
4.1. करवीर और त्र्यंबोली:

यह यात्रा करवीर शक्तिपीठ (महालक्ष्मी) और त्र्यंबोली (टेंबलाई) देवी के मिलन का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि समस्त देवी शक्तियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

भक्तों को एक ही दिन दो प्रमुख देवियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
5.1. एकता और समरसता:

यह यात्रा जात-पात से परे, सभी को एक साथ लाकर सामुदायिक एकता 🤝 को मजबूत करती है।

शहर के विभिन्न पेठ (मोहल्ले) और तालीम मंडल (अखाड़े) मिलकर इस यात्रा का आयोजन करते हैं।

5.2. पारंपरिक कला का प्रदर्शन:

रास्ते भर पारंपरिक लोकनृत्य, भजन और संगीत का प्रदर्शन होता है, जो महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है। 🎭

इमोजी सारांश (Emoji Saransh):
🗓� 27.09.2025, ललिता पंचमी। 👑 महालक्ष्मी चलीं 🤝 त्र्यंबोली देवी ❤️ से मिलने। 🛕 पहाड़ी पर 🔪 विजयोत्सव। 🙏 भक्ति और 🎶 उल्लास का पर्व। जय अंबाबाई! 🔱

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-27.09.2025-शनिवार.
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