उभयचर (जल और थल दोनों में रहने वाले जीव) उभयचर की कविता-

Started by Atul Kaviraje, September 29, 2025, 09:55:26 PM

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Atul Kaviraje

उभयचर (जल और थल दोनों में रहने वाले जीव)

उभयचर की कविता (A Poem on Amphibians)-

पहला चरण:
💧 पानी और धरती, दोनों का है साथी, 💧
💧 जीवन का सफर, है इनका ही तो राही। 💧
💧 छोटी-सी काया, पर है महान पहचान, 💧
💧 उभयचर ही तो हैं, इस जग की शान। 💧

अर्थ: यह कविता बताती है कि उभयचर जल और थल दोनों में रहते हैं और उनका जीवन दोनों जगह व्यतीत होता है।

दूसरा चरण:
🥚 जेली के अंडों में, जन्म ये लेते हैं, 🥚
🥚 गलफड़ों से साँस, पानी में ही लेते हैं। 🥚
🥚 फिर बनती है पूंछ, और छोटी-सी काया, 🥚
🥚 टैडपोल कहलाता, वो नन्हा सा बच्चा। 🥚

अर्थ: यह चरण बताता है कि ये पानी में अंडे देते हैं और टैडपोल के रूप में अपना जीवन शुरू करते हैं।

तीसरा चरण:
👣 धीरे-धीरे उगते हैं, पैरों के निशान, 👣
👣 पूंछ होती गायब, शुरू होती नई जान। 👣
👣 फेफड़े लेते हैं जगह, गलफड़े हो जाते हैं बंद, 👣
👣 अब ये धरती पर, करते हैं विचरण। 👣

अर्थ: इस चरण में कायांतरण की प्रक्रिया का वर्णन है, जिसमें टैडपोल वयस्क बन जाता है।

चौथा चरण:
🐸 मेंढक हो या सैलामैंडर, या हो कोई न्यूट, 🦎
🐸 हर जीव की अपनी है, अलग ही तो एक सूट। 🐸
🐸 कीड़ों को खाते हैं, फसलों को बचाते हैं, 🐸
🐸 प्रकृति के मित्र बनके, ये सबको भाते हैं। 🐸

अर्थ: यह बताता है कि ये कीड़े खाकर पर्यावरण में संतुलन बनाए रखते हैं।

पांचवां चरण:
🏭 इनकी त्वचा है नम, बहुत ही है संवेदनशील, 🏭
🏭 प्रदूषण का असर, होता है इन पर मुश्किल। 🏭
🏭 खतरे में हैं ये जीव, इनका करो बचाव, 🏭
🏭 नहीं तो होगा, प्रकृति का अभाव। 🏭

अर्थ: यह चरण उभयचरों को होने वाले खतरों के बारे में बताता है और उनके संरक्षण का आग्रह करता है।

छठा चरण:
🌎 ये हैं जैव-सूचक, पर्यावरण की है कहानी, 🌎
🌎 इनकी घटती संख्या, कहती है पानी-पानी। 🌎
🌎 अगर ये नहीं रहेंगे, तो बिगड़ेगा संतुलन, 🌎
🌎 मानव का भी होगा, फिर जीवन का उन्मूलन। 🌎

अर्थ: यह बताता है कि ये जीव पर्यावरण की स्थिति के महत्वपूर्ण संकेतक हैं और इनका संरक्षण मानव के लिए भी आवश्यक है।

सातवां चरण:
🌱 आओ मिलकर करें, इनका हम सम्मान, 🌱
🌱 इन्हें बचाकर ही तो, बच पाएगा ये जहान। 🌱
🌱 पानी और धरती, दोनों हैं इनका घर, 🌱
🌱 उभयचरों का जीवन, रहे सदा अमर। 🌱

अर्थ: यह अंतिम चरण इन जीवों के संरक्षण के लिए एक साथ आने और उन्हें बचाने का संदेश देता है।

--अतुल परब
--दिनांक-29.09.2025-सोमवार. 
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