कविता: दत्ताश्रय में साधक का जीवन- 📝🔱🚶‍♂️✨🔱🙏💡📖💖✨🌍🐝🐟

Started by Atul Kaviraje, October 03, 2025, 04:04:20 PM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

श्री गुरुदेव दत्त के भक्तों के जीवन में साधक का दृष्टिकोण-

हिंदी कविता: दत्ताश्रय में साधक का जीवन-

📝🔱🚶�♂️✨

चरण 1: (दत्त गुरु का आह्वान)
त्रिदेव स्वरूप धारी दत्त, तुम हो आदि गुरु महान।
साधक जीवन की राहों में, तुमसे ही मिलता है ज्ञान।
भक्ति नहीं, अभ्यास है मेरा, हर दिन एक तप करना है,
गुरु कृपा ही है मेरी पूँजी, भवसागर को तरना है।

अर्थ: त्रिदेव का स्वरूप धारण करने वाले दत्त, तुम महान आदि गुरु हो। साधक जीवन के रास्तों पर, तुमसे ही ज्ञान मिलता है। मेरी भक्ति नहीं, बल्कि मेरा हर दिन एक तपस्या जैसा अभ्यास है। गुरु की कृपा ही मेरी पूंजी है, जिससे इस संसार सागर को पार करना है।

सिंबल: 🔱🙏💡

चरण 2: (गुरु-निष्ठा का भाव)
गुरुचरित्र की हर इक चौपाई, मुझको मार्ग दिखाती है।
गुरु-निष्ठा की शक्ति मुझमें, हर अंधियारा मिटाती है।
न माँगूँ सुख-सम्पत्ति जग की, बस चरणों का दास बनूँ,
पूर्ण समर्पण ही मेरी पूजा, गुरु के हित ही खास बनूँ।

अर्थ: गुरुचरित्र की हर एक चौपाई (चौकड़ी) मुझे रास्ता दिखाती है। गुरु के प्रति मेरी निष्ठा की शक्ति मुझमें हर अंधेरे को मिटाती है। मैं संसार के सुख और संपत्ति को नहीं मांगता, बस चरणों का सेवक बनूँ। पूर्ण समर्पण ही मेरी पूजा है, और गुरु के लिए ही मैं विशेष बनूँ।

सिंबल: 📖💖✨

चरण 3: (चौबीस गुरुओं की सीख)
पृथ्वी, जल और हवा से सीखा, सबमें सत्य समाया है।
हर प्राणी में गुरु को देखा, अहंकार दूर भगाया है।
मधुमक्खी से त्याग लिया, मछली से संतोष किया,
साधक दृष्टि मिली है मुझको, जीवन सफल हो गया।

अर्थ: मैंने पृथ्वी, जल और हवा से सीखा कि सबमें सत्य समाया हुआ है। मैंने हर प्राणी में गुरु को देखा, और अहंकार को दूर भगाया। मधुमक्खी से त्याग लिया, और मछली से संतोष करना सीखा। मुझे साधक की दृष्टि मिली है, जिससे मेरा जीवन सफल हो गया है।

सिंबल: 🌍🐝🐟

चरण 4: (कर्मयोग का पथ)
संसार में रहकर भी, कर्म को निष्काम करूँ।
फल की इच्छा न रखूँ मन में, बस गुरु का नाम जपूँ।
ईमानदारी से कर्तव्य करूँ, लोक-कल्याण का भाव रखूँ,
सेवा ही है मेरा धर्म, हर निर्धन का आसरा बनूँ।

अर्थ: संसार में रहकर भी, मैं कर्म को बिना किसी स्वार्थ के करूँ। मन में फल की इच्छा न रखूँ, बस गुरु का नाम जपता रहूँ। ईमानदारी से कर्तव्य करूँ, और लोक-कल्याण की भावना रखूँ। सेवा ही मेरा धर्म है, मैं हर गरीब का सहारा बनूँ।

सिंबल: 🤝🧘�♂️🕉�

चरण 5: (ज्ञान और वैराग्य)
माया के बंधन को जानूँ, पर उसमें लिप्त न होऊँ।
वैराग्य का पथ अपनाकर, मन को शांत मैं करूँ।
क्षणभंगुरता को पहचानूँ, शाश्वत सुख को ढूंढूँ,
ज्ञान की मशाल जलाकर, मोह के अँधेरे को पूंछूँ।

अर्थ: मैं माया के बंधन को जानता हूँ, पर उसमें लिप्त नहीं होता। वैराग्य के रास्ते को अपनाकर, मैं अपने मन को शांत करता हूँ। मैं क्षणिक सुख को पहचानता हूँ, और स्थायी आनंद को ढूंढता हूँ। ज्ञान की मशाल जलाकर, मैं मोह के अंधेरे को दूर करता हूँ।

सिंबल: 🧠🕯�🕊�

चरण 6: (ध्यान और आत्म-निरीक्षण)
ध्यान की गहराई में उतरूँ, श्वास को शांत मैं करूँ।
आसन, प्राणायाम से तन-मन, साधना हेतु तैयार करूँ।
हर दिन रात में बैठूँ मैं, आत्म-निरीक्षण का बल मिले,
अपनी गलती को पहचानूँ, गुरु-कृपा से हर क्लेश टले।

अर्थ: मैं ध्यान की गहराई में उतरता हूँ, और अपनी श्वास को शांत करता हूँ। आसन और प्राणायाम से शरीर और मन को साधना के लिए तैयार करता हूँ। मैं हर रात बैठकर आत्म-निरीक्षण करता हूँ, जिससे मुझे शक्ति मिले। मैं अपनी गलतियों को पहचानूँ, और गुरु की कृपा से हर दुख दूर हो।

सिंबल: 🧘🔄💪

चरण 7: (अंतिम ध्येय)
निर्भय जीवन मिले मुझको, सादगी का हो मेरा वेश।
सद्गुरु दत्त ही ध्येय मेरे, यही है अंतिम संदेश।
जन्म-मरण का चक्र टूटे, मोक्ष का द्वार खुले अब तो,
दत्ताश्रय में ही जीवन सार, गुरु के चरण न छूटें अब तो।

अर्थ: मुझे निर्भय जीवन मिले, और मेरा वेश सादगी भरा हो। सद्गुरु दत्त ही मेरा ध्येय हैं, यही मेरा अंतिम संदेश है। जन्म-मृत्यु का चक्र टूटे, और मोक्ष का द्वार अब खुल जाए। दत्ताश्रय में ही जीवन का सार है, अब गुरु के चरण न छूटें।

सिंबल: 🌟👑🙏

--अतुल परब
--दिनांक-02.10.2025-गुरुवार.
===========================================