धावीर महापालखी-रोहा, जिल्हा-रायगड-1-🚩 👑 🚓 💖 👣 🥁 ✨ 🏡 🤝 🌟

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2025, 10:32:01 AM

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Atul Kaviraje

धावीर महापालखी-रोहा, जिल्हा-रायगड-

रोहा का धावीर महापालखी उत्सव परंपरागत रूप से दशहरे के दूसरे दिन (आश्विन शुक्ल एकादशी या द्वादशी) मनाया जाता है। चूँकि 02 अक्टूबर, 2025 को विजयादशमी (दशहरा) है, इसलिए यह पालखी उत्सव 03 अक्टूबर, 2025 (शुक्रवार) को ही आरंभ होगा। यह दिन इस उत्सव के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

श्री धावीर महापालखी उत्सव: रोहा, जिला रायगढ़ (03 अक्टूबर, 2025 - शुक्रवार)
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र, रायगढ़ जिले में स्थित रोहा शहर का ग्रामदैवत श्री धावीर महाराज हैं। उनका वार्षिक महापालखी उत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, शौर्य और अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। हर वर्ष विजयादशमी (दशहरा) के दूसरे दिन शुरू होने वाला यह भव्य पालखी सोहला रोहावासियों के लिए एक भावनात्मक पर्व होता है।

1. उत्सव का परिचय और तिथि 🚩
देवता: श्री धावीर महाराज (रोहा के ग्रामदैवत)।

उत्सव का नाम: धावीर महापालखी सोहला।

समय: दशहरा (विजयादशमी) के दूसरे दिन सुबह सशस्त्र सलामी के साथ शुरू होकर, लगभग 29 घंटे तक रोहा शहर में घूमता है।

2025 में तिथि: 03 अक्टूबर, 2025, शुक्रवार को पालखी सोहले का आरंभ होगा।

2. धावीर महाराज: ग्रामदैवत का इतिहास 📜
उत्पत्ति: धावीर महाराजाओं का मूल स्थान रोहा से कुछ दूरी पर स्थित वराठी नामक वाडी (गाँव) में माना जाता है।

रोहा में आगमन: एक स्थानीय भक्त वळवंतराव विठोजी मोरे (वालवंतराव विठोजी मोरे), जो बढ़ती उम्र के कारण वराठी जाकर दर्शन नहीं कर पाते थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महाराजा ने उन्हें दृष्टांत दिया और रोहा शहर के पश्चिमी भाग में एक कातळ (पहाड़ी) पर स्वयंभू रूप में प्रकट हुए।

मंदिर निर्माण: भक्त मोरे और अन्य पाँच भाइयों ने मिलकर 1849 ई. में मंदिर का निर्माण करवाया।

3. महापालखी सोहले की विशिष्ट परंपराएं ✨
सशस्त्र सलामी (पुलिस ऑनर): यह इस उत्सव का सबसे अनूठा और प्रमुख आकर्षण है। ब्रिटिश काल (1862) से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है, जहाँ रायगढ़ पुलिस दल के जवान पालखी को सशस्त्र सलामी (Armed Salute) देते हैं।

कारण: यह सम्मान धावीर महाराजा की शौर्य शक्ति और ग्राम रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।

समय: सलामी सोहला भोर में, पालखी के आरंभ होने से ठीक पहले होता है।

4. पालखी की यात्रा (29 घंटे का सोहला) 👣
पालखी का स्वरूप: पालखी में श्री धावीर महाराज की उत्सव मूर्ति को सजाया जाता है।

मार्ग: पालखी रोहा शहर के कोने-कोने में, हर आळी (गली) और हर समुदाय के घर-घर तक जाती है।

बंधु भेट (भाई से भेंट): पालखी अपने बंधु (भाई) धाकसूत महाराज से मिलने जाती है, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है।

अनवाणी सेवा: कई श्रद्धालु और विशेषकर युवा, महाराज की पालखी के साथ 29 घंटे तक नंगे पाँव चलकर सेवा करते हैं, जो उनकी अटूट श्रद्धा और त्याग को दर्शाता है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व ❤️
एकता का प्रतीक: यह उत्सव जाति-धर्म के भेद को मिटाकर, समस्त रोहावासियों को एक सूत्र में बांधता है। पालखी हर समुदाय के घर तक जाती है और सबका आशीर्वाद स्वीकार करती है।

पारंपरिक वाद्य: पालखी सोहले में संबाळ, हलगी और ढोल-ताशा जैसे पारंपरिक कोंकणी वाद्ययंत्रों का गजर होता है, जो कोंकण की लोक-संस्कृति को जीवित रखता है।

गोंधळ: नवरात्र उत्सव के दौरान और पालखी के बाद देर रात तक खंडोबा के गोंधळी द्वारा गोंधळ (पारंपरिक लोक-नृत्य/गीत) डाला जाता है।

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(Flag: Utsav/Aarambh) (Crown: Dhavir Maharaj) (Police car: Sashastra Salami) (Heart: Bhakti/Shraddha) (Footprints: Palkhi Yatra/Anwani Seva) (Drum: Traditional Music/Dhol-Tasha) (Sparkle: Pavitrata) (House: Ghar-Ghar Darshan) (Handshake: Social Unity/Bandhu Bhet) (Star: Upasanhakr/Glory)

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.10.2025-शुक्रवार.
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