धावीर महापालखी-कोकबन, जिल्हा-रायगड-1-👑 🛡️ 👣 🥁 💖 🏡 🌳 🤝 ✨

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2025, 10:33:23 AM

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Atul Kaviraje

धावीर महापालखी-कोकबन, जिल्हा-रायगड-

रोहा का धावीर महापालखी उत्सव प्रसिद्ध है, लेकिन रायगढ़ जिले के कई गाँवों में धावीर महाराजा का वास है। जानकारी के अनुसार, कोकबन गाँव में भी श्री धावीर महाराजांचा पालखी सोहळा अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जो स्थानीय ग्राम संस्कृति और भक्ति का अनूठा संगम है। यह लेख उस स्थानीय परंपरा पर केंद्रित होगा।

श्री धावीर महापालखी: कोकबन, जिला रायगढ़ (03 अक्टूबर, 2025 - शुक्रवार)
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की मिट्टी में वहाँ के ग्रामदैवत (गाँव के देवता) की अटूट आस्था बसती है। रायगढ़ जिले के रोहा तालुका में स्थित कोकबन गाँव का ग्रामदैवत श्री धावीर महाराज हैं। गाँव का वार्षिक महापालखी उत्सव (पालखी सोहळा) यहाँ की सामुदायिक शक्ति, सांस्कृतिक विरासत और गहरी भक्ति का जीवंत प्रमाण है। 03 अक्टूबर, 2025, (दशहरे के आस-पास का समय) का यह दिन कोकबन के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा के पुनर्संचार का पर्व होगा।

1. उत्सव का परिचय: कोकबन की आस्था 🙏
देवता: श्री धावीर महाराज (कोकबन के ग्रामदैवत)।

उत्सव: वार्षिक पालखी सोहला, जो गाँव में सुरक्षा और समृद्धि के लिए निकाला जाता है।

विशिष्टता: यह उत्सव एक छोटे से गाँव की सामूहिक भक्ति और कोंकणी लोक-कला के प्रदर्शन का केंद्र होता है।

2. धावीर महाराज: ग्राम रक्षक की भूमिका 🛡�
मान्यता: धावीर महाराज को ग्राम का जागृत देवस्थान और मुख्य रक्षक माना जाता है।

ऐतिहासिक संदर्भ: ऐसी मान्यता है कि धावीर महाराज की शक्ति गाँव को हर आपदा और रोगराई (महामारी) से बचाती है। गाँव की हर समस्या के समाधान के लिए भक्त सबसे पहले इन्हीं की शरण में आते हैं।

सिंबल: तलवार (शौर्य) और प्रसाद (रक्षण)। 🗡�🍚

3. पालखी का स्वरूप और साज-सज्जा ✨
महापालखी: लकड़ी या चांदी से बनी पालखी को फूलों, रंगीन वस्त्रों और रत्न-आभूषणों से भव्य रूप से सजाया जाता है।

उत्सव मूर्ति: पालखी में श्री धावीर महाराज की उत्सव मूर्ती या पादुका रखी जाती है।

प्रतीक: पालखी स्वयं देवता का प्रतीक है, जो भक्तों के बीच भ्रमण करने आते हैं।

4. पालखी यात्रा का महत्व (गाँव का भ्रमण) 👣
घर-घर आशीर्वाद: पालखी गाँव के हर प्रमुख स्थान और हर भक्त के द्वार तक जाती है, जिससे सभी को महाराज के साक्षात दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

अनवाणी यात्रा: कोकबन के अनेक ग्रामवासी और युवा, पालखी के साथ श्रद्धापूर्वक नंगे पाँव चलते हैं, जिसे एक तपस्या और सेवा माना जाता है।

सामाजिक समावेशन: यह यात्रा जाति या वर्ग के भेद के बिना पूरे गाँव को एक करती है।

5. कोंकणी लोक-कला और वाद्य 🥁
पारंपरिक वाद्य: पालखी के आगे-पीछे ढोल, ताशा, संबाळ और हलगी जैसे कोंकण के पारंपरिक वाद्ययंत्रों का गगनभेदी गजर होता है।

नृत्य: कुछ स्थानों पर स्थानीय भक्त और कलाकार पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं, जो उत्सव के माहौल को भक्ति और ऊर्जा से भर देते हैं।

उदाहरन: ढोल-ताशों की आवाज पूरे गाँव में उत्सव की घोषणा करती है।

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(Crown: Maharaj) (Shield: Gram Rakshak) (Footprints: Palkhi Yatra/Anwani Seva) (Drum: Dhol-Tasha) (Heart: Bhakti/Ovaalni) (House: Ghar-Ghar Darshan) (Tree: Prosperity/Nature) (Handshake: Unity/Samajik Samarasata) (Sparkle: Pavitrata/Ashirwad)

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.10.2025-शुक्रवार.
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