म्हांकाळेश्वर दरगोबा देव यात्रा-पारे, तालुका-खानापूर, जिल्हा-सांगली-1-

Started by Atul Kaviraje, October 05, 2025, 10:35:59 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

म्हांकाळेश्वर दरगोबा देव यात्रा-पारे, तालुका-खानापूर, जिल्हा-सांगली-

प्राप्त जानकारी के अनुसार, पारे (तालुका खानापूर/विटा) का दर्गोबा-म्हांकाळेश्वर मंदिर एक जागृत कुलदैवत है और यह यात्रा 'पहाटे होणारी यात्रा' (भोर में होने वाली यात्रा) के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के पास चिलाबाई और मीताबाई देवी के मंदिर भी हैं। यह लेख इसी परंपरा पर केंद्रित होगा।

श्री म्हांकाळेश्वर दरगोबा देव यात्रा: पारे, तालुका खानापूर, सांगली (03 अक्टूबर, 2025 - शुक्रवार)
महाराष्ट्र के सांगली जिले में, महादेव डोंगररांगे (पर्वत श्रंखला) की निसर्गरम्य गोद में, खानापूर तालुका के पारे गाँव में स्थित है श्री म्हांकाळेश्वर दरगोबा का जागृत देवस्थान। यह देवस्थान स्थानीय भक्तों, खासकर कई परिवारों के लिए कुलदैवत (पारिवारिक देवता) का स्थान रखता है। इस पवित्र स्थल पर आयोजित होने वाली वार्षिक देव यात्रा (उत्सव) भक्ति, शौर्य और प्रकृति प्रेम का एक अनूठा संगम है, जो 03 अक्टूबर, 2025 को एक बार फिर आध्यात्मिकता की अलख जगाएगी।

1. परिचय: म्हांकाळेश्वर-दरगोबा देवस्थान 👑
देवता: श्री म्हांकाळेश्वर दरगोबा (स्थानीय रूप से दरिबा के नाम से भी विख्यात)। इन्हें घोड़े पर विराजमान देवता के रूप में पूजा जाता है।

उत्सव: वार्षिक देव यात्रा (जत्रा/उत्साव)।

विशिष्टता: यह यात्रा 'पहाटे होणारी यात्रा' (भोर में होने वाली यात्रा) के रूप में प्रसिद्ध है, जहाँ भक्त ब्रह्ममुहूर्त में दर्शन के लिए आते हैं।

स्थान: महादेव डोंगररांगे में, हरे-भरे पर्वतों के बीच।

2. दरगोबा का स्वरूप और नामकरण 🐴
घोड़े पर सवार देव: दरगोबा को एक वीर पुरुष के रूप में चित्रित किया जाता है, जो घोड़े पर सवार होकर अपने भक्तों की रक्षा करने आते हैं।

म्हांकाळेश्वर से संबंध: उन्हें शिव के क्रुद्ध रूप महाकाल (म्हांकाळेश्वर) का अंश या रक्षक रूप माना जाता है, जो बुराई पर विजय प्राप्त करते हैं।

सिंबल: घोड़ा (गति और शौर्य) और तलवार (रक्षा)। 🐎🗡�

3. 'पहाटेची यात्रा' का आध्यात्मिक महत्व ✨
ब्रह्ममुहूर्त: यात्रा का मुख्य आकर्षण ब्रह्ममुहूर्त (भोर) में होने वाले दर्शन हैं। इस समय की गई पूजा-अर्चना को अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

दिव्यता: माना जाता है कि भोर की शांति और ठंडक में देवता का तेज और अधिक जागृत हो जाता है।

उदाहरण: भक्त ठंडी हवा में भी रात भर जागकर इस शुभ क्षण का इंतजार करते हैं।

4. मंदिर परिसर का प्राकृतिक सौंदर्य 🏞�
डोंगरातील देव (पहाड़ी देवता): मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। यह स्थान ट्रेकिंग और प्रकृति दर्शन के लिए भी प्रसिद्ध है।

चिलाबाई और मीताबाई: दरगोबा मंदिर के पास चिलाबाई देवी और मीताबाई देवी के मंदिर भी हैं, जिन्हें दरगोबा की बहनें माना जाता है।

तालाब: परिसर में एक सुंदर तालाब है, जो इस पूरे क्षेत्र की सुंदरता और पवित्रता को बढ़ाता है।

5. भक्तों का समर्पण और सेवा 💖
कुलदैवत की पूजा: भक्त यहाँ अपने कुल (परिवार) की सुख-शांति और समृद्धि के लिए विशेष पूजा, नवस (मन्नत) और तेल-अर्पण करते हैं।

पायदळ यात्रा (पैदल यात्रा): सांगली और आस-पास के क्षेत्रों से कई भक्त पैदल चलकर इस पवित्र स्थान तक पहुँचते हैं, जिसे वे अपनी आस्था का सर्वोच्च समर्पण मानते हैं।

प्रतीक: नारियल (मन्नत) और सीढ़ियाँ (कष्टमय मार्ग)। 🥥🪜

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.10.2025-शुक्रवार.
===========================================