फत्तेयाजदहम 'ग्यारहवीं शरीफ' - गौस-ए-आजम का पर्व-1-

Started by Atul Kaviraje, October 06, 2025, 10:54:13 AM

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Atul Kaviraje

फत्तेयाजदहम ग्यारहवी शरीफ-

हिंदी लेख: फत्तेयाजदहम 'ग्यारहवीं शरीफ' - गौस-ए-आजम का पर्व-

दिनांक: 04 अक्टूबर, 2025 (शनिवार)
पर्व: फत्तेयाजदहम ग्यारहवीं शरीफ (रबी-उल-आखिर की 11वीं तारीख)
भाव: भक्ति भाव पूर्ण, विस्तृत एवं विवेचनपरक

सार: आज, 04 अक्टूबर 2025, शनिवार के दिन, इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार रबी-उल-आखिर महीने की 11वीं तारीख है। इस पावन दिवस को दुनिया भर के मुसलमान 'फत्तेयाजदहम' या 'ग्यारहवीं शरीफ' के रूप में मनाते हैं। यह उत्सव महान सूफी संत सैयदना हज़रत शेख अब्दुल कादिर जिलानी (रज़ियल्लाहु अन्हु) की याद और उनकी शिक्षाओं को समर्पित है। उन्हें 'गौस-ए-आजम' और 'पीराने पीर' के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन ईसाले-सवाब (पुण्य पहुँचाना), फातिहा-ख्वानी, लंगर और नेक इंसानी गुणों को बढ़ावा देने का प्रतीक है। यह पर्व हमें इंसानियत की सेवा और सद्भाव का पैगाम देता है।

1. ग्यारहवीं शरीफ का परिचय और गौस-ए-आजम
(Introduction of Gyarvi Sharif and Ghous-e-Azam)

1.1 संत का परिचय: हज़रत शेख अब्दुल कादिर जिलानी (1077-1166 ई.) सूफी मत के महान संत थे। उनका जन्म ईरान के गीलान प्रांत में हुआ था और उनका मज़ार (दरगाह) बग़दाद शरीफ 🇮🇶 में है।

1.2 गौस-ए-आजम: उन्हें 'गौस-ए-आजम' (सबसे बड़ा मददगार) और मुहिउद्दीन (धर्म को पुनर्जीवित करने वाला) की उपाधि से नवाज़ा गया है।

1.3 'ग्यारहवीं शरीफ' नाम: यह पर्व इस्लामिक माह रबी-उल-आखिर की 11वीं तारीख को मनाया जाता है, इसलिए इसे 'ग्यारहवीं शरीफ' कहा जाता है।

1.4 'फत्तेयाजदहम' (फातिहा-ए-याज़दह): इस दिन फातिहा (प्रार्थना) पढ़े जाने के कारण इसे फत्तेयाजदहम भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'ग्यारहवीं (याज़दह) की फातिहा'।

2. पर्व की तारीख और महत्व (04 अक्टूबर 2025)
(Date and Significance of the Festival)

2.1 वार्षिक उर्स: गौस-ए-आजम का सालाना उर्स (पुण्यतिथि) हर साल रबी-उल-आखिर की 11वीं तारीख को मनाया जाता है।

2.2 मासिक परंपरा: इस उर्स के अलावा, गौस-ए-आजम की याद में हर इस्लामी माह की 11वीं तारीख को फातिहा और नियाज़ की महफ़िलें भी सजाई जाती हैं।

2.3 आज का संयोग: आज 4 अक्टूबर 2025 (शनिवार) को यह शुभ तिथि पड़ रही है, जो भक्ति और अध्यात्म के रंग में रंगी है।

2.4 ईसाले-सवाब का दिन: यह दिन गौस-ए-आजम की आत्मा को ईसाले-सवाब (नेकी का पुण्य) पहुँचाने का सबसे महत्वपूर्ण दिन है।

3. ग्यारहवीं शरीफ का उद्देश्य और शिक्षाएँ
(Purpose and Teachings of Gyarvi Sharif)

3.1 इंसानियत की सेवा: गौस-ए-आजम की सबसे बड़ी शिक्षा इंसानियत की सेवा और सच्चाई 💖 पर कायम रहना थी।

3.2 नेकी और इबादत: यह पर्व हमें सिखाता है कि अल्लाह की रज़ा (खुशी) केवल नमाज़ और रोज़े से नहीं, बल्कि नेक इंसानी गुणों से भी हासिल होती है।

3.3 अल्लाह और रसूल की इतात: गौस-ए-आजम की तालीमात का मकसद पूरी ज़िन्दगी अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इतात (आज्ञाकारिता) में गुज़ारना था।

3.4 मुहब्बत का पैगाम: औलिया-ए-किराम का असली पैगाम नफ़रत और तकरार से बचकर मुहब्बत और भाईचारा ✨ फैलाना है।

4. प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान (फातिहा और नियाज़)
(Main Religious Rituals - Fatiha and Niyaz)

4.1 फातिहा-ख्वानी: इस दिन विशेष रूप से कुरआन शरीफ की तिलावत 📖 और फातिहा-ख्वानी की जाती है, जिसका सवाब गौस-ए-आजम को पेश किया जाता है।

4.2 नियाज़ और लंगर: घरों और मस्जिदों में लंगर (सामुदायिक भोजन) और नियाज़ (प्रसाद) का विशेष आयोजन होता है, जिसमें गरीब और अमीर सभी शामिल होते हैं।

4.3 जिक्र-ए-खैर: महफ़िलें सजाई जाती हैं, जिनमें जिक्र-ओ-अजकार (अल्लाह का ज़िक्र), नात-ओ-मनकबत (प्रशंसा के गीत) पढ़े जाते हैं।

4.4 सदक़ा और खैरात: इस दिन सदक़ा और खैरात (दान-पुण्य) करने का बहुत महत्व है, ताकि गरीबों की मदद हो सके। 🤲

5. सूफी परंपरा में ग्यारहवीं शरीफ
(Gyarvi Sharif in Sufi Tradition)

5.1 आध्यात्मिक उन्नति: सूफी मानते हैं कि ग्यारहवीं शरीफ की महफ़िलों में शामिल होने से आध्यात्मिक उन्नति और कलबी (दिल की) धड़कनों में अल्लाह का ज़िक्र बढ़ता है।

5.2 विलायत का जश्न: यह पर्व विलायत (ईश्वर से निकटता) का जश्न है, जो हमें औलिया-ए-किराम की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।

5.3 मोहब्बत का इज़हार: यह आयोजन औलिया से मोहब्बत और उनकी शिक्षाओं पर चलने के इज़हार (प्रकटीकरण) का जरिया है।

5.4 करामतें: इस दिन गौस-ए-आजम की करामातों (चमत्कारों) का भी ज़िक्र किया जाता है, जो उनकी विलायत (पवित्रता) का हिस्सा थीं।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-04.10.2025-शनिवार.
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