🔱 हिंदी कविता - नटराज: लय और लयहीनता 🕺

Started by Atul Kaviraje, October 07, 2025, 08:55:14 AM

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Atul Kaviraje

🔱 हिंदी कविता - नटराज: लय और लयहीनता 🕺

1. प्रथम चरण (चरण 1)
जटाओं में गंग बिराजे, माथे पे चंद्र सजाए।
नटराज रूप में शिवजी, ब्रह्मांड को नचाए।।
एक पाँव है थामे भूमि, दूजा गगन में डोले।
काल के पहिए की गति, ये मूर्ति ही खोले।।

हिंदी अर्थ: उलझी हुई जटाओं में गंगा विराजमान हैं, और माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। नटराज के रूप में भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड को नृत्य कराते हैं। एक पाँव ज़मीन पर है, तो दूसरा आकाश में घूमता है। यह मूर्ति ही समय के चक्र की गति को उजागर करती है।

2. द्वितीय चरण (चरण 2)
दाहिने कर में डमरू बाजे, सृष्टि का नाद जगाए।
अग्नि लपट बाएँ कर में, सब कुछ क्षण में जलाए।।
जन्म और मृत्यु का संगम, लयबद्ध यह दिखलाए।
विनाश ही नवसृजन का, पावन मार्ग बनाए।।

हिंदी अर्थ: दाहिने हाथ में डमरू बज रहा है, जो सृष्टि की ध्वनि को जगाता है। बाएँ हाथ में अग्नि की लपटें हैं, जो पल भर में सब कुछ जला देती हैं। यह नृत्य जन्म और मृत्यु के मिलन को लयबद्ध तरीके से दिखाता है। विनाश ही नई रचना का पवित्र रास्ता तैयार करता है।

3. तृतीय चरण (चरण 3)
अपस्मार दानव है नीचे, अज्ञान जिसे हम मानें।
शिवजी के पाँव तले वो, शक्ति का मर्म को जाने।।
ज्ञान ही है मुक्ति दाता, यह दृश्य हमें सिखाए।
अंधेरा हो मन का जितना, बस प्रकाश उसे मिटाए।।

हिंदी अर्थ: अपस्मार नाम का राक्षस नीचे है, जिसे हम अज्ञानता मानते हैं। वह शिवजी के पाँव के नीचे है, और शक्ति के रहस्य को जानता है। यह दृश्य हमें सिखाता है कि ज्ञान ही मुक्ति देने वाला है। हमारे मन में जितना भी अंधेरा हो, केवल प्रकाश ही उसे खत्म कर सकता है।

4. चतुर्थ चरण (चरण 4)
उठा हुआ जो बायाँ पाँव, मोक्ष का मार्ग बताए।
अभय मुद्रा दाहिना हाथ, हर भय को दूर भगाए।।
शांत मगर मुखमंडल उनका, परमानंद में लीन।
योग और गति का अद्भुत, यह कैसा सुंदर सीन।।

हिंदी अर्थ: जो बायाँ पाँव हवा में उठा हुआ है, वह मोक्ष का रास्ता दिखाता है। दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है, जो हर डर को दूर भगाता है। उनका चेहरा शांत है, पर वह परमानंद में मग्न हैं। यह योग (शांति) और गति (नृत्य) का कितना अद्भुत सुंदर दृश्य है।

5. पंचम चरण (चरण 5)
ज्वालाओं का घेरा है यह, ब्रह्मांड की है माया।
इसके भीतर नाच रहे हैं, शिवजी अपनी काया।।
सर्प लिपटा है देह से, कुंडलिनी शक्ति जागे।
काल के बंधन से मुक्ति, यह दर्शन भाग्य माँगे।।

हिंदी अर्थ: यह आग की लपटों का घेरा है, जो पूरे ब्रह्मांड की माया है। इसके भीतर शिवजी अपने शरीर से नृत्य कर रहे हैं। सर्प (साँप) शरीर से लिपटा है, जो कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है। इस दर्शन से समय के बंधन से मुक्ति का सौभाग्य मिलता है।

6. षष्ठम चरण (चरण 6)
चोलों की वह कांस्य कला, युगों से यह गाती।
भारत की पहचान बनी, संस्कृति को दर्शाती।।
भरतनाट्यम की प्रेरणा, मुद्राएँ इसमें समाईं।
विज्ञान कहे, ऊर्जा का प्रवाह, इसकी गति में पाई।।

हिंदी अर्थ: चोल राजवंश की वह कांस्य कला (Bronze Art), युगों से यही कहानी गा रही है। यह भारत की पहचान बन गई है और हमारी संस्कृति को दिखाती है। भरतनाट्यम नृत्य की प्रेरणा और सारी मुद्राएँ इसमें समाई हुई हैं। आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि ऊर्जा का निरंतर प्रवाह इसकी गति में निहित है।

7. सप्तम चरण (चरण 7)
अस्तित्व की हर एक कण में, शिव की कला है छाई।
नटराज दर्शन से मिलती, जीवन की सच्ची राई।।
नृत्य करो इस जगत में, कर्म करो हर हाल में।
लीन रहो पर साक्षी बनो, जीवन के हर जाल में।।

हिंदी अर्थ: अस्तित्व के हर एक कण में भगवान शिव की कला समाई हुई है। नटराज के दर्शन से जीवन की सच्ची समझ (सच्ची राई) मिलती है। इस दुनिया में नृत्य करो (सक्रिय रहो), और हर परिस्थिति में अपना कर्म करते रहो। सभी चीज़ों में सक्रिय रहो, पर साक्षी बनकर, जीवन के हर बंधन में रहो (निर्लिप्त रहो)।

--अतुल परब
--दिनांक-06.10.2025-सोमवार. 
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