कल की शायरी..

Started by Rohit Dhage, December 05, 2011, 11:58:36 PM

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Rohit Dhage

इस जीने के अंदाज़ है कितने निराले
कभी लगता है की जान गयें हम सारे
वोह लम्हे हम जी लिए है सारे
मगर पहचान पायें वोह जिंदगी ही क्या थी
हर बार एक नया रंग है जिन्दगी
इक नयी गहरायी है ज़िन्दगी
इन्ही गहराईयों में खोकर रह जायें हम कहीँ
अपने होनेका एहसास भी ना हो कभी
कुछ ऐसी हो ज़िन्दगी हमारी
कुछ लम्हे भी जी जायें तो गम नहीं
जो जिया ही नहीं वोह लम्हा ही क्या था
जिनमे लम्हा ना था वोह भी क्या जीना था
इन्ही लम्हों में खोकर रह जायें हम कहीँ
कुछ ऐसी हो ज़िन्दगी हमारी

- रोहित