दसरा महोत्सव-पेडणे-गोवा-1-✨🙏

Started by Atul Kaviraje, October 11, 2025, 11:14:31 AM

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Atul Kaviraje

दसरा महोत्सव-पेडणे-गोवा-

2025 में दशहरा (विजयदशमी) 02 अक्टूबर, गुरुवार को है। हालांकि, पेडणे का दशहरा उत्सव, जिसे स्थानीय रूप से 'पेडणेची पूनव' या 'दासरो' कहा जाता है, दशहरा के बाद कोजागिरी पूर्णिमा (आमतौर पर दशहरे के 5-6 दिन बाद) तक चलता है। 07 अक्टूबर 2025 (मंगलवार) की तारीख संभवतः कोजागिरी पूर्णिमा के आसपास की है, जब उत्सव चरम पर होता है और पुलिस बल की तैनाती 3 से 8 अक्टूबर तक की जाती है (स्रोत 2.7)। यह लेख पेडणे के अद्वितीय दसरा उत्सव और उसकी परंपराओं पर केंद्रित है।

भक्ति-भावपूर्ण लेख: पेडणे दसरा महोत्सव - गोवा - परंपरा, लोकदेवता और कोकणी संस्कृति का अनूठा संगम ✨🙏-

दिनांक: 07 अक्टूबर, 2025 - मंगलवार (उत्सव के चरम दिन की भावना पर आधारित)
स्थान: पेडणे (Pernem), उत्तरी गोवा, महाराष्ट्र-गोवा सीमा के निकट।
पर्व: दसरा महोत्सव / दासरो / पेडणेची पूनव (Dussehra Festival / Pednechi Punav)

गोवा, अपनी सुनहरी रेत और आधुनिक जीवनशैली के लिए जाना जाता है, लेकिन इसकी आत्मा इसके प्राचीन मंदिरों और जीवंत लोक परंपराओं में बसती है। उत्तरी गोवा का पेडणे तालुका, पारंपरिक दसरा महोत्सव के लिए प्रसिद्ध है, जिसे स्थानीय रूप से 'दासरो' या 'पेडणेची पूनव' कहा जाता है। यह उत्सव केवल राम की रावण पर विजय या दुर्गा की महिषासुर पर विजय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र के लोक देवताओं (Folk Deities) - श्री भगवती, श्री रावलनाथ और श्री भूतनाथ - के सम्मान में सदियों पुरानी, विशिष्ट कोंकणी (Konkani) अनुष्ठानों का एक महाकुंभ है।

पेडणे का दशहरा भारतीय त्योहारों की विविधता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो आस्था, लोककथाओं और सामुदायिक एकता को एक साथ बुनता है।

10 प्रमुख बिंदु और विवेचनात्मक विस्तार:

1. पेडणे दसरे का अद्वितीय स्वरूप (The Unique Nature of Pernem's Dussehra) 🎭
पेडणे का दसरा, जिसे 'पेडणेची पूनव' (पेडणे की पूर्णिमा) भी कहते हैं, पारंपरिक दशहरा से हटकर है।

1.1. लोक देवताओं का केंद्र: यह उत्सव मुख्य रूप से श्री भगवती (मातृ देवी) और उनके पुरुष समकक्ष लोक देवताओं श्री रावलनाथ और श्री भूतनाथ को समर्पित है।

उदाहरण: मुख्य समारोह श्री भगवती मंदिर, श्री रावलनाथ मंदिर और श्री भूमिक वेताल मंदिर से जुड़े होते हैं।

1.2. कोजागिरी पूर्णिमा तक विस्तार: जबकि मुख्य विजयदशमी 2 अक्टूबर को होती है, पेडणे के अनुष्ठान दशहरे से शुरू होकर कोजागिरी पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) तक, यानी 5-7 दिनों तक चलते हैं, जो इसे 'पूनव' (पूर्णिमा) नाम देता है।

प्रतीक: नारियल 🥥, दीये (दीपक) 🪔।

2. 'तरंग' की भूमिका और सजावट (The Role and Decoration of 'Tarangas') 🌟
'तरंग' (Tarangas) पेडणे के दसरा का सबसे महत्त्वपूर्ण दृश्य प्रतीक है। ये देवताओं के अधिकार-चिह्न या प्रतीकात्मक छत्र होते हैं।

2.1. साड़ियों से सज्जा: देवताओं के 'तरंगों' को भव्य रूप से सजाया जाता है। भूतनाथ के 'तरंग' को 21 साड़ियों से, जबकि रावलनाथ के 'तरंग' को 19 या 22 साड़ियों से सजाया जाता है।

उदाहरण: ये साड़ियाँ उन महिलाओं द्वारा दान की जाती हैं जिनकी शादी उस वर्ष हुई होती है, समृद्धि और प्रजनन क्षमता का प्रतीक।

2.2. 'तरंग मेल' नृत्य: उत्सव के दौरान, विशिष्ट 'मानकरी' (पारंपरिक सेवक या जाति समूह) 'तरंगों' को धारण करके 'तरंग मेल' नामक एक ऊर्जावान पारंपरिक लोक नृत्य करते हैं।

प्रतीक: रंगीन छत्र 🌈, साड़ी 👗।

3. 'शिवलग्न' और युगल पूजा (Shivlagna and Dual Worship) 💑
भगवती और रावलनाथ देवताओं के बीच प्रतीकात्मक विवाह समारोह इस उत्सव का एक अनोखा पहलू है।

3.1. शिव और शक्ति का मिलन: सात दिनों तक, देवी भगवती और भगवान रावलनाथ के प्रतीकों के बीच 'शिवलग्न' (प्रतीकात्मक विवाह समारोह) का अनुष्ठान किया जाता है।

3.2. प्रजनन क्षमता का उत्सव: यह समारोह दैवीय शिव और शक्ति के मिलन को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में समृद्धि और प्रजनन को बढ़ावा देना है।

4. 'कौल' और भविष्यवाणी की परंपरा (Kaul and Prophecy Tradition) 🔮
पेडणे में देवताओं से 'कौल' (भविष्यवाणी या आशीर्वाद) लेने की प्रथा बहुत महत्वपूर्ण है।

4.1. आशीर्वाद समारोह: हजारों भक्त मंदिर में इकट्ठा होते हैं ताकि वे देवताओं से 'कौल' (संकेत या दिव्य आशीर्वाद) प्राप्त कर सकें, खासकर भविष्य की कृषि या व्यक्तिगत सफलता के संबंध में।

4.2. लोक उपचार: 'कौल' प्राप्त होने पर, लोग विश्वास करते हैं कि उनकी समस्याएँ दूर होंगी।

5. 'पावनर' - सामुदायिक महाभोज (Pavner - The Community Feast) 🍲🤝
'पावनर' (Pavner) एक अनूठी भोजन परंपरा है जो सामुदायिक भावना को दर्शाती है।

5.1. अतिथि सत्कार: यह अनुष्ठान मराठी शब्द 'पाहुणचार' (अतिथि सत्कार) से लिया गया है। दसरे के दिन से शुरू होकर, पाँच स्थानीय वंश (जैसे परब, गावड़ो) लगातार पाँच दिनों तक पूरे गाँव और दूर-दराज के भक्तों को महाभोज (कम्युनिटी लंच) देते हैं।

5.2. एकता का संदेश: यह माना जाता है कि इन पाँच दिनों के दौरान, देवता स्वयं इन मेजबान परिवारों के घरों में आते हैं। यह परंपरा सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक है।

प्रतीक: सामुदायिक थाली 🍽�, मित्रता 🤝।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-07.10.2025-मंगळवार.
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