नवग्रह और जन्मकुंडली में भवानी माता की पूजा और महत्व-1-🔱🧘‍♀️🙏🌟🔮

Started by Atul Kaviraje, October 12, 2025, 04:48:09 PM

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Atul Kaviraje

नवग्रह और जन्मकुंडली में भवानी माता की पूजा और महत्व-
(भवानी माता की पूजा और नवग्रह और जन्म कुंडली में इसकी भूमिका)
(The Worship of Bhavani Mata and Its Role in Navagraha and Birth Chart)
Bhavani MatA Puja and importance in 'Navgraha' and 'Janmakundli'-

नवग्रह और जन्मकुंडली में भवानी माता की पूजा और महत्व
(भक्तिभाव पूर्ण लेख)

संक्षेप में इमोजी सारांश (Emoji Saaransh):
🔱🧘�♀️🙏🌟🔮 (त्रिशूल/शक्ति, साधना, भक्ति, नवग्रह, कुंडली)

लेख का प्रारंभ: शक्ति का स्वरूप और ब्रह्मांडीय संतुलन
भवानी माता, माँ दुर्गा का एक तेजस्वी और कृपालु स्वरूप हैं। 'भवानी' शब्द 'भव' (यानी शंकर) की पत्नी, अथवा संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी का द्योतक है। सनातन धर्म में, माँ भवानी को शक्ति, साहस और करुणा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र और जन्मकुंडली (Janmakundli) के संदर्भ में, भवानी माता की पूजा का अद्वितीय और गहन महत्व है। वे केवल ग्रहों के दोषों को ही दूर नहीं करतीं, बल्कि व्यक्ति की कुंडली में आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास का संचार करती हैं, जिससे जीवन में ब्रह्मांडीय संतुलन (Cosmic Balance) स्थापित होता है।

10 प्रमुख बिंदु (Major Points) और उप-बिंदु (Sub-Points)

1. नवग्रहों पर भवानी माता का नियंत्रण
शक्ति का स्रोत: भारतीय ज्योतिष में, प्रत्येक ग्रह (Navagraha) किसी न किसी दैवीय शक्ति से जुड़ा हुआ है। भवानी माता को आदि शक्ति माना जाता है, जो सभी ग्रहों की ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं।

ग्रहों को शांत करना: कुंडली में जब अशुभ ग्रह (जैसे शनि, राहु या केतु) प्रतिकूल फल देते हैं, तो माता भवानी की पूजा से उनकी नकारात्मक ऊर्जा शांत होती है।

2. चंद्र और मन (Moon and Mind) पर विशेष प्रभाव
चंद्र का कारक: भवानी माता चंद्रमा और मन की कारक देवी हैं। चंद्र मन, भावनाएँ और माँ का प्रतिनिधित्व करता है।

उदा. मानसिक शांति: माता की उपासना से कमजोर चंद्रमा के कारण होने वाली मानसिक अशांति, भय और अनिद्रा दूर होती है, जिससे मनोबल बढ़ता है।

3. कुंडली में आत्मविश्वास और साहस की भूमिका
मंगल का बल: भवानी माता, विशेष रूप से महाराष्ट्र की तुलजा भवानी के रूप में, साहस और शौर्य की प्रतीक हैं। उनकी पूजा कुंडली में कमजोर मंगल को बल देती है।

परिणाम: यह पूजा व्यक्ति को आत्मविश्वास और जीवन के संघर्षों से लड़ने की अदम्य शक्ति प्रदान करती है।

4. कालसर्प दोष और राहु-केतु शांति
राहु-केतु का शमन: भवानी माता की आराधना राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने का एक अचूक उपाय मानी जाती है।

कालसर्प दोष: कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्तियों को माता की पूजा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है, क्योंकि वे समय की शक्ति (काल) की नियंत्रक हैं।

5. केंद्र और त्रिकोण भावों में भवानी का महत्त्व
त्रिकोण (धर्म त्रिकोण): कुंडली के 1, 5, 9 वें भाव (धर्म, भाग्य और पूर्व पुण्य) माता के आशीर्वाद से जुड़े होते हैं। इनकी मजबूती भाग्य को जगाती है।

केंद्र (कर्म भाव): 10वाँ कर्म भाव भी माता की कृपा से प्रभावित होता है, जिससे कार्यक्षेत्र में सफलता और मान-सम्मान प्राप्त होता है।

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-10.10.2025-शुक्रवार.
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