श्री सद्गुरु शंकर महाराज प्रकट दिन (पुणे)-1-🔱💫🏛️🌳💖🎁🕉️🙇🚩🗓️

Started by Atul Kaviraje, November 08, 2025, 06:50:06 PM

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Atul Kaviraje

30 अक्टूबर, 2025 (गुरुवार) को श्री सद्गुरु शंकर महाराज प्रकट दिन (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) है। यह पर्व महाराष्ट्र, विशेष रूप से पुणे (धनकवडी) में, जहाँ उनका समाधि मंदिर है, अत्यंत भक्तिभाव से मनाया जाता है।

श्री सद्गुरु शंकर महाराज प्रकट दिन (पुणे)-

दिनांक: ३० अक्टूबर, २०२५ (गुरुवार) पर्व: श्री सद्गुरु शंकर महाराज प्रकट दिन (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) भाव: भक्ति भाव पूर्ण, विवेचनात्मक, विस्तृत एवं दीर्घ लेख

🙏 प्रतीक/चित्र: शंकर महाराज 🚩, त्रिशूल 🔱, औदुंबर वृक्ष 🌳, पुणे मंदिर 🏛�, 'सब कुछ तेरा' 🕉�

📜 विस्तृत एवं विवेचनात्मक लेख
१. प्रकट दिन का परिचय और आध्यात्मिक महत्व (Introduction and Spiritual Significance) 🚩
श्री सद्गुरु शंकर महाराज, महाराष्ट्र के महान अवधूत संत और भगवान दत्तात्रेय के उपासक थे। उनका प्रकट दिन (जन्मदिन) हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

१.१. शिव-दत्त का समन्वय: उन्हें साक्षात् शिवावतार और श्री स्वामी समर्थ (दत्त अवतार) के परमप्रिय शिष्य के रूप में जाना जाता है। उनका नाम 'शंकर' स्वयं उनके शिव स्वरूप का द्योतक है।

१.२. प्रकट स्थल: पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनका प्रगट्य सन् १७८५ ईस्वी में नासिक जिले के सटाणा तालुका में अंतापूर नामक ग्राम में हुआ था, जहाँ वे एक दिव्य बालक के रूप में एक चिमणाजी नामक शिवभक्त को प्राप्त हुए थे।

२. अवधूत स्वरूप और विलक्षण लीलाएं (Avadhoot Form and Unique Leelas) 💫
शंकर महाराज का जीवन और व्यक्तित्व किसी रहस्य से कम नहीं था। वे एक विलक्षण योगी थे।

२.१. शारीरिक स्वरूप: उनका शरीर जन्म से ही 'अष्टावक्र' (आठ स्थानों से मुड़ा हुआ) और 'आजानुबाहू' (घुटनो तक लंबी भुजाओं वाला) था, पर उनका तेज और उत्साह अद्भुत था।

२.२. 'सब कुछ तेरा' का सिद्धांत: महाराज का प्रिय अंक १३ (तेरा) था। पूछने पर वे कहते थे—"सब कुछ तेरा, कुछ नाही मेरा।" (अर्थात् सब कुछ ईश्वर का है, मेरा कुछ नहीं है), जो उनके परम वैराग्य और आत्म-समर्पण के भाव को दर्शाता है। (उदाहरण: वैराग्य का प्रतीक 🪙)

३. गुरु-शिष्य परंपरा और स्वामी समर्थ कृपा (Guru-Shishya Tradition) 🕉�
महाराज की आध्यात्मिक यात्रा में उनके गुरु, श्री स्वामी समर्थ महाराज का स्थान सर्वोपरि है।

३.१. अक्कलकोट से पुणे तक: वे श्री स्वामी समर्थ महाराज के परमकृपांकित शिष्य थे और उन्हें 'आई' (माँ) कहकर संबोधित करते थे। गुरु के मार्गदर्शन में ही उन्होंने जन-कल्याण का कार्य किया।

३.२. जनार्दन स्वामी से भेंट: उनकी एक प्रमुख लीला है, जहाँ उन्होंने 'शुभराय' नामक एक भक्त के मठ में कीर्तन करते हुए जनार्दन स्वामी को साक्षात दत्तरूप दिखाया और स्वयं प्रकट हुए।

४. पुणे का धनकवडी समाधि मंदिर (Dhankawadi Samadhi Mandir, Pune) 🏛�
महाराज का समाधि स्थल पुणे के धनकवडी क्षेत्र में स्थित है, जो भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है।

४.१. समाधि स्थल का चुनाव: वैशाख शुक्ल अष्टमी (५ मई, १९४७) को, अपनी पुण्यतिथि के दिन, उन्होंने पुणे के धनकवडी में समाधि ली। यह स्थान आज लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है।

४.२. प्रकट दिन का उत्सव: प्रकट दिन पर यहाँ भव्य 'महापूजा', रुद्राभिषेक, भजन-कीर्तन, और महाप्रसाद का आयोजन होता है, जिसमें पुणे और महाराष्ट्र के कोने-कोने से भक्तजन शामिल होते हैं।

५. भक्ति भाव और जन-कल्याण की शिक्षा (Teachings of Devotion and Welfare) 💖
शंकर महाराज ने अपने जीवन और लीलाओं से सहज भक्ति और निःस्वार्थ सेवा का संदेश दिया।

५.१. सादा आध्यात्मिक उपदेश: उनका उपदेश सीधा और सरल होता था। उन्होंने भक्तों को नामस्मरण और गुरु-भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखाया।

५.२. संकट निवारण: अनेक भक्त आज भी दावा करते हैं कि कठिन समय में केवल महाराज का नाम लेने या उनकी बावन्नी स्तोत्र का पाठ करने से उनके संकट दूर हो जाते हैं। (उदाहरण: कठिनाई में मार्गदर्शन 🧭)

✨ इमोजी सारांश (Emoji Summary) ✨
🚩🗓�30/10/2025 (गुरुवार) 🔱💫🏛�🌳💖🎁🕉�🙇

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-30.10.2025-गुरुवार.
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