🌺 परस्पर कल्याण 🌺 भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11-🙏🕉️🌿💧☀️🌍🤝💫

Started by Atul Kaviraje, November 18, 2025, 08:28:35 PM

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Atul Kaviraje

तीसरा अध्यायः कर्मयोग-श्रीमद्भगवदगीता-

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।11।।

🌺 परस्पर कल्याण 🌺

(भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11 पर आधारित एक लंबी मराठी कविता)

मूल श्लोक:

देवान्भवयनेन ते देवा भावयन्तु वः।
परपरम्भवयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यत।।11।।

1. देवताओं के साथ सहयोग

यज्ञ के मार्ग पर चलकर देवताओं की पूजा करो,
उन्हें सम्मान देकर, वे ब्रह्मांड के राजा हैं।

अर्थ: यज्ञ कर्म (जैसा कि पिछले श्लोक में बताया गया है) करके तुम देवताओं (दिव्य शक्तियों/प्रकृति) को संतुष्ट करते हो। हे मनुष्यों, यदि तुम उन्हें सम्मान और आदर दोगे, तो ब्रह्मांड के नियम तुम्हारा कल्याण करेंगे।

2. देवताओं का उत्तर

'ते देवा भावयन्तु वः' वे तुम्हारा कल्याण करेंगे,
तुम्हारी सेवा से वे प्रचुर फल देंगे।

अर्थ: 'वे देवता तुम्हारा कल्याण करेंगे।' अर्थात्, जब आप निःस्वार्थ भाव से कार्य करेंगे, तो प्रकृति की शक्तियाँ (देवता) आपका ध्यान रखेंगी और आपके अच्छे कर्मों का भरपूर फल देंगी।

3. सहयोग का चक्र

एक-दूसरे का संवर्धन करें, यही सृष्टि का न्याय है।
मनुष्यों के लिए देना और लेना अनंत है।

अर्थ: हम एक-दूसरे की सहायता करके, एक-दूसरे का उपकार करके (ईश्वर मनुष्य का और मनुष्य ईश्वर का) ही प्रगति कर सकते हैं। आदान-प्रदान का यह चक्र अनंत काल तक चलता रहे, तभी मानव जीवन सुखी होगा।

4. प्रकृति-यज्ञ

प्रकृति हमारी ईश्वर है, उसे स्वच्छ वायु प्रदान करें।

जल, वृक्षों और धरती माता का सदैव सम्मान करें।

अर्थ: हमें प्रकृति को ही देवता मानना ��चाहिए। उसे स्वच्छ वायु, जल और पर्यावरण प्रदान करें। भूमि, जल और वृक्षों का सदैव सम्मान करें, यही प्रकृति के प्रति किया गया सच्चा त्याग है।

5. परम कल्याण का मार्ग

जो निःस्वार्थ भाव से यह कार्य करेगा,
उसे ही देवताओं का 'परम श्रेय' प्राप्त होगा।

अर्थ: जो व्यक्ति कर्मफल की इच्छा किए बिना निःस्वार्थ भाव से कर्म करता है, उसे 'परम मोक्ष' की प्राप्ति होती है और वह ईश्वर (आत्मा) के निकट पहुँचता है।

6. सह-अस्तित्व का महत्व

एक-दूसरे की सहायता करने से ही जीवन संभव है,
सह-अस्तित्व से ही दैनिक संतुष्टि संभव है।

अर्थ: एक-दूसरे की सहायता करना (सहयोग करना) ही इस संसार में मानव जीवन का सार है। ऐसे सह-अस्तित्व से ही हमें अपने दैनिक जीवन में सच्ची संतुष्टि और सुख प्राप्त होता है।

7. भक्ति का समापन

यह 'कर्म योग' की कथा है जो हमें कल्याण की कहानी बताती है,
स्वार्थ रहित जीवन ही सौभाग्य का स्रोत है।

अर्थ: यह श्लोक और संपूर्ण कर्म योग अध्याय हमें कल्याण का मार्ग बताता है। स्वार्थ का त्याग करके संपूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए जीना ही सबसे बड़ा सौभाग्य है।

इमोजी सारांश:

🙏🕉�🌿💧☀️🌍🤝💫

--अतुल परब
--दिनांक-17.11.2025-सोमवार.   
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