💎 हीरे का मूल्य ⏳ संत कबीर - दोहा 19-⏳👤😴🍎💎💰💡🕊️

Started by Atul Kaviraje, November 18, 2025, 10:19:29 PM

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Atul Kaviraje

कबीर दास जी के दोहे-

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय॥१९॥

💎 हीरे का मूल्य ⏳

(संत कबीर के दोहा 19 पर आधारित एक लंबी मराठी कविता)

मूल दोहा:

रात सोने में गँवाओ, दिन खाने में गँवाओ।
हीरा जन्म से ही अनमोल था, कोड का आदान-प्रदान करना चाहिए।

1. समय की बर्बादी

जीवन की 'नींद में रात' केवल आलस्य का सुख है,
जागने और लेटने का समय न मिलने का भ्रम।
अर्थ: (हमारे जीवन की) रात केवल आलस्य और सोने में ही बर्बाद होती है।
(अच्छे कर्मों के लिए) जागने का समय नहीं है, क्योंकि मनुष्य मोह के मोह में फँसा हुआ है।

2. दिन की व्यर्थता

'दिन सोने में गँवाओ' केवल पेट के लिए है,
शरीर की यह युद्धनीति भोग के लिए की जाती है।
अर्थ: दिन का समय केवल खाने-पीने (भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति) में ही बर्बाद होता है।
यह जन्म केवल भौतिक वस्तुओं का भोग करने और पेट की भूख मिटाने के लिए ही उपयोग किया जाता है।

3. अमूल्य जन्म

'हीरा जन्म अनमोल था' यह अनमोल मानव शरीर,
इसमें कोई संदेह नहीं है।
अर्थ: मानव जन्म हीरे के समान अनमोल था।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस जन्म में मोक्ष या आध्यात्मिक उत्थान का अवसर मिलता है।

4. अमूल्य मूल्य

वह अनमोल जीवन 'कोड़ी बड़े जाई' बन गया,
क्षणिक सुख के लिए एक हीरा एक कावड़ी को बेच दिया गया।
अर्थ: (गलत कर्मों के कारण) उस अनमोल मानव जीवन की कीमत बहुत कम हो गई।
क्षणिक सुखों की चाह में, हीरे जैसा यह जन्म एक कावड़ी के मूल्य में गँवा दिया गया।

5. पशु और मनुष्य

सोना और खाना पशुओं के कर्म हैं,
मनुष्य जन्म पाकर भी तुम परम धर्म को भूल गए हो।
अर्थ: सोना (आराम करना) और खाना (भोग करना) पशुओं के भी मुख्य कर्म हैं।
यदि तुम मानव जन्म पाकर भी ऐसा कर रहे हो, तो तुम आध्यात्मिक उन्नति के अपने परम कर्तव्य को भूल गए हो।

6. जागने का समय

तूने भगवान का नाम त्यागकर माया को महान माना है,
हे मानव, मृत्यु की गाँठ आने से पहले जाग।
अर्थ: तूने भगवान का नाम त्यागकर माया को महान माना है।
हे मानव, मृत्यु से पहले (जीवन के अंत से पहले), अभी जाग।

7. कबीर की सलाह

जन्म लेकर हर पल विट्ठल का नाम लो,
कबीर दास कहते हैं, ऐसा करो, आत्मा की खोज करो।
अर्थ: मानव जन्म पाकर हर पल भगवान (विट्ठल) का नाम लेना चाहिए।
यही संत कबीर दास हमें आत्मा के कल्याण की कामना से कह रहे हैं।

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--अतुल परब
--दिनांक-17.11.2025-सोमवार.     
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