👑 युद्ध में कृष्ण का कर्तव्य और उनके नीति-निर्णय का रहस्य- - भक्ति कविता 🌺👑

Started by Atul Kaviraje, November 19, 2025, 07:22:22 PM

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Atul Kaviraje

(युद्ध में कृष्ण का कर्तव्य और उनकी नीति का रहस्य)
युद्ध में कृष्ण का कर्तव्य और उनकी नैतिकता का रहस्य-
(Krishna's Duty in War and the Secret of His Ethics)
Krishna's war duties and the mystery behind them-

👑 युद्ध में कृष्ण का कर्तव्य और उनके नीति-निर्णय का रहस्य-

- भक्ति कविता 🌺

1. धर्म की रक्षा और विपत्ति का आगमन

यादव के मंत्र का स्मरण करके, कृष्ण 👑 उठ खड़े हुए,
धर्म के रक्षक, जब संसार संकट में था,
पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध अपरिहार्य हो गया,
धर्म के लिए, उन्होंने युद्धभूमि में प्रवेश किया।

अर्थ: जब-जब धर्म संकट में होता है, मैं अवतार लेता हूँ (यदा यादव ही...), इसी मंत्र का स्मरण करके, श्रीकृष्ण उठ खड़े हुए। जब ��संसार में अन्याय बढ़ा, तो धर्म की रक्षा करना उनका कर्तव्य था। जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध अपरिहार्य हो गया, तो उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए युद्धभूमि में प्रवेश किया।

2. स्वयं शस्त्र न उठाने का उनका दृढ़ संकल्प

किन्तु हाथ में शस्त्र न धारण करने का,
अर्जुन का सारथी बनने का, युद्ध का कारण है,
उन्होंने प्रेम और ज्ञान का रथ चलाया,
उन्होंने निस्वार्थ भाव से कर्तव्य का मार्ग दिखाया।

अर्थ: श्री कृष्ण ने स्वयं युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने केवल अर्जुन का सारथी (चालक) बनना स्वीकार किया। प्रेम और ज्ञान (गीता) के रथ को चलाकर, उन्होंने निःस्वार्थ भाव से कर्तव्य का मार्ग दिखाया।

3. अर्जुन को दिया गया ज्ञान

मोहग्रस्त अर्जुन 😥 को उन्होंने उपदेश दिया,
उसे जीवन में कर्म का सही अर्थ बताया,
गीता 📜 का महान संदेश वहाँ प्रकट हुआ,
उसे नैतिकता का रहस्य सिखाया, फल की आशा न करने का।

अर्थ: युद्ध के आरंभ में, श्री कृष्ण ने अपने ही भाइयों को अपने सामने देखकर मोहग्रस्त अर्जुन को 'भगवद् गीता' सुनाई। उन्होंने कर्म का महत्व समझाया और अपने नैतिकता का मुख्य रहस्य बताया कि फल की आसक्ति के बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है।

4. नीति का रहस्य: धर्म की स्थापना

नीति का रहस्य केवल सरल नियम नहीं हैं,
परिस्थिति के अनुसार बदलती न्याय की गति और व्यवस्था,
अधर्मियों का विनाश, यही उनका लक्ष्य है,
धर्म की स्थापना का श्रेय कठोरता को जाता है।

अर्थ: श्री कृष्ण की नीति केवल सरल नियमों पर आधारित नहीं थी, बल्कि न्याय की परिभाषा परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती थी। उनका मुख्य लक्ष्य अधर्मियों का विनाश था और धर्म की पुनः स्थापना के लिए उन्होंने कभी-कभी कठोर निर्णय भी लिए।

5. कर्तव्य और धर्म का संगम

जब न्याय और अन्याय के बीच गहरा संघर्ष था,
तब कृष्ण की नीति में स्वार्थ का कोई तत्व नहीं था,
शिखंडी का प्रयोग, कर्ण का वध, वह युक्ति,
धर्म के युद्ध के लिए हर छोटी शक्ति का उपयोग।

अर्थ: जब न्याय और अन्याय के बीच बड़ा संघर्ष था, तब कृष्ण की नीति में स्वार्थ का कोई तत्व नहीं था। उन्होंने धर्मयुद्ध की विजय के लिए ही भीष्म के सामने शिखंडी को खड़ा करने या कर्ण के रथ का पहिया फँस जाने पर उसका वध करने की युक्ति अपनाई थी।

6. दैवी शक्ति की लीला

वे केवल सारथी नहीं, योगेश्वर 💖 थे,
समय और नियति का चक्र घुमाने वाले प्रभु,
संपूर्ण युद्ध का सूत्र उनके हाथ में था,
उन्होंने क्षण भर में संसार को अपना विराट रूप 🌟 दिखा दिया।

अर्थ: श्री कृष्ण केवल सारथी नहीं, अपितु समस्त योगों के स्वामी (योगेश्वर) थे। वे साक्षात प्रभु थे जिन्होंने समय और नियति का चक्र घुमा दिया। संपूर्ण युद्ध की बागडोर उनके हाथ में थी और उन्होंने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया।

7. भक्ति और कर्म का अंतिम संदेश

जब सभी कर्तव्य पूरे हो गए, तो पुनः शांति आ गई।
कृष्ण की नीति संसार में सदैव अमर रही।
उन्होंने भक्ति और कर्मयोग की सुंदर शिक्षाएँ दीं।
उनकी नीति का रहस्य: निःस्वार्थ सेवा, यही देश है।

अर्थ: युद्ध समाप्त होने के बाद, संसार में पुनः शांति स्थापित हुई। श्री कृष्ण की नीति आज भी संसार में अमर है। उन्होंने लोगों को भक्ति और निःस्वार्थ कर्मयोग का उपदेश दिया। निःस्वार्थ सेवा ही उनकी नीति का अंतिम रहस्य है।

🖼� प्रतीक और इमोजी सारांश
अवधारणा भूमिका विवरण प्रतीक/इमोजी

युद्ध कर्तव्य रथ, मार्गदर्शक 🐴 रथ
नैतिकता के रहस्य भगवद गीता का ज्ञान 📖 पुस्तक
परम लक्ष्य धर्म की स्थापना 👑 मुकुट
दिव्य रूप योगेश्वर, ईश्वर 💖 ✨
उपकरण निष्काम कर्म योग 🏹 तीर/अस्त्र

इमोजी सारांश (एक पंक्ति में):
👑 🐴 📖 🏹 💖 ✨ 🕉� 👏

--अतुल परब
--दिनांक-19.11.2025-बुधवार.
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