🙏कर्मफल का स्वामी सिद्धांत: खुद करने वाला और खुद भोगने वाला ♻️-1-💯💪🧠 💡🔓🚀

Started by Atul Kaviraje, December 05, 2025, 09:08:41 AM

Previous topic - Next topic

Atul Kaviraje

स्वामी विवेकानंद के विचार-
कोट 7
हममें से हर कोई वही काटता है जो हमने खुद बोया है। ये दुख, जिनमें हम पीड़ित हैं, ये बंधन, जिनमें हम संघर्ष करते हैं, ये हमने ही किए हैं, और दुनिया में कोई और दोषी नहीं है। इसके लिए भगवान सबसे कम दोषी हैं।

स्वामी विवेकानंद के ये विचार कर्म के सिद्धांत पर आधारित हैं और बहुत आत्मनिरीक्षण करने वाले हैं।

पार्ट 1: व्याख्या पर एक विस्तृत और लंबा मराठी लेख

🙏 टाइटल: कर्मफल का स्वामी सिद्धांत: खुद करने वाला और खुद भोगने वाला ♻️
स्वामी विवेकानंद सुविचार:

हममें से हर कोई वही काटता है जो हमने खुद बोया है। ये दुख, जिनमें हम पीड़ित हैं, ये बंधन, जिनमें हम संघर्ष करते हैं, ये हमने ही किए हैं, और दुनिया में कोई और दोषी नहीं है। इसके लिए भगवान सबसे कम दोषी हैं।

(मराठी मतलब: हम सब वही काटते हैं जो हम बोते हैं।
हम जो दुख झेलते हैं, जिन बंधनों से जूझते हैं,
ये सब हमारी अपनी बनाई हुई चीज़ें हैं।
इस दुनिया में इसके लिए कोई और ज़िम्मेदार नहीं है।
इसके लिए भगवान को दोष देना बिल्कुल भी सही नहीं है।)

एक्शन की थ्योरी पर एक डिटेल्ड एनालिसिस (10 मेन पॉइंट्स में)

1. कर्म और एक्सिओम्स

कर्म क्या है? कर्म सिर्फ़ फिजिकल एक्शन नहीं है, बल्कि इसमें सोच, बात और काम भी शामिल हैं।
हर पल का होश में किया गया काम ही कर्म है।
आप जो बोएंगे वही उगेगा: विवेकानंद ने यह साफ़ कर दिया है कि ज़िंदगी में कामयाबी या नाकामयाबी बाहरी ताकतों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि हमारे पिछले कामों का फल है।
उदाहरण: अगर हम आम का बीज बोते हैं, तो उससे आम ही मिलेगा, नींबू नहीं। यह नेचर और कर्म का एक ज़रूरी प्रोसेस है। |🌱|🌳|🔄|

2. दुख और बंधन की असली वजह

दुख का सोर्स: हम जो दुख झेलते हैं, वह सिर्फ़ बाहरी घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि हमारे अपने गलत फ़ैसलों, नेगेटिव विचारों और आसक्तियों का नतीजा है।
बंधन क्या हैं? बंधन चीज़ों और अपनी आदतों से लगाव है। हमने इन बंधनों को और भी मज़बूत बना लिया है।
खुद को बनाना: ये सारी परेशानियाँ और बंधन 'भगवान की सज़ा' नहीं हैं, बल्कि हमारी अपनी नासमझी से बनी हुई हैं।
|⛓️|😔|👤|

3. 'भगवान को दोष मत दो' का कड़ा संदेश

भगवान का स्वभाव: भगवान शुद्ध, पवित्र और न्यायप्रिय हैं। वह किसी भी इंसान के लिए दुख नहीं बनाते।
बिना सोचे-समझे आलोचना: लोग, अपने कामों की ज़िम्मेदारी लिए बिना, आसानी से 'भगवान के ख़िलाफ़' या 'भगवान मेरे साथ नाइंसाफ़ी कर रहे हैं' की आलोचना करते हैं, जो बहुत नाइंसाफ़ी है।
भगवान का रोल: भगवान का रोल सिर्फ़ कर्म के नतीजों के एक न्यूट्रल गवाह (न्याय) का है, नतीजे देने वाले (करने वाले) का नहीं।
|❌| दोष देना |🙏|

4. खुद की ज़िम्मेदारी का एहसास

ज़िम्मेदारी मानना: यह सोच इंसान को सबसे ज़रूरी बात सिखाती है, जो है अपनी ज़िंदगी की 100% ज़िम्मेदारी खुद लेना।
निर्भर सोच छोड़ना: 'मेरी किस्मत खराब है' या 'उस इंसान ने मुझे नुकसान पहुँचाया' जैसे निर्भर सोच को छोड़ना ज़रूरी है।
शक्ति का सोर्स: जब इंसान अपनी ज़िम्मेदारी खुद मानता है, तभी उसे हालात बदलने की अंदरूनी शक्ति मिलती है।

💯|💪|🧠|

5. बदलाव और मुक्ति का रास्ता

अभी का कर्म: अगर हमारा अभी का दुख पिछले कर्मों का नतीजा है, तो हमारा अभी का कर्म भविष्य की खुशी का बीज है।
कर्म की आज़ादी: हमें अपने अभी के कर्म चुनने की आज़ादी है। पॉज़िटिव कर्म करके हम खुद को बंधन से आज़ाद कर सकते हैं। आशावाद: क्योंकि हम दुख का कारण हैं, इसलिए हमारे पास इसे खत्म करने की क्षमता भी है, यह आशावाद इसी थ्योरी से आता है।
|💡|🔓|🚀|

🌱🌳🔄 ⛓️😔👤 ❌blaming🙏 💯💪🧠 💡🔓🚀 💭➡️🎯 🧐⚖️💰 🙈📚 💡 🌐🤝🏗� 🌟📢

--संकलन
--अतुल परब
--दिनांक-03.12.2025-बुधवार.
===========================================