फिर वही...
क्युं आजकल स्कुल के
बच्चों जैसा होता है?
डयुटीपर न जांवू
एेसा बारबार लगता है?
स्कुल बस का मजा
कुझ ओर था तब,
चाहकर भी सिट नही
मिलती ट्रेन में अब ।
वोही स्कुल वैसे हि
बेंच रहते थे तब,
वही हाल कार्यालयका
वैसाहीे ढेर फाईलोंका अब ।
दस सालोंतक वही टिचर
बना रिश्ता उनके साथ,
यहाँ नित नये अफसर
कभीकभार उनसे होती बात ।
थकती थी जान आखरी
निपटाते वह पढाई सारी,
भुगता था स्कुलमें जैसा
नौकरीने दोहरायी बातें सारी।
पढलीख गये उस वक्त
तो पहुंच पाये यहाँतक
निभाने रीत दुनिया कि
चलताहूंँ घरसे नौकरी तक।
© शिवाजी सांगळे