Author Topic: त्रिवेणी संगम – ४  (Read 1580 times)

Offline केदार मेहेंदळे

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त्रिवेणी संगम – ४
« on: October 14, 2011, 11:47:24 AM »
"त्रिवेणी संगम" हा कवितेत एक नवीन प्रयोग  करून बघितला आहे. यात पहिल्या दोन ओळीनंतर येणारी तिसरी ओळ कविता पूर्ण करते अन कवितेला नवीन अर्थ देते.  नवीन प्रयोग आहे. काही कमी किंवा चूक झाली असेल तर कविते साठी चालवून घ्याव हि विनंती. ह्या कविता चार भागात पोस्ट करीन. आज भाग  चवथा अन शेवटचा.  आवडल्यास रिप्लाय पोस्ट करावा.  

त्रिवेणी संगम -  १ http://marathikavita.co.in/index.php/topic,6363.0.html
त्रिवेणी संगम - २ http://marathikavita.co.in/index.php/topic,6374.0.html
त्रिवेणी संगम - ३ http://marathikavita.co.in/index.php/topic,6386.0.html

कटन्या साठी रांग लागलीय बकर्यांची. खट खट.
खाटकाचे  हात भरून आलेत, गिराहिकांची  लाइन लागलीय.
 
दुकानाच नाव आहे "गुडलक मटण शॉप"
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उंदीर मामाला सांगितलेल गारहण बाप्पा कड़े जात म्हणे
सगले   भक्त उंदीर मामाच्या कानाशी लागलेत
 
रात्रि  रडत होता बिचारा, ऐकण्याच मशीन हरवलय  म्हणून.
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युगानु युगे धावतायत पृथ्वीच्या साक्षीने
सूर्या मागुन चन्द्र अन   चन्द्रा मागुन सूर्य
 
एक मेकान्ना  भेटायला धावतायेत की पकडायला?
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केदार...

Marathi Kavita : मराठी कविता


 

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