Author Topic: अनोलखी  (Read 1603 times)

anolakhi

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अनोलखी
« on: July 07, 2009, 06:50:47 PM »
सागराच्या वादळात अडकलेल्या ,
जहाजालाही काठा पासून दूर जावेसे वाटते,
किनारा खडकाळ आहे हे जेव्हा त्याला कळते.
मी मात्र त्या लाटां प्रमाणे आहे,
सतत तुटले तरी लाटाना किनारयाचिच ओढ़ आहे ...
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मी तुला पाहिले मला सोडून जाताना ,
लोकानी मात्र पाहिले माझे अश्रु वाहताना .
लाख प्रयत्न केले पण , अश्रु काही लपले नाही ,
एवढे करूनही तुझे जाने तळले नाही .
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माझे घर नदी किनारी आहे ,
अशी लोकांची ओरडा-ओरड होती .
मन मात्र माझे सदैव कोरडे राहिले ,
मला नेहमीच याचीच खंत होती .
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कधी-कधी दुःखाची खुप गर्दी होते .
त्या दुःखात मग रडून-रडून सर्दी होते.
तर मग आपण असे का करत नाही ?
त्या आसवांच्या वर्षावात भिजुन घ्यायचे खूप...
मात्र नंतर न विसरता घ्यायची मैत्रीची ऊब.
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« Last Edit: July 07, 2009, 07:40:17 PM by rkumbhar »

Marathi Kavita : मराठी कविता


Offline madhura

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Re: अनोलखी
« Reply #1 on: July 13, 2009, 01:01:38 AM »
माझे घर नदी किनारी आहे ,
अशी लोकांची ओरडा-ओरड होती .
मन मात्र माझे सदैव कोरडे राहिले ,
मला नेहमीच याचीच खंत होती .

Offline jyoti salunkhe

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Re: अनोलखी
« Reply #2 on: March 09, 2012, 11:57:09 AM »
Very Nice :)

 

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